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फरजी कागजात बना कर बेची दी 57 डिसमिल जमीन

रांची : कागजात की हेराफेरी कर जमीन बेचने का मामला बढ़ता जा रहा है. जमीन हथियाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं. इसका उदाहरण अरगोड़ा में देखने को मिला. फरजी करेक्शन स्लिप का इस्तेमाल कर अरगोड़ा मौजा के प्लॉट नंबर 2649 में 57 डिसमिल जमीन फरजी दस्तावेज बनाकर बेच देने का […]

रांची : कागजात की हेराफेरी कर जमीन बेचने का मामला बढ़ता जा रहा है. जमीन हथियाने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाये जा रहे हैं. इसका उदाहरण अरगोड़ा में देखने को मिला. फरजी करेक्शन स्लिप का इस्तेमाल कर अरगोड़ा मौजा के प्लॉट नंबर 2649 में 57 डिसमिल जमीन फरजी दस्तावेज बनाकर बेच देने का मामला सामने आया है. भुक्तभोगी ने इस संबंध में मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर शिकायत की है.
मजे की बात यह है कि उस करेक्शन स्लिप में जमीन का खाता व प्लॉट संख्या का भी जिक्र नहीं है. जमीन का जो बंटवारानामा बनाया गया है, उसमें रामदेव महतो व हरखदेव महतो के फरजी हस्ताक्षर है. जबकि, परिवार में इस तरह का बंटवारा कभी हुआ ही नहीं. जमीन के वास्तविक मालिक त्रिवेणी राम, नयेंद्र कुमार, नीलू राम, चंद्रशेखर कुमार, चेतन कुमार व थलेश्वर राम हैं.
जमीन बेचने के लिए जिस कुर्सीनामा का उल्लेख किया गया, उसमें मुगिया देवी का अपने आप को वंशज दिखाया है, जबकि मुगिया देवी से कोई संबंध नहीं है. मुगिया देवी वर्ष 1912 में स्वीकार भी कर लिया है. जिन दो लोगों का फरजी हस्ताक्षर किया गया है, उनमें रामदेव महतो व हरखदेव महतो दोनों भाई हैं और उक्त जमीन के दखलकार भी रहे हैं. इस मामले को मुख्यमंत्री रघुवर दास को भी पत्र के माध्यम से जानकारी दे दी गयी है.
आयुक्त ने भी पकड़ी थी गड़बड़ी : जमीन बेचने के लिए जिसकरेक्शन स्लीप का इस्तेमाल किया गया है. उस करेक्शन स्लीप को तत्कालीन आयुक्त केके खंडेलवाल ने जांचोपरांत फरजी पाया था.
मालगुजारी रसीद में प्लॉट नंबर 2669 का भी जिक्र नहीं : दलालों ने वर्ष 2011-12 के जिस मालगुजारी रसीद का इस्तेमाल किया है, उसमें प्लॉट नंबर 2669 का जिक्र नहीं है. बल्कि किसी अन्य प्लॉट का जिक्र किया गया है.
जमीन का विवरण इस प्रकार है : अरगोड़ा मौजा का प्लॉट नंबर 2649 वर्ष 1935 के खतियान में छोटा चमार महतो के नाम से दर्ज है. जिसे उन्होंने वर्ष 1948 में रजिस्ट्री डीड द्वारा अपनी पत्नी जेठनी देवी को ट्रांसफर कर दिया. जेठनी देवी के निधन के बाद से दोनों भाई रामदेव महतो व हरखदेव महतो उक्त भूमि के दखलकार रहे हैं.

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