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झारखंड : नियम के पेच में उलझा ‘अबुआ वीर दिशोम अभियान’, एकमुश्त वन पट्टा देना मुश्किल, जानें क्या है इसकी वजह

अधिकारियों ने अभियान के क्रियान्वयन और वन अधिकार नियम के अनुसार अनुशंसा करने, जल, जंगल व जमीन तथा इसके संसाधनों की रक्षा के लिए समर्पित और संगठित प्रयास करने की शपथ ली थी

मनोज सिंह, रांची :

झारखंड सरकार ने तीन अक्तूबर को ‘अबुआ वीर दिशोम अभियान’ लांच किया था. इसके तहत गांवों में रहनेवालों को अभियान चलाकर वन पट्टा देने की बात की गयी थी. अब इस अभियान में नियम का पेच फंस गया है. वन पट्टा देने के लिए तय एक्ट (अधिनियम) सामने आ रहा है. एक्ट में ग्रामसभा आयोजन को लेकर जो शर्त और टाइमलाइन दी गयी है, उसके तहत वनवासियों को एक मुश्त पट्टा देना संभव नहीं लग रहा है.

प्रस्तावित अबुआ वीर दिशोम अभियान-2023 (वन अधिकार अभियान-2023) की लांचिंग के दिन कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों को ग्राम स्तर पर वनाधिकार समिति का गठन-पुनर्गठन करने, वन पर निर्भर लोगों और समुदायों को वनाधिकार पट्टा दिये जाने की शपथ दिलायी गयी थी. इसमें अधिकारियों ने अभियान के क्रियान्वयन और वन अधिकार नियम के अनुसार अनुशंसा करने, जल, जंगल व जमीन तथा इसके संसाधनों की रक्षा के लिए समर्पित और संगठित प्रयास करने की शपथ ली थी.

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30 हजार से अधिक ग्राम सभाओं का करना था पुनर्गठन

झारखंड के 30 हजार से अधिक ग्रामसभाओं ने वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत ग्रामस्तर पर वनाधिकार समिति का गठन-पुनर्गठन तीन अक्तूबर से 18 अक्तूबर तक करना था. उपायुक्तों को अपने-अपने जिलों में अक्तूबर के प्रथम और द्वितीय सप्ताह में जिलास्तरीय वन प्रमंडल पदाधिकारी और राजस्व अधिकारियों के साथ बैठक कर ग्रामस्तरीय वनाधिकार समिति में की जानेवाली कार्रवाई के लिए सभी प्रकार के भू-अभिलेख, फॉरेस्ट मैप की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पूरी कार्य योजना तैयार करनी थी.

कम से कम 120 दिन बाद ही नये आवेदन में पट्टा संभव

वन अधिकार अधिनियम-2006 में कुछ ऐसे प्रावधान किये गये हैं, जिससे वन पट्टा का नया आवेदन करने वालों को कम से कम 120 दिनों के बाद ही पट्टा देना संभव है. इसके लिए सबसे पहले ग्रामसभा करनी है. ग्रामसभा में वन पट्टा देने के लिए आये आवेदन को अनुमंडल स्तरीय कमेटी के पास जमा करना होता है. अनुमंडल स्तरीय कमेटी (एसडीएलसी) इस आवेदन के आलोक में 60 दिनों तक आपत्ति मांगती है. आपत्ति नहीं होने पर जिलास्तरीय कमेटी के पास जाती है. वहां भी जिलास्तरीय कमेटी 60 दिनों तक आपत्ति मांगती है. आपत्ति मिलने पर आवेदन को वापस किया जाता है. ऐसा नहीं होने पर ही वन पट्टा मिल सकता है. जिलास्तरीय कमेटी के अध्यक्ष उपायुक्त होते हैं. वन पट्टा देने की प्रक्रिया पूरी तरह न्यायिक है. इसमें राज्य सरकार चाहकर भी कोई बदलाव नहीं कर सकती है.

बिना प्रक्रिया पालन के भी पूर्व में दिये गये हैं वन पट्टे

पूर्व में कई जिलों में तय अवधि वाली नियम का पालन किये भी वन पट्टे दिये गये हैं. वन विभाग के पूर्व वरीय अधिकारी का कहना है कि जनप्रतिनिधियों के दबाव में कई बार ऐसा हुआ है. यह कानून का उल्लंघन है. पूरे मामले की जांच होने पर झारखंड में यह अब तक का सबसे बड़ा भूमि घोटाला भी हो सकता है. उपायुक्त और अनुमंडल पदाधिकारी के स्तर वाली कमेटी ने बिना आपत्ति आमंत्रित किये ही वन पट्टा बांट दिया है.

कई संस्थाएं बना रही हैं दबाव

वन पट्टा देने के काम में तेजी के लिए राज्य सरकार स्तर से कई संस्थाओं को लगाया गया है. इन संस्थाओं के प्रतिनिधि अधिकारियों पर जल्द से जल्द वन पट्टा देने का दबाव भी बना रहे हैं. अंचल से लेकर जिला स्तर के अधिकारियों को वन पट्टा बांटने का दबाव दिया जा रहा है.

12514 गांव में है वन पट्टा देने की संभावना

राज्य में करीब 12514 गांव में वन पट्टा देने की संभावना है. राज्य में कुल करीब 32620 राजस्व ग्राम हैं. इसमें कुल 263 प्रखंड आते हैं. पूरी तरह ट्राइबल सब प्लान (टीएसपी) वाले 13 जिले हैं. इसमें 113 ब्लॉक में 6365 गांव आते हैं. इसी तरह 11 गैर टीएसपी जिले के 132 प्रखंड में कुल 6149 गांव आते हैं.

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