विरोध: ई-पोर्टल में पंजीयन की बाध्यता के खिलाफ हड़ताल दवा दुकानें बंद, मरीज परेशान
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और दवा व्यवसायियों के बीच ई-पोर्टल को लेकर चल रहे विवाद के कारण मंगलवार को मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. ई-पोर्टल में पंजीयन की बाध्यता समाप्त करने की मांग करते हुए ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (एआइओसीडी) ने मंगलवार को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया […]
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और दवा व्यवसायियों के बीच ई-पोर्टल को लेकर चल रहे विवाद के कारण मंगलवार को मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. ई-पोर्टल में पंजीयन की बाध्यता समाप्त करने की मांग करते हुए ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (एआइओसीडी) ने मंगलवार को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था. इसका समर्थन करते हुए झारखंड केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एसोसिएशन (जेसीडीए) के बैनर तले पूरे राज्य की करीब 12000 दवा दुकानें बंद रहीं.
रांंची: दवा दुकानदारों की देशव्यापी इस हड़ताल का असर राजधानी पर भी साफ दिखा. शहर में 2000 से ज्यादा दवा दुकानें हैं, जो मंगलवार को हड़ताल के दौरान बंद रहीं. मरीजों के परिजनों दवा के लिए इधर-उधर भटकते नजर आये. हालांकि, निजी अस्पतालों, दवाई दोस्त और रिम्स का जनऔषधि केंद्र खुले रहे. लेकिन, निजी अस्पतालों की दवा दुकानों में दवा लेने पहुंचे बाहरी लोगों को खाली हाथ लौटना पड़ा. यहां लोगों से कहा जा रहा था कि चूंकि परची बाहर की है, इसलिए दवाएं नहीं मिल सकती हैं. वैसे, कई निजी अस्पतालों के दवा दुकानदारों ने जीवन रक्षक दवाएं उपलब्ध कराने का दावा किया है.
मेन रोड, श्रद्धानंद, अलबर्ट एक्का चौक, मेडिकल चौक आदि क्षेत्र में दवाओं की दुकानों का शटर सुबह से गिरा हुआ था. दुकानों के सामने कुछ मरीज के परिजन इस आस में खड़े रहे कि कहीं दुकान कुछ देर के लिए खुल जाये और दवाएं मिल जाये, लेकिन दुकानों का शटर नहीं खुला. हालांकि, निजी अस्पतालों की अोपीडी में परामर्श लेने वाले मरीजों को अस्पताल की फार्मेसी से दवाएं मिल गयीं.
जनआैषधि व दवाई दोस्त बना सहारा
रिम्स व सदर अस्पताल की जन औषधि केंद्र व राजधानी में स्थित दवाई दोस्त की दुकानें खुली रही. इससे मरीजों को काफी राहत का सामना करना पड़ा. चिकित्सीय परामर्श के बाद मरीज दवा दोस्त की दवा दुकानों पर दवा खरीदने के लिए आये. रिम्स की दवाई दोस्त की दवा दुकानों पर मरीजों की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिला. रिम्स के जन औषधि केंद्र के अमित कुमार ने बताया कि सामान्य दिनों से अधिक मंगलवार को भीड़ रही. रिम्स अौर सदर अस्पताल की ओपीडी में मरीजों की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिली.
जानते थे हड़ताल है, फिर भी रिम्स के चिकित्सकों ने लिखी ब्रांडेड दवाएं
सरजू महतो हजारीबाग से रिम्स में किडनी का इलाज कराने मंगलवार को रिम्स आये थे. सुबह 10 बजे परची कटाने के बाद उन्होंने रिम्स के मेडिसिन विभाग में परामर्श लिया. चिकित्सकों ने अधिकांश जेनेरिक दवाएं तो लिखी, लेकिन कई ब्रांडेड दवा भी शामिल कर दीं. जेनेरिक दवा तो रिम्स से मिल गया, लेकिन ब्रांडेड दवाएं जनऔषधि एवं दवाई दोस्त में नहीं मिल पायी. सरजू के पुत्र अमृत ने बताया कि बाहर तो दवा दुकान बंद है, इसलिए लौट कर हजारीबाग जा रहे हैं. अब बुधवार को दवा खरीदेंगे.
रिम्स के मेडिसिन ओपीडी का भी यही हाल था. अधिकांश विभागों की ओपीडी में डॉक्टरों ने मरीजों को ब्रांडेड दवाएं ही लिख दीं. इससे मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ा. शिशु विभाग के आेपीडी में नौ साल की फूल कुमारी को चिकित्सक ने ब्रांडेड दवाएं लिख दी थीं. पिता दवाई दोस्त व जनऔषधि में परची लेकर आये, लेकिन दवाएं नहीं मिलीं.
वार्ड में भरती मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी : रिम्स के अधिकांश विभागों के वार्ड में भरती मरीजों को सबसे ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा. मरीज डॉक्टरों के परामर्श चार्ट को लेकर इधर-उधर भटकते रहे, लेकिन उन्हें दवा नहीं मिली. मेडिसिन विभाग में भरती अपने पिता की परची लेकर घूमते रहे इंद्रजीत ने बताया कि मेरे पिता गंभीर है. रोज तो दवा बाहर से खरीद लेते थे, लेकिन आज दवा दुकान बंद होने से परेशानी हो रही है.
दवा दुकानों की बंदी को ध्यान में रखते हुए हमने दवाओं का अतिरिक्त स्टॉक मंगा लिया था. इसके बावजूद मरीजों के परिजन आवश्यक दवाओं के लिए भटकते रहे तो गंभीर बात हैं. डॉक्टर भी अपने विवेक से काम करें.
डाॅ बीएल शेरवाल, निदेशक रिम्स