एक्सपायरी डेट बदल बेची जा रही दवाएं, खतरे में जान
!!राजीव पांडेय!! रांची : रांची में एक्सपायर्ड हो चुकी ब्रांडेड व जेनेरिक दवाएं खुले आम बिक रही हैं. एक्सपायर्ड हो चुकी दवाओं का मैन्युफैक्चरिंग (उत्पाद तिथि) व एक्सपायरी डेट (खराब होने की तिथि) बदल कर इसे फिर से बाजार में बेचा जा रहा है. मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ करनेवाले दवा के एक्सपायर्ड होने […]
!!राजीव पांडेय!!
रांची : रांची में एक्सपायर्ड हो चुकी ब्रांडेड व जेनेरिक दवाएं खुले आम बिक रही हैं. एक्सपायर्ड हो चुकी दवाओं का मैन्युफैक्चरिंग (उत्पाद तिथि) व एक्सपायरी डेट (खराब होने की तिथि) बदल कर इसे फिर से बाजार में बेचा जा रहा है. मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ करनेवाले दवा के एक्सपायर्ड होने पर उसके रैपर पर अंकित लेबल (जिस पर बैच नंबर, मूल्य, एक्सपायरी डेट व मैन्युफैक्चरिंग डेट होता हे) को हटा देते हैं. इसके लिए नेल पॉलिस रिमूवर व अन्य केमिकल का प्रयोग करते हैं. इसके बाद उस पर एक्सपायरी डेट को बढ़ा कर नया लेबल लगा देते हैं. इस तरह एक्सपायर्ड हो चुकी दवाएं फिर से मरीजों को बेच दी जाती हैं. दवाओं का लेबल बदलने से सामान्य व्यक्ति इसे पकड़ नहीं पाता है़ पर मरीजों पर इसके कई दुष्प्रभाव होते हैं. दवा काम नहीं करता है.
कंपनियां ही खोलती हैं रास्ता : जानकार बताते है कि दवा बनानेवाली कंपनियां ही इस जालसाजी का रास्ता दिखाती हैं.वह दवाओं पर लेबल (बैच नंबर, मैन्युफैक्चरिंग व एक्सपायरी की तिथि) लगाने में ऐसी स्याही का प्रयोग करती हैं, जो आसानी से मिट सकती है. कंपनियां को हर हाल में लेबल के लिए इंडेलिबल इंक का प्रयोग करना है, पर वे इस नियम का उल्लंघन कर रही हैं. इंडेलिबल इंक से लिखे गये लेबल को मिटा पाना संभव नहीं होता है.
रिम्स व जन औषधि केंद्र की दवाओं में इंडेलिबल इंक नहीं
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स व जन औषधि केंद्र की दवाओं में भी इंडेलिबल इंक का प्रयोग नहीं किया गया है. ऐसे में एक्सपायर्ड दवाओं को नये रूप में बाजार में लाने की आशंका वहां भी बनी रहती है. पर औषधि निरीक्षकों को इस पर ध्यान ही नहीं है.
मरीजों पर क्या होता है असर
दवा जिस बीमारी के लिए दी गयी है उसमें काम नहीं करेगी
मरीज की बीमारी ठीक नहीं होगी बल्कि बढ़ती जायेगी
मरीज की जान को खतरा बना रहता है
आसानी से हट जाता है कई दवाओें का लेबल
मरीजों के जीवन से खिलवाड़ करनेवाले गिरोह नामी कंपनियों की दवाओं का लेबल भी आसानी से हटा देते हैं. सूत्रों की मानें तो बुखार व शरीर में दर्द की सामान्य दवा व डायबिटीज की दवा के लेबल में इंडेलिबल इंक का प्रयोग नहीं किया गया है. इन दवाओं को जो कंपनियां बनाती हैं, वे काफी पुरानी हैं. पर वे नियम का पालन नहीं करती. इन दवाओं का नाम हर कोई को पता है.
क्या कहता है नियम : संयुक्त निदेशक औषधि डॉ सुजीत कुमार बताते हैं, ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट एंड रूल 1945 के नियम 96 में अंकित है कि दवाओं के लेबल में इंडेलिबल इंक (न मिटने वाली स्याही) का प्रयोग किया जाना चाहिए. कंपनियों काे इसका पालन करना अनिवार्य है. अगर कंपनियां इसका पालन नहीं करती हैं, तो उन पर कानूनी कार्रवाई (काॅस्मेटिक एक्ट के 27 d के तहत) का प्रावधान है.