रांची: झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कांग्रेसी नेता-कार्यकर्ता सहमे रहते हैं. यहां वे नक्सलियों के टारगेट पर रहते हैं. नक्सल प्रभावित इलाकों में काम कर रहे नेताओं के अनुसार, एंटी नक्सल ऑपरेशन के शुरू होने के बाद परेशानी और बढ़ गयी है. जनता के बीच जाने और कोई कार्यक्रम आयोजित करने में कार्यकर्ता कतराते हैं. यही कारण है कि सुदूर इलाकों में राजनीतिक गतिविधियां ठप रहती हैं. नेता-कार्यकर्ता जिला और प्रखंड स्तर पर सिमटे रहते हैं.
वर्ष 2011 में धालभूमगढ़ में कांग्रेस के प्रखंड अध्यक्ष गोवर्धन महली की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी. पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप बलमुचु ने जांच कमेटी बनायी. चतरा में भी कांग्रेस जिलाध्यक्ष शंकर साहू की हत्या उग्रवादियों ने कर दी थी. इसके बाद स्टीफन मरांडी और राधाकृष्ण किशोर की सदस्यतावाली कमेटी ने नक्सली क्षेत्रों में काम कर रहे नेताओं से समस्याएं जानी. फिर इसकी रिपोर्ट कमेटी ने बलमुचु को सौंप दी.
साथ ही झारखंड कांग्रेस के नेताओं की समस्याएं आला नेताओं को भी बतायीं, पर इसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया गया. कमेटी ने कहा था कि नक्सल प्रभावी क्षेत्रों में कांग्रेसी भयभीत हैं. पार्टी से नाता तोड़ रहे हैं. कमेटी ने सुझाव भी दिये थे, जिन पर अमल नहीं हुआ. स्थिति यह है कि ऐसे क्षेत्रों से कांग्रेस कटती जा रही है.