।।अनुज कुमार सिन्हा ।।
इन दो तस्वीरों को देखिए. इनमें से एक तसवीर अपने अखबार प्रभात खबर के 25 अप्रैल के अंक में छपी है. मार्मिक तसवीर. पतरातू घाटी में बाराती बस दुर्घटना में इस बच्चे ने अपने भाई को खो दिया. स्कूल में पढ़ता था. बड़े भाई को अंतिम विदाई देने के लिए छोटा भाई श्मशान घाट आया. कड़ी धूप थी. माहौल गमगीन था. एक साथ कई शवोंका अंतिम संस्कार करना था. देर हो रही थी.
गरमी बढ़ती जा रही थी. छोटा भाई अपने बड़े भाई (यहां शव की बात हो रही है) को धूप से बचाने के लिए बेचैन था. छाता से उसने अपने भाई के शव को धूप से बचाने का भरसक प्रयास किया. वह यह जान रहा था कि उसका भाई अब नहीं रहा. आंखों से आंसू बह रहे थे लेकिन भाई का प्रेम यह मानने को तैयार नहीं था कि उसके बड़े भाई पर न तो धूप का असर पड़ने वाला है, न ही पानी का. यह तसवीर समाज के किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को विचलित कर सकती है. मुझे भी किया. इस तसवीर को देखते ही मैं अतीत में खो गया. 43 साल पहले की एक घटना ताजा हो गयी.
1974 की घटना थी. हजारीबाग में मेरे दादाजी का देहांत हुआ था. तब मैं बहुत छोटा था. अगस्त का माह था. काफी बारिश हो रही थी. बहुत जिद कर मैं भी दादाजी के अंतिम संस्कार के लिए घाट चला गया था. तब बच्चों को घाट पर कोई ले जाना नहीं चाहता था. मौसम भी बहुत ही खराब था. तेज बारिश के कारण ट्रक से गया था.
मुझे वह घटना याद है. घाट पर जब हमलोग पहुंचे, बारिश तेज हो गयी थी. साथ गये सभी लोग बारिश से बचने के लिए एक शेड की ओर भागे. मैं नहीं भागा था. मुझे लगा था कि दादाजी भींग रहे हैं. तब मुझे इतना ज्ञान नहीं था कि दादाजी अब इस दुनिया में नहीं हैं. मैं दादाजी की अर्थी को खींच कर उसे एक पेड़ के नीचे लाने का प्रयास कर रहा था ताकि दादाजी को पानी से बचा सकूं. चाह कर भी अर्थी को हिला नहीं पाया था. लेकिन हिम्मत भी नहीं हार रहा था. उसी समय मेरे एक चाचा शेड से बाहर निकल कर मेरे पास आये, मेरा हाथ पकड़ कर कहा-तुम्हारे दादाजी अब जिंदा नहीं हैं. उन पर पानी का कोई असर नहीं पड़ेगा. मैं चाचा के साथ शेड में चला गया था. आज जब यह तसवीर देखी तो सालों पुरानी वह घटना याद आ गयी.