उझारखंड देश का एक ऐसा राज्य है जो वन संपदा से परिपूर्ण है और अभी भी लोगों को ऐसा लगता है कि यहां वायु प्रदूषण की स्थिति उतनी विकट नहीं जितनी की अन्य राज्यों में है. लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने देश के जिन 100 औद्योगिक शहरों को सबसे प्रदूषित शहरों की श्रेणी में रखा है उनमें झारखंड का हजारीबाग, सरायकेला और रामगढ़ शामिल है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार झारखंड के अधिकांश बड़े शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) सौ से ऊपर है. लेकिन हजारीबाग और रामगढ़ जिले में एक्यूआई सौ से अधिक है जो चिंता की बात है. एक्यूआई की बात करें तो यह रांची में 151, धनबाद 154, जमशेदपुर 153,डालटनगंज 156, गढ़वा 129, हजारीबाग 135 और देवघर 111 है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने राज्य प्रदूषण बोर्ड को हजारीबाग और रामगढ़ जिले को लेकर खास ताकीद की है और एक्शन प्लान बनाने को कहा गया है.
हजारीबाग और रामगढ़ में कई कोयला खदान हैं, जिनमें से कई ओपन कास्ट माइंस हैं. हजारीबाग के नाॅर्थ और साउथ कर्णपुरा, घाटो और उरीमारी जैसे इलाके में सीसीएल के कई ओपन कास्ट माइंस हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब ब्लास्ट किया जाता है, तो उससे बड़े पैमाने पर प्रदूषण फैलता है. साथ ही कोयले की ढुलाई की वजह से भी वायुप्रदूषण बड़े पैमाने पर होता है. डाॅ नितीश प्रियदर्शी (पर्यावरणविद्) का कहना है कि इन इलाकों में वायु प्रदूषण बहुत ज्यादा है और इसकी सबसे बड़ी वजह कोल डस्ट है.
प्रदूषण की वजह से धुंध सा दिखाई पड़ता है. लेकिन यहां रहने वाले उस प्रदूषण के अभ्यस्त हो गये हैं और उनमें जागरूकता का भी अभाव है, जिसकी वजह से वे समस्या की गंभीरता को समझ नहीं पा रहे हैं. वे सावधानी के लिए सही उपाय भी नहीं करते, जिसकी वजह से वे कई तरह की बीमारियों और एलर्जी के शिकार होते हैं.
डाॅ नितीश प्रियदर्शी ने बताया कि इन इलाकों में वायु प्रदूषण की वजह से फेफड़े से संबंधित कई बीमारी स्थानीय लोगों को है. यहां तक की बच्चों में भी लगातार सर्दी और खांसी की समस्या बनी रहती है. वायु प्रदूषण का प्रभाव इतना ज्यादा है कि लोगों की आयु भी कम होती जा रही है. लेकिन आजीविका की मजबूरी में वहीं रहते हैं और बीमारियों को दरकिनार करते हैं. प्रदूषण कम करने के लिए सीसीएल पानी का छिड़काव करता है लेकिन गर्मियों में इस छिड़काव से कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि जमीन तुरंत सूख जाती है और प्रदूषण फिर उसी मुकाम पर पहुंच जाता है. बारिश के मौसम में वायु प्रदूषण का स्तर कुछ कम रहता है, लेकिन समस्या गंभीर है और यह दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है.
दूरी दुनिया के साथ-साथ हमारा देश भी कोविड महामारी को पिछले दो साल से झेल रहा है. कोरोना वायरस हमारे श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है. चूंकि वायु प्रदूषण से हमारे फेफड़ों पर असर होता है ऐसे में यह महामारी वैसे लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती है जो वायु प्रदर्शन की गिरफ्त में हैं.
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट आयी है जिसमें भारत को दक्षिण एशियाई देशों में सबसे प्रदूषित देशों में शामिल किया है. इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि विकासशील देशों में वायु प्रदूषण के कारण सबसे ज्यादा मौत होती है और वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा गरीब तबके के लोग होते हैं और यह हमारे लिए खास चिंता की बात है.
Posted By : Rajneesh Anand