योगानंद शताब्दी समारोह पर विशेष : स्वामी योगानंदजी जिनका अनुसरण कर रहा पूरा विश्व
गोरखपुर उत्तर प्रदेश में जन्मे स्वामी योगानंदजी के ध्यान व योग क्रिया का आज पूरा विश्व अनुसरण कर रहा है. योगानंदजी ने योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना योग क्रिया के माध्यम से लोगों को शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाने, मानसिक अशांति को दूर करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभुति कराने के उद्देश्य से किया था. […]
गोरखपुर उत्तर प्रदेश में जन्मे स्वामी योगानंदजी के ध्यान व योग क्रिया का आज पूरा विश्व अनुसरण कर रहा है. योगानंदजी ने योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना योग क्रिया के माध्यम से लोगों को शारीरिक रोगों से मुक्ति दिलाने, मानसिक अशांति को दूर करते हुए आध्यात्मिक ज्ञान की अनुभुति कराने के उद्देश्य से किया था. उनका कहना था कि बेचैन मन कभी भी भगवान की प्रार्थना नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा है कि आप अपने दृढ़ संकल्प से अपने भाग्य का निर्माण कर सकते हैं. खुद का बदलिये और दुनिया को बदलने की शक्ति अपने अंदर विकसित करिये. आज योगानंद शताब्दी समारोह मनाया जा रहा है, जिसके माध्यम से लोगों को क्रियायोग से जोड़ा जायेगा.
ध्यान से प्रत्यक्ष भगवान की अनुभूति प्राप्त होती है
– स्वामी स्मरणानंद
स्वामी स्मरणानंद ने कहा कि ध्यान एक तकनीक है, जिसके बारे में जाने बिना सही योग क्रिया नहीं हो सकती है. ध्यान के माध्यम से हम प्रत्यक्ष रूप से भगवान को प्राप्त कर सकते हैं. भगवान की अनुभूति होती है. स्वामी योगानंदजी ने हमेशा योग क्रिया को लोगों तक पहुंचाने का काम किया, जिससे लोग निरंतर जुड़ते गये. संसार में क्या हो रहा है? कौन क्या कह रहा है? इस पर ध्यान दिये बिना हमें अपना कर्म करते रहना चाहिए. तभी आत्मिक खुशी मिल सकती है. शांति की खोज में भटकने के बजाय ध्यान व क्रिया योग से जुड़ने की आवश्यकता है. युवा वर्ग को इसके लिए जागरूक करना होगा. तभी हम युवाओं तक सही रूप में आनंद को पहुंचाने में सफल होंगे.
नोबल पुरस्कार विजेता सीबी रमण के पौत्र भी हैं योगदा के संन्यासी
योगदा सत्संग आश्रम के वयोवृद्ध संन्यासी स्वामी कृष्णानंद गिरि ने योगीकथामृत पढ़ने के बाद वर्ष 1972 से एसआरएफ अमेरिका में संन्यासी का जीवन आरंभ किया. स्वामीजी नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक सीवी रमण के पौत्र हैं. कनाडा में इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर थे.
उन्होंने बताया कि दो वर्षाें के उपरांत उन्हें भारत भेजा गया. वर्ष 1977 में आश्रम का डायमंड जुबली कार्यक्रम मनाया गया था, यह कार्यक्रम योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के लिए एक टर्निंग प्वाइंट था. गुरुदेव की कृपा से उनके दिव्य मिशन का कार्य काफी तेजी से फैल रहा है. अब एक वर्ष में कई बार क्रिया योग दीक्षा कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जिसमें सैकडों भक्त क्रिया योग की दीक्षा लेते हैं.
संदेश
श्रीश्री मृणालिनी माता का संदेश है कि ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति प्राप्त करने के लिए सुनिश्चित वैज्ञानिक प्रविधियों के ज्ञान का विभिन्न राष्ट्रों में प्रचार करना. ईश्वर का दैनिक, वैज्ञानिक व भक्तिमय ध्यान करना, मनुष्य को तीन प्रकार के कष्ट: शारीरिक, मानसिक अशांति और अाध्यात्मिक अज्ञान से मुक्त करने, सादा जीवन और उच्च विचार को प्रोत्साहित करने तथा मानव जाति के मध्य उनकी एकता के शास्वत आधार, ईश्वर से संबंध की शिक्षा देकर बंधुत्व की भावना का प्रचार करना. शरीर पर मन और मन पर आत्मा की वरिष्ठता प्रतिपादित करना. पूर्व और पश्चिम के बीच आध्यात्मिक सामजस्य का विकास करना और उनके विशिष्ट पहलुओं के आदान प्रदान का समर्थन करना है. अपनी ही वृहद आत्मा अर्थात परमात्मा की सेवा करना योगदा सत्संग सोसाइटी व एसआरएफ का मुख्य उदेश्य है.
श्रीश्री मृणालिनी माता, वाइएसएस एवं एसआरएफ की अध्यक्ष
आत्मकथा पर फीचर फिल्म का निर्माण
परमहंस योगानदजी की आत्मकथा पर फीचर फिल्म का निर्माण भी किया जा चुका है. फीचर फिल्म को कई फिल्म प्रीमियर में दिखाया गया. फीचर फिल्म को दुनिया भर में दिखाया गया है. फिल्म को देखने के लिए लोगों ने काफी उत्साह दिखाया. फिल्म देखने में युवाओं की संख्या भी काफी रही है.
योगदा सत्संग का इतिहास
वर्ष 1917 में स्थापित योगदा सत्संग आश्रम के 100 वर्ष पूरे हो गये हैं. श्रीश्री परमहंस योगानंदजी द्वारा स्थापित इस अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक संस्था की नींव पश्चिम बंगाल के दिहिका में हुई थी. रांची में योगदा सत्संग ब्रह्मचर्य विद्यालय के रूप में यह स्थापित हुआ. 100 वर्ष के अपने कालखंड में यह संस्था उत्तरोत्तर अपने मिशन की ओर अग्रसर है.
याेगदा सत्संग का अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय अमेरिका के लॉस एंजिलिस में सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप, एसआरएफ के नाम से योग, अध्यात्म व आत्म साक्षात्कार के लिए प्राणायाम की वैज्ञानिक प्रविधि क्रिया योग का प्रचार प्रसार दुनिया के लगभग 70 देशों में होती है. 500 से अधिक केंद्रों व ध्यान मंडलियों के माध्यम से लोगों तक जानकारी उपलब्ध करायी जाती है. वहीं भारत, नेपाल और श्रीलंका में योगदा सत्संग आश्रम की गतिविधियां कोलकाता स्थित दक्षिणेश्वर आश्रम मुख्यालय द्वारा संचालित की जाती हैं.
देश में पांच जगह हैं आश्रम
भारत में रांची, नोएडा, द्वारहाट, इगतपुरी आश्रम समेत कुल 200 से अधिक ध्यान केंद्र हैं. यहां से परमहंस योगानंदजी की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार किया जा रहा है. गुरुजी परमहंस योगानंदजी धार्मिक उदारवादियों के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाले तीसरे भारतीय संत थे. उनसे पूर्व क्रमश: स्वामी विवेकानंद व स्वामी रामतीर्थ ने ऐसे धर्म सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व कर विश्व पटल पर भारत के प्राचीन अध्यात्म विज्ञान को रखा था.
गुरुजी ने वर्ष 1920 में अमेरिका के बोस्टन के भाहर में आयोजित इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ रिलिजियस लिब्रल्स को संबोधित किया. दुनिया को भारत के धर्म, अध्यात्म व दर्शन से अवगत कराया. उपरोक्त संत महात्माओं की ही देन है. वर्तमान समय में विश्व बंधुत्व, शांति, भाईचारा और मानवता की स्थापना में योग की जरूरत को समझते हुए 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की .
समझें योगदा का अर्थ
योगदा ‘योग’ और ‘दा’ दो शब्दों के मेल से बना है. योग का तात्पर्य मिलन, सामंजस्य, अथवा समत्व है. जबकि दा का तात्पर्य वह जो देता है. यानी योगदा का अर्थ है, वह जो योग देता है. वहीं सत्संग ‘सत्’ व ‘संग’ दो शब्दों के मेल से बना है, जिसका तात्पर्य है सत् के साथ संग. वर्ष 1916 में जब परमहंस योगानंदजी ने ब्रह्मांड में व्याप्त महाप्राण की भक्ति संचार के नियमों का आविष्कार किया. उन्होंने योगदा शब्द को गढ़ा. गुरुदेव ने योगदा सत्संग के नाम से भारतवर्ष में अपने सभी कार्यों व संस्थाओं को समितिबद्ध किया. पश्चिम के लिए उन्होंने अपनी संस्था योगदा सत्संग को अंग्रेजी नाम सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप दिया.
गुरुजी परमहंस योगानंदजी योगी कथामृत: ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी, भगवदगीता पर आधारित पुस्तक गॉड टाक्स विद अर्जुना, समेत कई पुस्तकें लिखी हैं. उनकी ये अमर कृतियां अध्यात्म के जिज्ञासुओं के लिए मार्गदर्षक का काम कर रहीं हैं. गुरुजी ने अपने जीवनकाल में एक लाख से भी अधिक भक्तों को प्राणायाम की वैज्ञानिक प्रविधि क्रिया योग की भी दीक्षा दी थी, उनके महान दैवी कार्यों को वर्तमान में श्रीश्री मृणालिनी माता योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया व सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप की अध्यक्षा व भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव स्वामी स्मरणानंद गिरिजी की देखरेख में संचालित किया जा रहा है.
दूसरी बार डाक टिकट जारी
भारत सरकार द्वारा गुरुदेव परमहंस योगानंदजी की स्मृति में दो बार डाक टिकट जारी किया जा चुका है. सर्वप्रथम वर्ष 1977 में गुरुजी की 25वीं महासमाधि दिवस के मौके पर डाक टिकट जारी करते हुए कहा गया कि ईश्वर के लिए प्रेम और मानवता की सेवा का आदर्श परमहंस योगानंदजी के जीवन में पूर्ण रूप से व्यक्त हुआ. उनका स्थान हमारे महान संतों में हैं. उनके कार्य पहले से अधिक बढ़ और चमक रहा है और ईश्वर की तीर्थयात्र के पथ पर हर दिशा से लोगों को आकर्शित कर रहा है. वहीं, दूसरी बार गुरुदेव परमहंस योगानंदजी के 65वें महासमाधि दिवस पर वर्ष 2017 में डाक टिकट जारी किया गया है.
आत्म साक्षात्कार के लिए प्रेरित करने वाली प्रभावशाली पुस्तक है योगी कथामृत
योगानंदजी की आत्मकथा से बदला विचार और सोच: विराट कोहली
कौन हैं? हमारा वास्तविक स्वरूप क्या है? हमारे जन्म का क्या उद्देश्य क्या है? क्या मृत्यु के बाद सब कुछ समाप्त हो जायेगा? हम कैसे संचालित हो रहे है? वह कौन सी शक्ति है, जो हम सब को संचालित कर रही है? हम किसके अधीन हैं? मन ही मन में ऐसे कई प्रश्न हरेक व्यक्ति के अंतर पटल में उठते रहता हैं. इसको लेकर मन मस्तिष्क में द्वंद्व छिड़ा रहता है. योगी कथामृत ऐसे गूढ़ व रहस्यमयी प्रश्नों के उत्तर देने, व्यक्ति विशेष को संतुष्ट करने व आत्म स्वरूप के बोध में एक मार्गदर्शक पुस्तिका के रूप में साबित हुआ है. यही कारण है कि 20वीं शताब्दी की यह पुस्तक दुनिया के 100 श्रेष्ठ पुस्तकों में शुमार हुई है. इसे पढ़कर आमलोगों से लेकर दुनिया के नामचीन हस्तियों ने अपनी जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल डाला.
गुरुजी परमहंस योगानंद जी द्वारा लिखित इस पुस्तक ने न सिर्फ अध्यात्म के जिज्ञासुओं, बल्कि समाज के हर वर्ग के लोगों को कुछ न कुछ देने का कार्य किया है. इस पुस्तक के माध्यम से गुरुजी परमहंस योगानंदजी ने योग व भारत के प्राचीन अध्यात्म व दर्शन की प्रासंगिक्ता को बड़े ही सरल शब्दों में विज्ञान व तर्क के दृष्टिकोण से समझाने का प्रयास किया है.
उन्होंने पतंजलि के अष्टांग योग के आठ अंग क्रमश: यम अर्थात नैतिक सदाचार, नियम अर्थात धर्माचरण, आसन अर्थात शरीर की उचित स्थिति, प्राणायाम अर्थात सूक्ष्म जीवन प्रवाह या प्राण पर नियंत्रण, प्रत्याहार अर्थात इंद्रियों को बाह्य विषयों से निवृत्त कर अंदर की ओर मोड़ लेना, धारणा अर्थात एकाग्रता व ध्यान है. 89 समाधि अर्थात पराचैतन्य का अनुभव होता है. योग के यह अष्टांग मार्ग साधक का कैवल्य के अंतिम लक्ष्य पर पहुंचा देता है. जिसमें योगी किसी भी बोध भक्ति की पहुंच से परे सत्य को जान लेता है.
मन में आनेवाले प्रश्न कौन बड़ा है, स्वामी या योगी, जब ईश्वर के साथ एकता स्थापित हो जाती है, तो विभिन्न मार्गों के भेद स्वत: समाप्त हो जाते हैं. योग विज्ञान उस मूल भूत आवश्यक्ताओं की पूर्ति करता है, जो सबके लिए समान होती है. सबपर समान रूप से लागू होती है. इस पुस्तक में प्राणायाम की विशेष प्रविधि क्रिया योग की विषेषताओं को बताते हुए कहा गया है कि दुनिया का कोई भी व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म, जाति का क्यों न हो, इसके अभ्यास से ईश्वरानुभूति के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.
सच्चा योगी अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए संसार में रह सकता है, यदि मनुष्य अपने अहंकार की इच्छा, वासनाओं में मानसिक रूप से लिप्त न हो और जीवन में अपनी भूमिका को ईष्वर की एक स्वैच्छिक माध्यम बन कर अदा करे, तो उसे सांसारिक कर्तव्यों को निभाने के लिए उसे ईश्वर से अलग होने की आवश्यकता नहीं रहती. गुरुजी ने एक शोधकर्ता व सत्यान्वेशी के रूप में कार्य करते हुए भारत व दुनिया के कई संतों व पश्चिम के संन्यासियों का भी जिक्र किया है. इनमें पल्वनशील संत नागेंद्र नाथ भादुड़ी, द्विशरीरी संत स्वामी प्रणवानंदजी, मास्टर महाश्य, दक्षिण भारत के योगी रमण महर्षि, निराहारी मां, आनंदमयी मां, योगदा गुरुओं में महावतार बाबाजी, श्रीश्री लाहिडी महाशय, स्वामी श्री युक्तेश्वर गिरिजी, आदि का जीवन दर्शन पाठकों को रोमांचित व प्रेरित करता है. गुरुजी ने इस माध्यम से भारत का पश्चिमी जगत के साथ पुराने आध्यात्मिक रिश्तों को भी बताने का प्रयास किया है.
इस क्रम में उन्होंने सिंकदर के गुरु रहे भारतीय संत कल्याण, जिन्हें यूनानी लोग कालानोस के नाम से जानते थे तथा एक अन्य संत दंडामिस के बारे में भी बड़े ही जीवंतता से वर्णन किया है. योगी कथामृत में गुरुजी परमहंस योगानंदजी के आरंभिक जीवन तथा विश्व-शांति व भाईचारे के वैश्विक दिव्य योजना की भी जानकारी मिलती है.
भक्तों ने कहा
क्रिया योग से आध्यात्मिक परिणाम सुनिश्चित होता है
सिल्लीगुड़ी निवासी 83 वर्षीय नेपाल चंद्र दास एक मैकेनिकल इंजिनियर हैं, वह अपनी पत्नी डॉ इला दास के साथ शताब्दी समारोह में हिस्सा लेने रांची आये हुए हैं. उन्होंने बताया कि वर्ष 1976 से आश्रम से जुड़े हैं, उन्होंने मृणालिनी मां से क्रिया योग की दीक्षा ली थी. श्री दास ने कहा कि क्रिया योग एक ऐसा राज योग है, जिसके अभ्यास से विज्ञान की तरह आध्यात्मिक उन्नति के परिणाम सुनिश्चित हैं.
अाश्चर्यजनक रूप से ठीक हो गयी मेरे पति की बीमारी
मुंबई के वर्ली की रहेनवाली राजश्री दास ने बताया कि वह गुरुकृपा से ही इस मार्ग में आ पायीं हैं. 1993 में योगी कथामृत पढ़ने के बाद आश्रम से जुडीं. उन्होंने बताया कि उनके पति नाबार्ड में सीजीएम के पद पर कार्यरत हैं. उन्हें एक बाद गंभीर बीमारी का सामना करना पड़ा था. इलाज के सभी प्रयासों के बावजूद वह ठीक नहीं हो रहे थे. उस समय गुरुजी से की गयी प्रार्थनाओं का ही फल था कि उनके पति आश्चर्यजनक रूप से न सिर्फ स्वस्थ हुए बल्कि एक अच्छे साधक भी बने.
अमेरिका में पसंद की जाती है गुरुजी पर बनी मूवी ‘अवेक’
अमेरिका की एक न्यूज चैनल की टीवी एंकर क्रिटिन फ्लैसर अपने पति पीटर फ्लैसर के साथ समारोह में हिस्सा लेने रांची आयीं हैं. उन्होंने बताया कि वह चौथी बार रांची आश्रम आ चुकीं हैं. वर्ष 2008 में योगी कथामृत पढ़ने के बाद एसआरएफ की सदस्या बनीं. उन्होंने कहा कि धर्म चाहे कोई भी हो, सत्य एक और सार्वभौमिक होता है, ऐसा मैनें योगदा के मार्ग को चुनकर पाया है. गुरुजी की मूवी अवेक, को अमेरिका में काफी पसंद किया जा रहा है.
आश्रम से जुड़कर बदल गया सोच और जीने का तरीका
बैंक प्रबंधक प्रदीप किशोर सहाय ने बताया कि उनके एक मित्र के पिता एसबी मल्लिक, जिन्होंने गुरुजी परमहंस योगानंदजी से दीक्षा ली थी, वह अक्सर योगदा के बारे में बताते थे. मैं योगी कथामृत पढ़ने के बाद अपनी दैनिक समस्याओं को दूर करने के व्यक्तिगत स्वार्थ को पूरा करने के लिए आश्रम आया था. यहां के वातावरण, तौर तरीके, अध्यात्म के प्रति आश्रम के दृष्टिकोण ने मुझे बहुत प्रभावित किया. मेरा सोच और जीने का तरीका बदल गया है.
योगी कथामृत पढ़ कर कुछ खास करने का मन बनाया
हरियाणा के पंचकूला से आये साधक विवेक आत्रे ने बताया कि वह भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रह चुके हैं. योगी कथामृत पढ़ने के बाद जीवन में कुछ खास करने का मन बनाया. गुरुजी की शिक्षा को अपनाकर सोचने समझने में सकारात्मकता आयी है.