इसलाम में वृक्षारोपण

डॉ शाहनवाज कुरैशी जंगलों की अवैध कटाई और सुनियोजित योजना के बिना शहरों के विकास से पर्यावरण पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. दुनिया में वनों का प्रतिशत कम होता जा रहा है. विश्व के लगभग दस अरब एकड़ में फैले वन क्षेत्र का दो तिहाई भाग रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका जैसे 10 देशों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 29, 2017 6:48 AM
डॉ शाहनवाज कुरैशी
जंगलों की अवैध कटाई और सुनियोजित योजना के बिना शहरों के विकास से पर्यावरण पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. दुनिया में वनों का प्रतिशत कम होता जा रहा है. विश्व के लगभग दस अरब एकड़ में फैले वन क्षेत्र का दो तिहाई भाग रूस, ब्राजील, कनाडा, अमेरिका जैसे 10 देशों में सिमटा हुआ है.
तमाम कोशिशों के बावजूद दो एकड़ से अधिक वन क्षेत्र अब भी प्रति वर्ष समाप्त हो रहे हैं. यह पर्यावरण के लिए गंभीर संकट है. इसलाम में पर्यावरण की महत्ता को स्वीकारते हुए वृक्षारोपण को प्रोत्साहित किया गया है. पैगंबर मुहम्मद (स) ने फरमाया-अगर कयामत (निणार्यक दिन) आ रही हो और तुम में से किसी के हाथ में कोई पौधा हो, तो उसे ही लगा दो और परिणाम की चिंता मत करो. एक अन्य जगह फरमाया-जो भी खजूर का पेड़ लगायेगा, उस खजूर से जितने फल निकलेंगे, अल्लाह उसे उतनी ही नेकी देगा. पैगंबर (स) ने पेड़ लगाने को एक प्रकार का दान करार दिया.
वृक्ष एक ओर पक्षियों और कई जीवों के लिए आश्रय स्थली है, तो इसके पत्ते कई जीवों का आहार और इसकी छाया राहगीरों को राहत प्रदान करती है. पेड़ की महत्ता को बताते हुए पैगंबर (स) ने फरमाया-जिस घर में खजूर का पेड़ हो, वह भुखमरी से परेशान नहीं हो सकता. पैगंबर ने युद्ध काल में भी फलदार वृक्षों को नुकसान पहुंचाने से मना किया. फतह मक्का के समय भी उन्होंने फरमाया कि किसी पेड़ को न काटा जाये.
दैवीय चमत्कार है कुरान का अवतरण-2
इसलाम की बुनियाद न्याय पर रखी गयी है. इसलाम में राजा और रंक, अमीर और गरीब के लिए केवल एक न्याय है. किसी के साथ रियायत नहीं, किसी का पक्षपात नहीं. यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि समता के विषय में इसलाम ने अन्य सभी सभ्यताओं को बहुत पीछे छोड़ दिया है. वे सिद्धांत जिनका श्रेय अब कार्ल मार्क्स और रूसो को दिया जा रहा है, वास्तव में अरब के मरुस्थल में पैदा हुए थे़
मुंशी प्रेमचंद (इसलामी सभ्यता, साप्ताहिक प्रताप विशेषांक, दिसंबर 1925)
डॉ शाहिद हसन
पवित्र कुरान को अल्लाह ने एक लंबे समय तक विशेष प्रकार के कैप्सूल में सातवें आसमान में सुरक्षित रखा. और फिर मुहम्मद (स) की पैगंबरी के साथ पृथ्वी पर भेजा. वह भी जिब्राइल (अ) के माध्यम से पूरी तरह सुरक्षित. जब जिब्राइल (अ) अल्लाह का संदेश लेकर आते और आप (स) को सुनाते तब आप (स) के स्मरण में उसी रूप में अंकित हो जाता. फिर उस अंश को आप (स) अपने साथियों के समक्ष प्रस्तुत करते और वे उसी रूप में कंठस्थ कर लेते.
जब हेरा नामक गुफा में पहली बार रमजान के महीने की रात शबे कद्र में आकर जिब्राइल (अ) ने अल्लाह का संदेश सुनाया और कहा-पढ़. उस समय आप (स) गुफा में अकेले थे, परंतु बाद में अन्य सहयोगियों की उपस्थिति में भी जिब्राइल (अ) अल्लाह का संदेश (कुरान का अंश) लेकर आते. आप (स) की शारीरिक और मानसिक स्थिति में परिवर्तन होने लगता. उनका चेहरा और भी ज्यादा चमक उठता. वे खामोश हो जाते. ऐसा लगता जैसे उनका चिंतन बहुत दूर चला गया हो. शारीरिक मुद्रा में परिवर्तन हो जाता.
चेहरे पर पसीना साफ दिखाई देता. वे भी जाड़े के दिनों में. यह अवस्था थोड़ी देर के लिए रहती और फिर एक नये संदेश को सहयोगियों के सामने प्रस्तुत करते. पवित्र कुरान में 300 से भी ज्यादा बार अल्लाह ने रसूल (स) पाक को अलग-अलग संदेश पहुंचाने का आदेश दिया और वास्तविकता भी यही है कि कुरान अल्लाह का संदेश है. इसे मुहम्मद (स) के माध्यम से दुनिया के सामने प्रस्तुत किया गया.

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