07 की दवा से ठीक हो सकते हैं मरीज, लेकिन लिखते हैं 116 की
राजीव पांडेय रांची : डॉक्टर ही जेनरिक दवा नहीं लिखते है, क्योंकि उनको ब्रांडेड दवा लिखने की आदत हो गयी है. कई डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखते-लिखते दवाओं के केमिकल नाम तक भूल गये हैं. लिहाजा, वह मरीजों को ब्रांडेड दवा का ही परामर्श देते हैं और मरीज को विवश होकर ब्रांडेड दवाएं ही खरीदनी पड़ती […]
राजीव पांडेय
रांची : डॉक्टर ही जेनरिक दवा नहीं लिखते है, क्योंकि उनको ब्रांडेड दवा लिखने की आदत हो गयी है. कई डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखते-लिखते दवाओं के केमिकल नाम तक भूल गये हैं. लिहाजा, वह मरीजों को ब्रांडेड दवा का ही परामर्श देते हैं और मरीज को विवश होकर ब्रांडेड दवाएं ही खरीदनी पड़ती हैं. ब्रांडेड दवाएं इतनी महंगी होती हैं कि आम आदमी का महीने भर की दवा खरीदते जेब खाली हो जाती है. प्रभात खबर ने जब राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स एवं सदर अस्पताल का जायजा लिया, तो अधिकांश मरीजों की परामर्श परची पर ब्रांडेड दवा ही लिखी हुई थीं.
जानकार बताते है कि ब्रांडेड दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को कंपनी द्वारा कई प्रकार के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से फायदा पहुंचाया जाता है. ऐसे में डॉक्टर ब्रांडेड दवा ही लिखते हैं एवं जेनरिक दवाओं पर लोगों को भ्रमित करते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ब्रांडेड के बजाय जेनरिक दवा डाॅक्टरों को लिखने के लिए नीति बनाने के बाद ही बदलाव आ सकता है.
राज्य के जनऔषधि पर सामान्य दवाएं तक नहीं
प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र रिम्स में सामान्य बीमारी की दवाएं तक नहीं है. जब जनऔषधि केंद्र का जायजा लिया गया तो डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, थायराइड गैस एवं हार्ट की दवा नहीं मिली. जबकि सरकार जनऔषधि केंद्रों पर जेनरिक दवाओं को मुहैया कराने का निर्देश दिया है. वहीं, सदर अस्पताल में भी सामान्य दवाएं नहीं है. अगर कोई चिकित्सक एक-दो जेनरिक दवा लिख भी देता है, तो वह जन औषधि केंद्रों पर नहीं मिलती है. रिम्स व सदर अस्पताल के जेनरिक केंद्रों में 365 दवाआें की जगह सिर्फ 70 से 100 दवाएं ही हैं.
करनी होगी प्लानिंग
रिम्स के प्रतिष्ठित फिजिसियन ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि जेनरिक दवा को आम आदमी तक पहुंचाना आसान काम नहीं है. सरकार को इसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना होगा. पहले जेनरिक दवा के उत्पादन को बढ़ाना होगा. सरकारी दवा कंपनी को स्थापित करना होगा. दूसरी दवाओं की गुणवत्ता की जांच करानी होगी एवं तीसरे आम लोगों तक उपलब्धता सुनिश्चित करना होगा. उन्होंने बताया कि चिकित्सक जितनी ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं, उसकी आधी दवा भी जेनरिक के रूप में उपलब्ध नहीं है. देश में सिर्फ 10 प्रतिशत ही जेनरिक दवा का उत्पाद होता है. ऐसे में नीति बनाने से पहले उत्पादन, गुणवत्ता की जांच एवं उपलब्धता पर जोर देना होगा.
ब्रांडेड दवा कीमत
डायबिटीज (मेटफार्मिन) 16 से 36 रुपये
डायबिटीज (ग्लिमप्राइड) 94 रुपये
ब्लड प्रेशर (एम्लोडीपिन) 49 रुपये
ब्लड प्रेशर (टेल्मीसार्टन) 53 से 65 रुपये
थायराइड (थाइरोक्सीन) 69 से 110 रुपये
गैस की दवा (ओमेप्राजोल) 40 से 50 रुपये
गैस की दवा (पेंटेप्राजोल) 116 रुपये
गैस की दवा (रेमेप्राजोल) 60 रुपये
जेनेरिक दवा कीमत
डायबिटीज (मेटफार्मिन) 6 से 7 रुपये
डायबिटीज (ग्लिमप्राइड) 3 रुपये
ब्लड प्रेशर (एम्लोडीपिन) 3 से 4 रुपये
ब्लड प्रेशर (टेल्मीसार्टन) 14 रुपये
थायराइड (थाइरोक्सीन) 31 रुपये
गैस की दवा (ओमेप्राजोल) 7 रुपये
गैस की दवा (पेंटेप्राजोल) 10 रुपये
गैस की दवा (रेमेप्राजोल) 6 रुपये
ब्रांडेड का आर्थिक बोझ
एक मरीज को डायबिटीज, ब्लड प्रेशर एवं गैस की समस्या है और डॉक्टर ब्रांडेड दवा लिखता है, तो मेटफार्मिन पर उसे 48 रुपये, टेल्मीसार्टन पर 95 एवं गैस की दवा पेंटेप्राजोल पर 348 रुपये खर्च करने पड़ेंगे. एक माह की दवा पर 591 रुपये का खर्च. इसी की जेनरिक दवा लेने पर मेटफार्मिन के िलए 21 रुपये, टेल्मीसार्टन 42 एवं पेंटेप्राजोल पर 30 रुपये खर्च होता है. यानी मात्र 93 रुपये का खर्च आता है.