मैं आकाशवाणी हूं, मेरी आवाज ही पहचान है, जानें AIR रांची का इतिहास
आकाशवाणी रांची के लिए आज का दिन बेहद खास है. क्योंकि आकाशवाणी रांची के इतिहास में यहां पहली बार सर्वभाषा कवि सम्मेलन हो रहा है. 22 भाषाओं में कविताओं का पाठ होगा. खास बात है कि इन सभी कविताओं का हिंदी में अनुवाद किया जायेगा. इसी विशेष दिन पर पढ़िए आकाशवाणी रांची की कहानी. रिपोर्ट लता रानी.
हर सुबह मीडियम वेव के 546.45 मीटर अर्थात 549 किलो हर्ट्ज पर एक मधुर और सुरीली आवाज में सुनाई देता है : ये आकाशवाणी का रांची केंद्र है. इसकी वर्षों पहले से एक सुर में ट्रांसमीटर पर बैठे उदघोषकों का यह सुर तरंग आज भी बरकरार है. आज आकाशवाणी रांची न्यूज ऑन एआइआर ऐप पर भी उपलब्ध है, जिसके माध्यम से देश-दुनिया में आकाशवाणी रांची के कार्यक्रम को सुना जा सकता है. वहीं एफएम 100़ 5 मेगा हर्ट्ज पर भी अब आप आकाशवाणी रांची को सुना जा सकता है. बेशक एफएम की दुनिया में आकाशवाणी की अलग चुनौतियां हैं, लेकिन आज भी इसके कद्रदान कम नहीं हैं. श्रोताओं का आकाशवाणी पर भरोसा कायम है. यही कारण है कि मेल, मैसेज और व्हाट्सऐप की दुनिया में भी आज भी श्रोताओं के फरमाइशी पोस्टकार्ड आ रहे हैं. हर सप्ताह 200 से अधिक पोस्टकार्ड आकाशवाणी के रांची केंद्र पर पहुंचते हैं. श्रोताओं की फरमाइश पूरी की जाती है.
जुलाई 1957 में पहली बार आकाशवाणी रांची से गूंजी थी आवाज
27 जुलाई 1957, आकाशवाणी रांची के सुनहरे पन्नों पर यह तारीख हमेशा के लिए दर्ज हो चुकी है. इस दिन दोपहर ठीक 3:30 बजे मेन रोड से उदघोषक किशोर शर्मा ने पहली बार ऐतिहासिक उदघोषणा की थी. रांची रेडियो स्टेशन की पहली उदघोषणा थी : यह आकाशवाणी का रांची केंद्र है. सबसे पहले हम अपने श्रोताओं का अभिनंदन करते हैं. हमें प्रसन्नता हो रही है कि हम आपकी आकांक्षाओं के अनुरूप स्वस्थ मनोरंजन, शिक्षण और ज्ञानवर्धन के लिए प्रसारण प्रारंभ कर रहे हैं. हम इस शुभ अवसर पर आपके सहयोग की कामना करते हैं. यहां से पहला गीता प्रफुल्ल चंद्र ओझा मुक्त का था. आकाशवाणी रांची का उद्देश्य था : यहां की लोकभाषा, लोकगीत और लोककला को बढ़ावा.
तकनीक के साथ आकाशवाणी भी बदल गयी
समय के साथ टेक्नोलॉजी बदली, तो आकाशवाणी का रांची केंद्र भी बदल गया. आज श्रोताओं के मोबाइल पर ही रेडियो के प्रसारण सुन रहे हैं. लोग अपनी पसंद के अनुसार अलग-अलग एफएम चैनल सुनते हैं. हालांकि ग्रामीण इलाके के श्रोता आज भी आकाशवाणी रांची को ही सुनते हैं. यही कारण है कि श्रोताओं की फरमाइशों का सिलसिला जारी है.
सबको याद है सुगिया बहिन
आकाशवाणी रांची का ध्येय था: ग्रामीण श्रोताओं को जोड़ना. यही कारण है कि आज भी अदब से सुगिया बहिन का नाम लिया जाता है. सुगिया बहिन की किरदार राेजलीन लकड़ा निभाती थीं, जो बाद में स्टेशन निदेशक भी बनीं. इस कार्यक्रम में मगन भाई, संतू भाई भी प्रमुख प्रस्तोता थे. वहीं मंजूश्री वर्मा और उर्मिला विद्यार्थी को भी सुनना श्रोताओं को काफी पसंद था. महिलाओं का कार्यक्रम ग़ृह लक्ष्मी करती थीं. उस वक्त महिलाओं का कार्यक्रम सप्ताह में दो दिन होता था, जो आज रोजाना हाे चुका है.
आकाशवाणी से जुड़ा है विश्वास
आकाशवाणी सुनने का अलग ही रोमांच है. दूरदराज के इलाकों की सूचना आकाशवाणी से ही मिलती है. रेडियो संचार का सबसे सस्ता माध्यम है. ज्यादातर कार्यक्रम शॉर्ट वेब, मीडियम वेब और एफएम पर प्रसारित किये जाते हैं. इसका ध्येय है सूचना, शिक्षा और मनोरंजन. आज भी लोग आकाशवाणी की सूचना पर विश्वास करते हैं. -दुर्गा चरण हेम्ब्रम, निदेशक अभियंत्रण
ग्रामीणों की पहली पसंद है रेडियो
वर्तमान समय एफएम का है़ इसके बावजूद आज भी ग्रामीणों की पहली पसंद आकाशवाणी ही है. टेक्नोलॉजी के साथ चलने और लोगों को अपनी बात पहुंचाने के लिए शीघ्र ही बोलो रांची का पेज खुलेगा, जिसमें श्रोता अपनी फरमाइश, अपनी पसंद और आग्रह भेज सकते हैं. इसमें मिनटों में संवाद हो सकेगा. -मेरी क्लॉडिया सोरेंग, पूर्व कार्यक्रम प्रमुख (सेवानिवृत)
हॉकी-फुटबॉल की कमेंट्री का मिला मौका
1991 में सबसे पहले आकाशवाणी दिल्ली से जुड़ी. 1992 में आकाशवाणी रांची में अनाउंसर के पद पर ज्वाइन किया. शुरुआत में सुनो कहानी, चलते-चलते, हैलो सुनिए… जैसे कार्यक्रम किये, जो आज भी लोगों के जहन में है. हॉकी और फुटबॉल मैच की कमेंट्री का भी मौका मिला. यह सफर करीब 14-15 वर्षों तक चला. -ओली मिंज, उदघोषक
रोजलीन लकड़ा को आज भी लोग सुगिया बहिन ही कहते हैं
सुगिया बहिन यानी रोजलीन लकड़ा का भी आकाशवाणी से जुड़ा सफरनामा काफी रोचक रहा है. इनका आकाशवाणी रांची के संग सफर एक कैजुअल कंपीयर के रूप में हुआ था. बाद में स्टेशन डायरेक्टर बनीं. इनके करियर की शुरुआत आकाशवाणी के बेहद प्रसिद्ध कार्यक्रम सुगिया बहिन से हुई, जो बाद में उनकी पहचान बन गयी. आज भी लोग उन्हें सुगिया बहिन ही कहते हैं. रोजलीन लकड़ा कहती हैं : 1964 में आकाशवाणी रांची से जुड़ी. 1965 से 1974 तक सुगिया बहिन का किरदार किया. इस दौरान आकाशवाणी भोपाल और पटना में भी काम करने का अवसर मिला. 1982 में स्टेशन डायरेक्टर के रूप में पद संभाला. जमशेदपुर में पदस्थापित हुई. 1996 में रांची से स्टेशन डायरेक्टर के पद से रिटायर हुई. मैंने अपने जीवन का 32 वर्ष आकाशवाणी को दिया, जो श्रोताओं का ही प्रेम है.
प्रदीप कुमार राॅय ने निभाया था संतू भाई का अहम किरदार
आकाशवाणी रांची के उदघोषक रह चुके प्रदीप कुमार राॅय की पहचान आज भी संतू भाई के रूप में है. वे बताते हैं : वर्ष 1961-62 की बात है. उस वक्त नाटकों का प्रसारण होता था. तब मैं छोटा था. इस दौरान छौवा सभा प्रोग्राम में शामिल होने का मौका मिला. उस वक्त मैं नागपुरी अच्छी तरह बोल लेता था, जिस कारण नागपुरी नाटक के ऑडिशन में सफल हो गया. फिर सुशील कुमार द्वारा लिखित नागपुरी के प्रसिद्ध नाटक सत्य हरिश्चंद्र, आम कोयल और राजकुमारी में किरदार निभाने का मौका मिला. फिर 1969 में अनाउंसर बन गया और 2009 तक यह सफर जारी रहा. आकाशवाणी ने मुझे एक प्रसिद्ध शो में संतू भाई की पहचान दी, जिसे लोग आज भी लोग याद करते हैं. शुरुआत में मैनो बहन कार्यक्रम एसेंसिया खेस करती थीं. सभी उनकी आवाज के कायल थे. फिर सुगिया बहिन कार्यक्रम की शुरुआत हुई, जिसमें रोजलीन लकड़ा ने सुगिया बहिन का किरदार किया. इस कार्यक्रम में हम चार किरदार होते थे, जो ग्रामीण समस्या पर बात करते थे. आकाशवाणी का उद्देश्य अशिक्षा और अंधविश्वास दूर करना, महिलाओं का सम्मान और लोगों को जागरूक करना था, जो आज भी जारी है.
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