भारतीय संविधान में विभिन्न संस्कृतियों का समावेश

अधिवक्ता परिषद के सिल्वर जुबली पर सेमिनार, जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद ने कहा रांची : संविधान भारत की आत्मा है. माैलिक अधिकार संविधान के प्राण हैं. भारतीय संविधान में विभिन्न संस्कृतियों का समावेश है. यदि एक संस्कृति को प्रश्रय दिया जायेगा, तो वह अखंडित नहीं रह सकेगा. उक्त बातें हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2017 7:05 AM
अधिवक्ता परिषद के सिल्वर जुबली पर सेमिनार, जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद ने कहा
रांची : संविधान भारत की आत्मा है. माैलिक अधिकार संविधान के प्राण हैं. भारतीय संविधान में विभिन्न संस्कृतियों का समावेश है. यदि एक संस्कृति को प्रश्रय दिया जायेगा, तो वह अखंडित नहीं रह सकेगा. उक्त बातें हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद ने कही.
वह शनिवार को बताैर मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में डोरंडा स्थित पलाश सभागार में आयोजित अधिवक्ता परिषद के सिल्वर जुबली वर्ष 2016-2017 के उदघाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. इस अवसर पर संविधान : भारतीय दर्शन की अभिव्यक्ति विषय पर सेमिनार का भी आयोजन किया गया. अधिवक्ता परिषद झारखंड के तत्वावधान में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था.
जस्टिस प्रसाद ने कहा कि धर्म लोगों को आपस में जोड़ने का काम करता है. धर्म वह है, जो धारण करता है. जितने भी धर्म हैं, वह राजधर्म में समाहित हो जाते हैं. आज कोई राजा नहीं है.
आज का राजा संविधान है. चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र में राजधर्म का जिक्र किया है. राजा को केवल एक ही अधिकार होता है. जब वह न्याय करे, तो शास्त्रों के आधार पर करे. भारतीय संस्कृति में ऐसा कभी नहीं हुआ कि राजा ने जो बोल दिया वह कानून बन गया.
शास्त्र में जो रास्ता दिखाया गया है, उसी के अनुसार राज्य चलायें. अरब के देशों में जो पहनावा है, उसमें लोग शरीर को ढकते हैं. ऐसा वहां के माैसम की वजह से है. जो बाद में परंपरा बन गये. जो दूसरे देशों में सत्य है, वह हमारे में देश में भी सत्य हो, ऐसा नहीं हो सकता. किसी भी देश का कानून वहां की परंपरा, रिति-रिवाज, संस्कृति आदि को देख कर बनाया जाता है. उसका अंधानुकरण नहीं करना चाहिए. जस्टिस प्रसाद ने कहा कि जो लचीला है, वह नम्र है. नम्र है, तो विद्वान है. विद्वान सिर झुका कर चलते हैं. कम ज्ञानी सिर उठा कर चलते हैं.
परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष विनायक दीक्षित ने कहा कि परिषद में महिलाअों को अधिक प्रतिनिधित्व देने की जरूरत है. नये प्रस्तावित एडवोकेट्स बिल से अधिवक्ताअों के अधिकार कम होने की आशंका है. इसका हर स्तर पर विरोध किया जा रहा है. श्री दीक्षित ने राष्ट्रवाद पर विचार रखते हुए कहा कि सोसाइटी को शिक्षित करना होगा. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में लोग कहते हैं कि कानून गदहे जैसा है. समाज में दुख है. वेदना है.
शोषण है. समाज को लीगल एड की जरूरत है. परिषद के राष्ट्रीय सचिव वीरेंद्र मोहन भारद्वाज ने कहा कि सात सितंबर 1992 को अधिवक्ता परिषद की स्थापना की गयी थी. परिषद का मुख्य फोकस सदस्यों के व्यक्तित्व के विकास के साथ-साथ संस्कार सिखाना भी है. हम अपना भविष्य नहीं बदल सकते हैं, लेकिन अपनी आदतें बदल कर भविष्य जरूर संवार सकते हैं.
आरएसएस के प्रांत सह कार्यवाह राकेश लाल ने कहा कि हिंदुअों का संगठन है, लेकिन उसका किसी आैर से कोई बैमनस्य नहीं है. सनातन काल से भारत हिंदू राष्ट्र रहा है.
यहां रहनेवाला हर व्यक्ति भारतीय कहलायेगा. भारतीय का अर्थ है हिंदुत्व. उन्होंने कहा कि संविधान और भारतीय दर्शन पर बहस हो सकती है. धर्म के आधार पर भारत का बंटवारा हुआ था. दूसरे देश के प्रावधान को अपने संविधान में शामिल किया गया. 90 से अधिक संशोधन हो चुके हैं.
मौके पर एएसजीआइ अधिवक्ता राजीव सिन्हा, झारखंड स्टेट बार काउंसिल के अध्यक्ष राजीव रंजन, राष्ट्रीय संगठन सचिव जयदीप राय, वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार सिन्हा ने भी अपने विचार रखे. परिषद के झारखंड अध्यक्ष सच्चिदानंद प्रसाद ने अतिथियों का स्वागत किया. महासचिव प्रशांत विद्यार्थी ने प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.
विषय प्रवेश व मंच का संचालन परिषद के वरीय उपाध्यक्ष अधिवक्ता राजेंद्र कृष्णा ने किया, जबकि शिवनाथ अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया. इस अवसर पर एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष वरीय अधिवक्ता एके कश्यप, प्रशांत कुमार सिंह, आशुतोष आनंद, अमित सिन्हा सहित सैकड़ों की संख्या में अधिवक्ता उपस्थित थे.
हमारे संविधान में विश्व बंधुत्व : जस्टिस पटेल
लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने सेमिनार के निष्कर्ष पर पहुंचते हुए कहा कि भारतीय दर्शन देश के संविधान में दिखता है. संविधान सभा के सदस्यों व उनकी पृष्ठभूमि को देख कर इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है. हमारा संविधान विश्व बंधुत्व व सर्वधर्म समभाव पर आधारित है. प्रस्तावना में ही भारतीय दर्शन परिलक्षित होता है. संविधान में व्यक्ति की गरिमा व देश की एकता-अखंडता की बात कही गयी है.

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