पहले महंगी बनती थीं सड़कें, अब बनेगी सस्ती

रांची : प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से अब सस्ती सड़क बनेगी. यानी सड़क की लागत कम हो गयी है. पहले सड़कें महंगी बनती थीं. केंद्र सरकार की ओर से पूर्व में 50 लाख रुपये प्रति किमी के हिसाब से रेट तय किया गया था. इस रेट पर राज्यों को राशि भी दी थी. झारखंड को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 15, 2017 6:44 AM
रांची : प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से अब सस्ती सड़क बनेगी. यानी सड़क की लागत कम हो गयी है. पहले सड़कें महंगी बनती थीं. केंद्र सरकार की ओर से पूर्व में 50 लाख रुपये प्रति किमी के हिसाब से रेट तय किया गया था. इस रेट पर राज्यों को राशि भी दी थी. झारखंड को भी इसी रेट से राशि मिली थी और काम हुआ था. इस बार केंद्र सरकार ने राशि घटा दी है.

इस बार प्रति किमी 42 लाख रुपये की लागत से योजनाअों की स्वीकृति दी गयी है. इसी राशि में सड़क का निर्माण कराना है. झारखंड में इसकी तैयारी कर ली गयी है.

वित्तीय वर्ष 2013-14 में केंद्र ने 45 लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये प्रति किमी के रेट से सड़क निर्माण की स्वीकृति दी थी. वहीं 2016 में इसका रेट घटा कर 44-46 लाख रुपये प्रति कमी कर दिया गया. फिलहाल जो टेंडर निकाले गये हैं, वे 44-46 लाख रुपये प्रति किमी के रेट से स्वीकृति योजनाओं के हैं. इनका टेंडर निष्पादित भी हो रहा है. अभी जो नया टेंडर होगा, उसमें प्रति किमी 42 लाख रुपये खर्च किये जाने हैं.

केंद्र सरकार ने सड़क निर्माण की राशि में की कटौती
क्या है मामला
नेशनल रूरल रोड डेवलपमेंट अॉथोरिटी (एनआरआरडीए) ने समीक्षा में पाया कि राज्यों को काम कराने के लिए ज्यादा पैसे दिये जा रहे हैं. ऐसे में लागत कम करने को कहा गया. राज्य सरकार ने अपना तर्क दिया कि राशि कम नहीं की जा सकती है. राज्य के अधिकारी इसके लिए दिल्ली भी गये. उन्होंने कहा कि वास्तविक लागत से कम में काम कराना संभव नहीं होगा. इस पर अॉथोरिटी अड़ी रही. अंतत: अॉथोरिटी ने 42 लाख रुपये प्रति किमी के हिसाब से ही काम कराने के लिए राशि दी.
उठ रहे सवाल, कैसे बनेगी सड़क
कम लागत पर सड़क कैसे बनेगी, इसको लेकर सवाल उठ रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि पहले अधिक पैसे लेकर भी वही सड़क बनती थी और अब कम पैसे में भी वही सड़क बनेगी, तो फिर ज्यादा पैसे का क्या होता था? अगर कम लागत पर सड़क बनाने को विभाग तैयार है, तो फिर स्पेसीफिकेशन में क्या बदलाव किया जा रहा है? पहले से क्वालिटी में बदलाव किया जा रहा है या गुणवत्ता के साथ समझौता किया जा रहा है? ऐसे सवाल उठ रहे हैं.

Next Article

Exit mobile version