झारखंड के चार जिलों में कराये गये सर्वे में 11.1 फीसदी लोगों में मनोरोग की समस्या पायी गयी है. ध्यान देने वाली बात यह है कि देश में करीब दस फीसदी लोग मनोरोग से पीड़ितहैं. इस हिसाब से देखा जाये तो झारखंड के चार जिलों के मनोरोगियों के आंकड़े राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादाहैं. राज्य के 24 जिलों में से मात्र चार जिलों में ही मनोरोग का इलाज हो रहा है. सीआइपी के चिकित्सक सह सर्वे के सह समन्वयक डॉ निशांत गोयल ने बताया कि झारखंड की पूरी आबादी (3.29 करोड़) के आधार पर इसका आकलन करें, तो करीब 36.51 लाख लोगों में मनोरोग के सामान्य लक्षण पाये गये.
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झारखंड में मनोरोग की समस्या : व्यक्ति के साथ समाज को भी नुकसान
झारखंड के चार जिलों में कराये गये सर्वे में 11.1 फीसदी लोगों में मनोरोग की समस्या पायी गयी है. ध्यान देने वाली बात यह है कि देश में करीब दस फीसदी लोग मनोरोग से पीड़ितहैं. इस हिसाब से देखा जाये तो झारखंड के चार जिलों के मनोरोगियों के आंकड़े राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादाहैं. राज्य […]
जब किसी इंसान का व्यवहार स्वयं के लिए या समुदाय में दूसरे लोगों के लिए असहज स्थिति पैदा करने लगे तो इस मनोरोग कहते हैं. मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का संबंध अपने परिवार और सहकर्मियों के साथ सामान्य नहीं रहता है. देश के अधिकांश हिस्सों में आज भी मानसिक रोगियों के लिएएक शब्द ‘पागल’ का इस्तेमाल होता है. मनोवैज्ञानिकों की मानें तोपागल शब्दतकनीकी रूप से गलत है और यहीं से समस्या की शुरुआत होती है.
मनोरोग से ग्रसित शख्स की पहचान समाज आसानी से नहीं कर पाता है. जागरूकता की कमी की वजह से इस तरह की स्थितियां पैदा हुई है.आमतौर पर लोग शारारिक समस्या को लेकर सजग होते हैं लेकिन मनोरोग को लेकर सक्रियता नहीं दिखाते हैं. सीआइपी के निदेशक सह सर्वे के राज्य समन्वयक डॉ डी राम और पूर्व चिकित्सक डॉ विनोद सिन्हा ने कहा कि राज्य में मात्र 25 फीसदी लोगों का ही इलाज हो पा रहा है. मनोरोग के इलाज की जो स्थिति है, उसमें सुधार नहीं हुआ, तो गंभीर मनोरोगियों की संख्या आने वाले दिनों में बढ़ेगी. 2001 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आयी कि संसार में दस में चार लोगों को मनोरोग असमर्थ बताती है.
तीव्र विकास, पलायन, बढ़ती हुई आर्थिक असामनता, बेरोजगारी और हिंसा के स्तरों मेंहोती बढ़तोत्तरी के चलते समुदायों का समाजिक ताना – बाना बदल रहा है. बदलती हुई समाजिक-आर्थिक परिस्थिति में लोग खुद को ढाल नहीं पाते हैं. कई बार नशे की वजह से भी लोग मनोरोग के शिकार हो जाते हैं. शारारिक समस्या का नुकसान व्यक्ति को होता है, वहीं मानसिक बीमारी का नुकसान पीड़ित के साथ सीधे-सीधे समाज को भी होता है.
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