12 साल बाद फिर सड़कों पर निकलीं महिलाएं, शुरू हुआ जनी शिकार

प्रवीण मुंडा रांची : 12 वर्षों के बाद एक बार फिर से जनी शिकार शुरू हो गया है. पैंट, शर्ट, आंखों पर गोगल्स अौर माथे पर पगड़ी लगाये पुरुष वेश में महिलाएं शिकार के लिए निकल गयी हैं. लाठी, भाला, तीर-धनुष, टांगी जैसे पारंपरिक हथियारों से लैस 25-30 महिलाअों के अलग-अलग समूह विभिन्न क्षेत्रों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 30, 2017 7:11 AM
प्रवीण मुंडा
रांची : 12 वर्षों के बाद एक बार फिर से जनी शिकार शुरू हो गया है. पैंट, शर्ट, आंखों पर गोगल्स अौर माथे पर पगड़ी लगाये पुरुष वेश में महिलाएं शिकार के लिए निकल गयी हैं. लाठी, भाला, तीर-धनुष, टांगी जैसे पारंपरिक हथियारों से लैस 25-30 महिलाअों के अलग-अलग समूह विभिन्न क्षेत्रों में घूम-घूम कर शिकार कर रही हैं. मुर्गा, बकरी, भेड़ जो भी मिल जाये ये मिल कर उसे घेरती हैं अौर उसका शिकार करती हैं. दिनभर घूमने के बाद ये शिकार किये गये जानवरों को मिल कर पकाती हैं अौर फिर होता है सामूहिक भोज. अगले कुछ दिनों तक यह सिलसिला चलता रहेगा.
क्यों होता है जनी शिकार
जनी शिकार झारखंड के आदिवासी इलाकों में प्रत्येक 12 वर्ष पर होनेवाला आयोजन है. इस शिकार पर्व के पीछे एक गौरवशाली कहानी/मिथक है. आज से सैकड़ों साल पहले जब रोहतासगढ़ में उरांवों का शासन था, तब मुगलों ने रोहतासगढ़ पर कब्जा करने के लिए हमला किया.
पर वे कभी भी रोहतासगढ़ पर कब्जा नहीं कर सके. फिर मुगलों ने सरहुल के समय हमला करने की योजना बनायी. पर यह बात उरांव महिलाअों को पता चल गया कि सरहुल के समय हमला होगा. मुगलों ने सरहुल के समय हमला किया. त्योहार की खुमारी में डूबे उरांव पुरुष लड़ने की हालत में नहीं थे. ऐसे में उरांव महिलाअों ने पुरुषों का वेष धारण किया अौर मुगलों के खिलाफ युद्ध किया. युद्ध में फिर से मुगलों की हार हुई.
उन महिलाअों ने तीन बार मुगलों से युद्ध किया, जिसमें दो बार उन्होंने मुगलों को खदेड़ दिया. मुगलों के खिलाफ सैकड़ों वर्ष पहले महिलाअों की उस जीत की याद में हर 12 वर्ष पर जनी शिकार का आयोजन किया जाता है. यह कहानी आज भी आदिवासी समाज को प्रेरित करता है. बुद्धिजीवी प्रभाकर तिर्की कहते हैं कि अतीत के उस संघर्ष से आज भी आदिवासी महिलाएं प्रेरित होती हैं.

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