Regional Language News : मुंडारी भाषा को हिंदी व अंग्रेजी में ट्रांसलेट करेगा ‘आदिवाणी टूल’
डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी मुंडारी भाषा के अनुवाद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआइ) टूल पर काम कर रहा है. इस टूल को ‘आदिवाणी टूल’ नाम दिया गया है. इस टूल के जरिये मुंडारी भाषा का अनुवाद हिंदी और अंग्रेजी में और हिंदी व अंग्रेजी का अनुवाद मुंडारी भाषा में हो सकेगा.
प्रवीण मुंडा (रांची). डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान मोरहाबादी मुंडारी भाषा के अनुवाद के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआइ) टूल पर काम कर रहा है. इस टूल को ‘आदिवाणी टूल’ नाम दिया गया है. इस टूल के जरिये मुंडारी भाषा का अनुवाद हिंदी और अंग्रेजी में और हिंदी व अंग्रेजी का अनुवाद मुंडारी भाषा में हो सकेगा. यह जनजातीय कार्य मंत्रालय का एक पायलट प्रोजेक्ट है, जिसकी जिम्मेदारी जनजातीय शोध संस्थान को सौंपी गयी है.
एआइ टूल का 70 फीसदी काम पूरा
संस्थान देश के कुछ उत्कृष्ट तकनीकी संस्थानों के साथ मिलकर इसे विकसित कर रहा है. संस्थान से मिली जानकारी के अनुसार, इस एआइ टूल से संबंधित 70 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. शेष 30 प्रतिशत काम को वर्ष 2025 के शुरुआती महीने में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. देश के तीन अन्य टीआरआइ, संथाली, गोंडी और भीली भाषाओं के लिए इसी टूल पर काम कर रहे हैं. टीआरआइ ओडिशा संथाली भाषा, टीआरआइ छत्तीसगढ़ गोंडी भाषा और टीआरआइ मध्यप्रदेश भील भाषा को लेकर काम कर रहे हैं.
आदिवासी भाषाओं को तकनीक से जोड़ना है उद्देश्य
गूगल के जरिये विश्व की कई भाषाएं एक दूसरे से जुड़ी हैं. उन भाषाओं में कंटेंट का अनुवाद आसानी से हो जाता है. पर आदिवासी भाषाएं इनमें शामिल नहीं है. इस टूल के जरिये आदिवासी भाषाएं भी तकनीक से जुड़ पायेंगी. इससे मुंडारी भाषी लोग अंग्रेजी या हिंदी के कंटेंट को मुंडारी भाषा में पढ़ सकेंगे. इसी तरह गैर मुंडारी भाषी लोग मुंडारी कंटेट को हिंदी या अंग्रेजी में अनुवाद कर समझ पायेंगे. इससे एक ओर मुंडारी भाषा जहां तकनीक के साथ जुड़ेगी वहीं, दूसरी ओर इसकी वैश्विकस्तर पर पहचान भी बनेगी. इस टूल के जरिये कंपनियों को भी सुविधा होगी कि वे अपनी मार्केटिंग आदिवासी समझ और मूल्यों के साथ कर सकेंगी. लोगों की समझ भी आदिवासी संस्कृति को लेकर और बढ़ेगी.
देश के जानेमाने संस्थान विकसित कर रहे तकनीक और सॉफ्टवेयर
इस टूल के लिए तकनीकी और सॉफ्टवेयर से संबंधित काम बिट्स पिलानी, आइआइटी दिल्ली, ट्रिपल आइटी हैदराबाद और ट्रिपल आइटी नया रायपुर द्वारा किया जा रहा है. मुंडारी भाषा के लिए टूल बिट्स पिलानी द्वारा विकसित किया है. टीआरआइ रांची के विशेषज्ञ इसके लिए मुंडारी भाषाओं के शब्दों व वाक्यों को उसमें लोड करने का काम कर रहे हैं.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इस टूल का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि इंटरनेट के माध्यम से आदिवासी समुदाय अपनी ही भाषा में दुनिया के साथ जुड़ सकेगा. दुनिया भर की जानकारियों व गतिविधियों के साथ अपडेट भी हो सकेगा. इसके अलावा इसका बड़ा फायदा शिक्षा के क्षेत्र में भी मिलेगा. जनजातीय समुदाय के बच्चे अपनी ही भाषा में दुनियाभर की जानकारियां हासिल कर सकेंगे.
मोनिका रानी टूटी, उपनिदेशक, डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थानडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है