ग्राहकों के पैसे लूट रहे मेडिक्लेम कंपनी और अस्पताल
कैशलेस कार्ड होने पर वास्तविक खर्च से 25 फीसदी तक बढ़ जाता है बिल
राजीव पांडेय
रांची : मेडिक्लेम के नाम पर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां और अस्पताल लोगों को लूट रहे हैं. मरीज के पास कैशलेस कार्ड की जानकारी होते ही अस्पताल इलाज का खर्च अधिक बता देते हैं. वहीं, अगर मरीज के पास किसी भी हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी का कैशलेस कार्ड नहीं है, तो उसे इलाज का खर्च कम बताया जाता है. कैशलेस कार्ड होने पर खर्च 20 से 25% तक बढ़ा दिया जाता है. भले ही इसका भुगतान मरीज को नहीं करना पड़ता, पर अस्पतालों की ओर से इंश्योरेंस कंपनियों को भेजे गये दावे में अधिक खर्च दिखाने से प्रत्यक्ष रूप से मरीज को ही नुकसान सहना पड़ रहा है. कंपनियां मरीज के कैशलेस लिमिट से अधिक राशि घटा देती हैं.
प्रसव का दो बिल बताया: राजधानी के एक बड़े अस्पताल में ऐसा ही मामला सामने आया है. प्रसव कराने पहुंची महिला के परिजनों को दो तरह का खर्च बताया गया. पहले परिजनों को प्रसव का पूरा पैकेज 38,000 हजार रुपये बताया गया. पर अस्पताल को जैसे ही जानकारी मिली कि महिला के नाम से मेडिक्लेम है, तो डिलिवरी का खर्च 55,000 रुपये कर दिया गया. यही नहीं, अस्पताल ने दोनों तरह के बिल भी जारी कर दिये. महिला के परिजनों का कहना है कि ऐसे में नुकसान न तो अस्पताल को है, न ही इंश्योरेंस कंपनियों को. प्रीमियम हम देते हैं, इसलिए घाटा तो हमारा हुआ है. इंश्योरेंस कंपनियां कैशलेस लिमिट घटा देती हैं.
बढ़ जाता है हर चीज का खर्च : मरीजों के पास कैशलेस कार्ड देखते ही अस्पताल हर चीज का बिल बढ़ा देते हैं. ओटी चार्ज, नर्सिंग चार्ज, डॉक्टर विजिटिंग चार्ज को भी बढ़ा दिया जाता है. मरीज जब पूछते हैं, तो कहा जाता है कि इलाज का खर्च तो इंश्योरेंस कंपनी को देना है, फिर आप क्यों चिंतित हो रहे हैं. आप आराम से इलाज कराइए अौर अपने मरीज को स्वस्थ होकर ले जाइए.
राजधानी में 30 मेडिक्लेम कंपनियां : राजधानी में 30 मेडिक्लेम कंपनियां पॉलिसी बेचती हैं. इसमें पांच कंपनी पूरी तरह से मेडिकल इंश्योरेंस में काम करती हैं. बैंक भी मेडिकल इंश्योरेंस के काम करते हैं. बैंक मेडिक्लेम का जिम्मा थर्ड पार्टी एडमिनिस्टेटर (टीएपी) को देते हैं. टीएपी को एकमुश्त राशि दे देते हैं. अब टीएपी क्लेम देखता है. टीएपी ज्यादा से ज्यादा पैसा बचाना चाहता है, इसलिए कार्ड धारक के बिल में कटौती की जाती है.
12% तक काटती है इंश्योरेंस कंपनी
अस्पतालों का कहना है कि इंश्याेरेंस कंपनियां इलाज के बिल में 10 से 12 फीसदी की राशि काट लेती है, इसलिए पैसा ज्यादा लेना पड़ता है. अगर पैसा ज्यादा नहीं लिया जाये, तो हमें घाटा हो जायेगा. एक अस्पताल संचालक ने बताया, इंश्योरेंस कंपनियां बिल का भुगतान काफी देर से करती है. कई मामलों में सहमति दे देने के छह माह बाद तक पैसों का भुगतान नहीं हो पाता है. इससे अस्पताल को नुकसान होता है, राशि का फ्लो रुक जाता है. इस कारण अस्पताल इंश्याेरेंस कंपनियों को अधिक पैसों का बिल भेजते हैं.
मरीजों को धोखा देते हैं अस्पताल
एक इंश्योरेंस कंपनी के अभिकर्ता ने बताया, मरीज के भुगतान की सहमति आने पर ही अस्पताल वाले मरीज की छुट्टी करते हैं. ऐसे में अस्पताल वाले ही मरीजों को धोखा देते हैं. अभिकर्ता ने यह भी बताया कि अस्पताल मरीज को इंडोर बिल नहीं देते. इंडोर बिल में ऑपरेशन, दवा, बेड, नर्सिंग व डॉक्टर विजिट के नाम पर कितना पैसा लिया जाता है, इसकी जानकारी होती है. जब कार्ड धारक बिल नहीं देख पाते हैं, तो अस्पताल अपने हिसाब से इसे तैयार करा लेता है. ऐसे में कार्ड धारक को इंडोर बिल की डिमांड करनी चाहिए.
अस्पताल और इंश्योरेंस कंपनी में होता है अनुबंध
एक अस्पताल संचालक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अस्पताल व इंश्याेरेंस कंपनियों में अनुबंध होता है. इंश्याेरेंस कंपनी व अस्पताल कम खर्च (इलाज की न्यूनतम दर) पर अापस में अनुबंध करते हैं. हर इलाज का खर्च अस्पताल व इंश्योरेंस कंपनी की सहमति पर तय होता है. ऐसे में इलाज के खर्च में इंश्योरेंस कंपनियां कटौती क्यों करती हैं. इसका खमियाजा तो मरीज को भुगतना पड़ता है.