शकील अख्तर, रांची : राज्य के कोडरमा और चतरा जिले में हुए कृषि घोटाले की निगरानी जांच 10 साल में भी पूरी नहीं हो सकी है. विधानसभा के प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण समिति के तत्कालीन अध्यक्ष की शिकायत पर वर्ष 2009 में शुरू हुई निगरानी जांच की यह स्थिति है. मामले की प्रारंभिक जांच में निगरानी ने छह साल लगाये. सरकार ने प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति देने में एक साल का वक्त लगाया. इसके बाद 2005-08 में हुए घोटाले के इस मामले में 2017 में प्राथमिकी दर्ज हुई. अभी जांच जारी है. हालांकि अब तक इस घोटाले में शामिल सप्लायरों का पता नहीं लगाया जा सका है. जांच की इस रफ्तार से कृषि क्षेत्र में हावी माफिया की पहुंच का अंदाज लगाया जा सकता है.
तत्कालीन राजद विधायक सह प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण समिति अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी ने कोडरमा और चतरा जिले में कृषि घोटाले की शिकायत की थी. इसमें कागजी अनन्नास की खेती, जेट्रोफा की खेती, पावर टीलर और पंप सेट वितरण सहित विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी कर सरकारी राशि के गबन का आरोप लगाया गया था. उनकी शिकायत के आधार पर वर्ष 2009 में निगरानी ने पीइ दर्ज कर मामले की प्रारंभिक जांच शुरू की. कृषि घोटाले में शुरू हुई यह प्रारंभिक जांच छह साल में पूरी हुई.
प्रारंभिक जांच में जेट्रोफा, अनन्नास और सुगंधित पौधों की खेती में गड़बड़ी की शिकायत सही पायी गयी. इसके अलावा पावर टीलर, ट्रैक्टर, डीजल पंप सेट, खाद बीज वितरण और कुआं की योजनाओं में गड़बड़ी भी पायी गयी. प्रारंभिक जांच पूरी होने के बाद निगरानी ने किसानों के नाम पर सरकारी राशि के गबन के मामले में वर्ष 2016 में सरकार से नियमित प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मांगी. निगरानी ने प्राथमिकी के लिए सरकार को पहली बार पत्र लिखा.
कई बार पत्र लिखे जाने के बाद सरकार के स्तर से फरवरी 2017 में इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति मिली. इसके बाद हजारीबाग निगरानी थाने में वर्ष 2017 में प्राथमिकी (11/17) दर्ज की गयी. फिलहाल डीएसपी स्तर के अधिकारी इस मामले की जांच कर रहे हैं. हालांकि जांच अभी पूरी नहीं हुई है.
गबन के इस मामले में ध्यानाकर्षण समिति के अध्यक्ष की शिकायत के आधार पर ही दो लोगों को अभियुक्त बनाया गया. इसमें तत्कालीन अनुमंडल कृषि पदाधिकारी सह कोडकमा व चतरा के प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी अमरेश कुमार झा और सहायक कृषि अनुमंडल पदाधिकारी बिनोद कुमार को अभियुक्त बनाया गया. अब तक हुई जांच के दौरान निगरानी किसी सप्लायर के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकी है. जबकि सप्लायरों के सहयोग के बिना कृषि घोटाले को अंजाम नहीं दिया जा सकता है.
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ध्यानाकर्षण समिति की तत्कालीन अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी की शिकायत पर 2009 में शुरू हुई थी निगरानी जांच
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छह साल चली प्रारंभिक जांच के बाद वर्ष 2005-08 में हुए घोटाले की 2017 में दर्ज हुई प्राथमिकी
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चतरा के प्रतापपुर निवासी महेश दास और राजेंद्र दास ने निगरानी को जानकारी दी कि कृषि मेला में उन्हें अनुदान के तौर पर पावर टीलर दिया गया था. चार दिन बाद सप्लायर घर आया और कहा िक पैसे नहीं मिले हैं, पावर टीलर दूसरे मेले में ले जाना है. यह कह वह पावर टीलर ले गया.
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सिमराया निवासी हेमलाल बिरहोर, तुलसी गंझू, तारकेश्वर गंझू व रामधनी ने निगरानी को जानकारी दी कि उन्हें किसी प्रकार का औषधीय पौधा, कुआं आदि के लिए किसी तरह का अनुदान नहीं मिला है.
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कोडरमा जिले के झरीटांड निवासी हरि शर्मा ने कहा कि 20 एकड़ में जेट्रोफा की खेती करनेवाले किसानों में उनका नाम भी था.
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कोडरमा जिले के तेतरियाडीह निवासी अरविंद तिवारी, निशिकांत दीक्षित, लक्ष्मण राम, महेश यादव ने जानकारी दी कि 50-50 अनन्नास का पौधा और कंपोस्ट खाद के लिए प्रथम किस्त के रूप में सात हजार रुपये दिये गये. दूसरी किस्त नहीं मिली. इससे सारे पौधे सूख गये.
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चतरा जिले के सुरुज ग्राम के लाभुक रामप्रवेश ने बताया कि 1.11 लाख के इस्टीमेट से पंपसेट,मुर्गी फार्म,केंचुआ खाद का सेट बनाना था. उन्होंने 11 हजार रुपये दिया. इसके एवज में उन्हें चाइना पंपसेट दे दिया गया.
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महेश यादव ने उनकी जमीन पर 1.5 एकड़ मेें अनन्नास की खेती करने के दावे गतल बताया.
post by : Pritish Sahay