संशोधन वापस करायें या इस्तीफा दें : सालखन
रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) ने शुक्रवार को शहीद मैदान के समीप ‘सरकार गिराओ, झारखंड बचाओ’ महारैली का आयोजन किया. महारैली के मंच से वक्ताओं ने स्थानीय नीति और सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधन को वापस लेने के लिए राज्य सरकार व 28 आदिवासी विधायकों को एक माह का अल्टीमेटम दिया है. एएसए […]
रांची : आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) ने शुक्रवार को शहीद मैदान के समीप ‘सरकार गिराओ, झारखंड बचाओ’ महारैली का आयोजन किया. महारैली के मंच से वक्ताओं ने स्थानीय नीति और सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधन को वापस लेने के लिए राज्य सरकार व 28 आदिवासी विधायकों को एक माह का अल्टीमेटम दिया है. एएसए के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुरमू ने कहा कि आदिवासी विधायक एक माह में सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किये जा रहे संशोधन को वापस करायें या सामूहिक इस्तीफा देकर विधानसभा को भंग करायें. ऐसा नहीं करने पर आदिवासी समाज इनके खिलाफ मोरचा खोलेगा.
शहीद मैदान के समीप महारैली में आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) के वक्ताओं ने राज्य सरकार, 28 आदिवासी विधायकों और यहां पर एमओयू करनेवाले उद्योगपतियों को आदिवासियों का सबसे बड़ा शत्रु बताया है. कहा कि अगर सात मई तक मांगें नहीं मानी गयी, तो आठ मई से इन्हें सजा सुनाने के लिए प्रक्रिया शुरू की जायेगी. आठ मई को सभी प्रखंडों में समीक्षा बैठक होगी, जिसमें निर्णय लिया जायेगा कि आदिवासी विधायकों को क्या सजा सुनायी जाये. नौ मई को जिलों में बैठक होगी. 10 मई को बिरसा मुंडा की जन्मभूमि खूंटी में केंद्रीय स्तर की समीक्षा बैठक होगी. इसका फैसला 17 मई को राजधानी रांची में होने वाली रैली में सुनाया जायेगा. इससे पहले 12,13 व 14 मई को प्रखंड से लेकर जिलों में सरकार और सभी 28 आदिवासी विधायकों का पुतला फूंका जायेगा.
एएसए के राष्ट्रीय अध्यक्ष सालखन मुरमू ने कहा कि स्थानीय नीति व सीएनटी-एसपीटी एक्ट में किया जा रहा संशोधन आदिवासियों के लिए फांसी का फंदा है. सरकार आदिवासियों का अस्तित्व समाप्त करना चाहती है. सरकार की इस रणनीति में झारखंड के 28 आदिवासी विधायकों की भी भागीदारी है. अगर आदिवासियों को इससे बचना है, तो तीन माह में ठोस निर्णय लेना होगा, अन्यथा हमारे साथ-साथ आनेवाली पीढ़ी भी खत्म हो जायेगी. सरकार ने आदिवासियों की जमीन, नौकरी, गांव लूटने के लिए स्थानीय नीति व सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन किया है. जिस प्रकार इंदिरा गांधी की सरकार ने वर्ष 1975 में इमरजेंसी लगाया था, उसी प्रकार झारखंड सरकार ने आदिवासियों के खिलाफ अघोषित इमरजेंसी लगा दिया है. उन्होंने कहा कि भगवान बिरसा मुंडा समेत वीर शहीदों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर सीएनटी-एसपीटी कानून बनवाया. आज उसी कानून का सरकार गला घोंट रही है. यह सीधे तौर पर आदिवासियों पर हमला है.
समाप्त हो जायेगा अस्तित्व : अरुण
पूर्व आइपीएस सह एएसए के प्रदेश संयोजक अरुण उरांव ने कहा कि झारखंड सरकार स्थानीय नीति व सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन कर आदिवासियों का अस्तित्व मिटाना चाहती है. हमें अपने हक व अधिकार की लड़ाई के लिए मजबूर किया जा रहा है. पुलिस प्रशासन व विभिन्न संगठनों के द्वारा इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की जा रही है. आदिवासी स्थानीय नीति को लेकर 1932 के खतियान की मांग करते रहे, लेकिन सरकार ने 1985 का कट ऑफ डेट तय कर दिया है. ऐसा होने से नौकरी बाहरी के बीच रेवड़ी की तरह बंट जायेगा और आदिवासी मुंह देखते रह जायेंगे. सरकार के इस काम में आदिवासी विधायकों की भी भूमिका है.