रांची : बिना पशु के पर्यावरण की परिकल्पना करना उचित नहीं है. संरक्षण का मतलब ये नहीं है कि आप किसी पशु या पक्षी को पिंजरे में कैद कर दें. संरक्षण का असली मतलब है उन्हें उनके प्राकृतिक वास में जगह देना है. उक्त बातें महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी की सलाहकार गौरी मौलेखी ने कहीं. वे लॉ विश्वविद्यालय, युगांतर भारती और मिशन ब्लू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ’21वीं सदी में पर्यावरण न्याय’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रही थीं.
उन्होंने कहा कि पर्यावरण की जो स्थिति हो गयी है, इसका असर दिखने लगा है. क्लाइमेट चेंज हो गया है, जल की एक बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है. रांची की बात करें, तो कुछ साल पहले तक यहां मौसम काफी अनुकूल हुआ करता था पर क्लाइमेट चेंज का असर यहां भी दिख रहा है.
सबसे पहले तो जनसंख्या पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है क्योंकि पृथ्वी को इसे संभालना बहुत मुश्किल हो गया है. ये जो बदलाव आये हैं, ये सौ साल पहले से चले आ रहे हमारे गतिविधियों का परिणाम है. इसे ठीक करने के लिए हम आज शुरुआत करते हैं, तो दो सौ साल लगेंगे. इस मौके पर लॉ फर्म ट्रस्ट लीगल के फाउंडर पार्टनर सुधीर मिश्रा ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि हम स्मार्ट सिटी बनाने की होड़ में हैं, पर हमारा जंगल जो कल तक स्मार्ट था, उसे नष्ट कर रहे हैं.
स्मार्ट सिटी के बजाय पहले स्मार्ट फाॅरेस्ट बनाने पर जोर देना जरूरी है. वहीं, भारतीय वन सेवा के अधिकारी एचएस गुप्ता ने कहा कि पर्यावरण आज सिर्फ एक देश या लोकल मुद्दा नहीं है बल्कि एक वैश्विक मुद्दा बन गया है. ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज से आज पूरी दुनिया परेशान है, संसाधनों का उचित प्रबंधन न होना इसका कारण है.
मिशन ब्लू के प्रेसिडेंट पंकज सोनी ने कहा कि जल की जो स्थिति झारखंड में देखने को मिल रही है, वह बहुत ही निराश करनेवाली है. इसके जिम्मेवार हम खुद हैं. लॉ विवि के प्रभारी कुलपति सह न्यायिक अकादमी के निदेशक गौतम चौधरी ने कहा कि हम पर्यावरण पर आश्रित हैं. हमें यहीं रहना है, लेकिन इस बात को न समझते हुए हम पर्यावरण का विनाश कर रहे हैं. यह हमारे लिए घातक है. संगोष्ठी में आकाश पांडेय, सौरभ तिवारी आदि ने अहम भूमिका निभायी.