आदिवासी अधिकार रक्षा मंच ने कुड़मियों की ओर से आदिवासी का दर्जा देने की मांग का सख्त विरोध किया है. आदिवासी अधिकार रक्षा मंच (Adivasi Adhikar Raksha Manch) की ओर से झारखंड की पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव (Geetashri Oraon) ने राजधानी रांची के मोरहाबादी में बापू वाटिका (Bapu Vatika) के समक्ष सोमवार को आयोजित एक दिन के उपवास के दौरान कहा कि अगर हमारे क्षेत्र में कुड़मी अतिक्रमण करेंगे, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. उन्होंने कहा कि कुड़मियों के साथ हम मूलवासी और भाईचारा का रिश्ता रखना चाहते हैं.
आदिवासी संगठनों के एक दिवसीय उपवास के दौरान गीताश्री उरांव ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से कहा कि कुड़मी समाज के लोग खुद को आदिवासियों की सूची (ST Status to Kurmi in Jharkhand) में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने बड़ा आंदोलन भी किया है. खासकर पश्चिम बंगाल में. झारखंड में भी इसकी आग लग रही है. गीताश्री उरांव ने कहा कि कुड़मियों का आदिवासियों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है.
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इतिहास का हवाला देते हुए गीताश्री ने कहा कि द्रविड़ और आर्य दो समूह हैं. आर्य विदेशों से आयी नस्ल है. कुड़मी उन्हीं के वंशज हैं. इनका मुख्य काम खेती-बाड़ी रहा है. खेती-बाड़ी करके ये काफी मजबूत रहे. कई जगहों पर अपना साम्राज्य भी स्थापित किया. कई जगह ये लोग क्षत्रिय/राजपूत से भी अपना कनेक्शन स्थापित करते हैं.
गीताश्री ने कहा कि रांची के तत्कालीन सांसद रामटहल चौधरी ने बूटी मोड़ में शिवाजी महाराज की मूर्ति बड़े धूमधाम से स्थापित की थी. हालांकि, शिवाजी महाराज का इस भू-भाग से कभी कोई नाता नहीं रहा. उन्होंने कहा कि कुड़मियों के संबंध राजपरिवारों से भी रहे हैं. आजादी के बाद 1950 में उन्हें पिछड़ा वर्ग में डाला गया. तब इन्होंने विरोध नहीं किया.
पूर्व मंत्री ने कहा कि अब इनके दिमाग में आ गया है कि ये लोग पिछड़ा वर्ग से अलग हैं और आदिवासी हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड में पेसा कानून लागू होने की बात हुई, तो इन्हीं लोगों ने इस बात का विरोध किया कि आदिवासी ही मुखिया बनेगा. 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति और पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा हुई, तो इन लोगों ने मिठाई बांटी थी. ये लोग दो नाव पर सवार हैं. इसे हम कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे.
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गीताश्री उरांव ने कहा कि जनजातीय शोध संस्थान (टीआरआई) ने वर्ष 2004 की अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि इनके गोत्र भी बिल्कुल अलग हैं. हमारा (आदिवासियों का) गोत्र प्रकृति से जुड़ा है, जबकि उनके गोत्र ऋषि-मुनियों और चांद-सितारों से जुड़े हैं. हम आदिवासियों के जो रीति-रिवाज हैं, उनके रीति-रिवाजों से बहुत भिन्न हैं. उनका जुड़ाव सनातनी हिंदुओं से बहुत ज्यादा है.
गीताश्री उरांव ने कहा कि यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि कुड़मी कोई अलग जाति है, जो आदिवासियों से मिलती-जुलती है. वास्तविकता यह है कि कुड़मी ही कुरमी है. उन्होंने कहा कि झारखंड की कुरमी जाति झारखंड में खुद को डॉमिनेंट कास्ट के रूप में स्थापित करना चाहती है, जिसकी वजह से आदिवासी समुदाय एक बार फिर से शोषण और अत्याचार के भंवर जाल में फंसने वाला है. इस बार का अत्याचारी और शोषक बाहरी नहीं, बल्कि आपका पड़ोसी होगा और इसका दायरा शहर से निकलकर दूर-दराज के गांवों तक फैल जायेगा.
उन्होंने कहा कि यह जानना जरूरी है कि डॉमिनेंट कास्ट होता क्या है? कोई भी जाति जब अपने आर्थिक संसाधन और संख्या बल के दम पर पहले राजनीतिक दबदबा कायम करती है और उसके बाद सामाजिक व्यवस्था में अपना इको सिस्टम इस तरह तैयार करती है कि समाज के हर क्षेत्र में उसका प्रभुत्व कायम हो जाता है. बिहार-उत्तर प्रदेश में यादव और कुड़ीमी, महाराष्ट्र में मराठा (पाटील), गुजरात के पटवारी (पटेल), राजस्थान में गुर्जर और पंजाब-हरियाणा में जाट ने अपना प्रभुत्व कायम कर रखा है. झारखंड की कुड़मी जाति की महत्वकांक्षा वैसी ही है.
गीताश्री उरांव ने कहा कि कुड़मी जाति कुड़मी के नाम से आदिवासी समुदाय में शामिल हो जाती है, तो झारखंड के तमाम आदिवासी वर्ग, चाहे वह उरांव, संथाल, हो, मुंडा खेरवार, चेरो या फिर सरना ईसाई हों, सभी की बर्बादी तय है. समस्त शौक्षणिक संस्थाओं, सरकारी नौकरियों और सरकार की सभी कल्याणकारी योजनाओं का बड़ा हिस्सा ये लोग हथिया लेंगे.
इतना ही नहीं, आदिवासियों के लिए आरक्षित मुखिया, विधायक और सांसद की सीटें भी धन, छल-प्रपंच, वोट कटवा डमी कैंडिडेट खड़ा करके और अपनी जातीय राजनीति के सहारे छीन लेंगे. इस तरह आदिवासी समुदाय पूरी तरह से हाशिये पर चल जायेगा. यही नहीं, गांवों में आदिवासियों को अपनी जमीन बचाना मुश्किल हो जायेगा. उन्होंने कहा कि दिलचस्प बात तो यह है कि इनका कुड़मी नाम से ओबीसी( OBC) का स्टेटस भी जारी रहेगा और आरक्षण समेत तमाम कल्याणकारी योजनाओं का लाभ वे लेते रहेंगे.
गीताश्री उरांव ने कहा कि इसका मतलब यह हुआ कि एक ही जाति कुड़मी (आदिवासी) और कुरमी (पिछड़ी जाति) के नाम से आरक्षण और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को हथिया लेंगे. यह आदिवासियों ही नहीं, अन्य पिछड़ी जातियों (अहिर, वैश्य, कोईरी, तेली) के लिए भी घातक है.
उन्होंने कहा कि झारखंड की 22 विधानसभा सीटों पर कुड़मी निर्णायक वोटर हैं. कल्पना करें, अगर कुड़मी के नाम से आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों से विधायक बनते हैं, तो झारखंड विधानसभा में एक ही जाति का बोलबाला हो जायेगा. झारखंड में कुड़ीमी ही एकमात्र जाति है, जो जातीय राजनीति करती है. जातीय हित के मुद्दे पर सभी दलों के कुड़मी नेता अपनी-अपनी पार्टी के एजेंडा को दरकिनार कर सब एक हो जाते हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री भी इन्हीं का बन जायेगा, जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए घातक है. कहा कि आदिवासियों के इस संघर्ष में सभी गैर-कुड़मी जातियों को उसका साथ देना चाहिए. नहीं, तो झारखंड राज्य की बर्बादी निश्चित है.
रिपोर्ट- राहुल गुरु