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तलाश एक महामना की

जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आज मैं दुखी हूं. सामने महीनों पुराना एक पत्र पड़ा है़ पत्र एक शिक्षक का है़ एक ऐसी संस्था के शिक्षक का, जिसे हम विश्वविद्यालय कहते है़ं उसके कुलपति का यह पत्र है़ इसमें लिखा है कि संस्था का निर्माण केंद्रीय पब्लिक वर्क्स विभाग द्वारा किया गया हैऔर उस विभाग के लगभग […]

जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद
आज मैं दुखी हूं. सामने महीनों पुराना एक पत्र पड़ा है़ पत्र एक शिक्षक का है़ एक ऐसी संस्था के शिक्षक का, जिसे हम विश्वविद्यालय कहते है़ं उसके कुलपति का यह पत्र है़
इसमें लिखा है कि संस्था का निर्माण केंद्रीय पब्लिक वर्क्स विभाग द्वारा किया गया हैऔर उस विभाग के लगभग 48 करोड़ रुपये इस विश्वविद्यालय पर बाकी है़ं कल एक सहायक अभियंता यह धमकी कुलपति को दे गया कि बकाया दो नहीं तो मकान खाली करो़ आप समझ गये होंगे कि यह मामला झारखंड के इकलौते नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी का है़ जहां हाल में विद्यार्थियों ने हड़ताल और तालाबंदी भी की, जो समाचार पत्रों की खबर भी बनी. यहां तक कि कुलपति छुट्टी पर चले गये़ माहौल फिलहाल शांत है़
मेरे दु:ख का मूल कारण यह नहीं है कि ऐसा हुआ. दु:ख का कारण यह है कि एक विश्वविद्यालय के कुलपति को एक बहुत छोटे पदाधिकारी ने कह डाला कि ब॔काया दो या मकान खाली करो़ जैसे कि वह विश्वविद्यालय न होकर उसकी निजी संपत्ति हो़ कुलपति का पद मेरी दृष्टि में अत्यंत सम्मानित पद है और होना चाहिए क्योंकि यह हमारी शिक्षा प्रणाली की अस्मिता से जुड़ा प्रश्न है़
जो समाज अपने शिक्षकों को सम्मान नहीं दे सकता, वह क्या खाक सुसंस्कृत और सभ्य होगा़ शायद नहीं. अक्सर सुनता हूं कि कुलपतियों को बड़े दरबारों में हाजिरी बजानी पड़ती है और ऊंची कुरसियों पर बैठे लोग उन्हें घंटों बाद दर्शन देते है़ं जबकि गुरु के आगमन पर नृप भी सिंहासन से उठ खड़े हो जाते थे़ ये पदाधिकारी यह भूल जाते हैं कि वे किसी विश्वविद्यालय के ही प्रसाद है़ं जब कुलपतियों की ऐसी स्थिति है, तो विद्यालयों के शिक्षकों के साथ कैसा व्यवहार होता होगा, यह बताने की जरूरत नहीं है़ क्या सरकार के पास, जो झारखंड के उड़ान की बातें कर रही है, इतने रुपये नहीं हैं कि वह राज्य के इस इकलौते संस्थान को अपमान और आर्थिक संकट से निकाल ले़
इसलिए आज मुझे महामना की तलाश है, जो घर-घर घूम कर मात्र एक-एक रुपये मांगे और संस्था की मर्यादा की रक्षा करे़ दावायह है कि हम झारखंड को शिक्षा का- उच्च शिक्षा का हब बनायंगे और वास्तविकता यह है कि शिक्षकों को आदर देना हम नहीं सीखेगे़
बात यहीं पर आकर अटक जाती है कि जिस दिन हमारा समाज शिक्षकों का आदर करना सीख लेगा, शिक्षा का स्तर और शिक्षण संस्थाएं स्वतः ठीक हो जायेगी़ लेखक झारखंड उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं

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