रांची: ऑल इंडिया उर्दू कन्वेंशन में झारखंड के उर्दू अदीबो और शायरों में विशेष तौर पर शीन अख्तर, जकी अनवर, गुरबचन सिंह, सिद्दिक मुजीबी, प्रकाश फिकरी, वहाब दानिश, नदीम बल्खी, महजूर शम्सी, शोएब राही, जहीर गाजीपुरी आदि को खिराजे अकीदत पेश किया और दो जगहों पर उनके नाम गेट बनाया गया और शीन अख्तर, सिद्दिक मुजिबी और जकी अनवर का मंच बनाकर उनकी अदबी खिदमत को याद किया गया. इसमें झारखंड साहित्य अकादमी का गठन समेत 6 प्रस्ताव पारित किए गए.
पहला सत्र- हिन्दुस्तानी साहित्य पर उर्दू भाषा का प्रभाव पर था. प्रोफेसर बजरंग बिहारी ने कहा कि बांग्ला, कन्नड़, गुजराती, मराठी, मलयालम, संस्कृत आदि भाषाओं पर उर्दू की छाप साफ तौर पर दिखाई देती है. आपसी प्रेम को बढ़ाने में 500 वर्ष लगे, जिसे आज समाप्त करने की कोशिश की जा रही है. कृष्ण भक्ति की धारा जो आज काफी मजबूत है. इसकी बुनियाद मलिक मुहम्मद जायसी की लेखनी है. नयी संस्कृत में गजलें काफी लिखी जा रही हैं. संस्कृत में कई उर्दू पुस्तकों का अनुवाद हुआ है. परमानंद शास्त्री ने गालिब की गजलों का अनुवाद किया है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर खालिद अशरफ ने कहा कि उर्दू का विकास औरंगजेब के बाद हुआ. 75 प्रतिशत शब्द उर्दू भाषा में हिन्दुस्तानी शब्द हैं. प्रोफेसर अली इमाम खान ने कहा कि उर्दू साहित्य इन्सान, दोस्ती, भाईचारा का संग्रह है. साहित्यकार रवि भूषण ने कहा कि उर्दू शायरी इश्क और इन्कलाब की शायरी है. हिन्दुस्तान इस समय इश्क की भी मांग कर रहा है और इन्कलाब की भी. उर्दू एक खूबसूरत तहजीब का नाम है.
दूसरे सत्र में प्रगतिशील अंदोलन और उर्दू पर समीना खान (लखनऊ) ने कहा कि उर्दू साहित्य पर प्रगतिशील अंदोलन की छाप बहुत साफ है. रणेंद्र ने कहा कि संत कवियों ने जो आपसी भाईचारे का पाठ पढ़ाया है, उसे फरामोश नहीं किया जा सकता. इसके ताने-बाने को तोड़ा नहीं जा सकता है. जाहिद खान (ग्वालियर, मध्य प्रदेश) ने कहा कि उर्दू भाषा को यह गौरव प्राप्त है कि उर्दू साहित्यकारों ने प्रगतिशील अंदोलन की बुनियाद डाली थी. उन्होंने कहा कि साहित्य में मानव समस्याओं को उजागर किया गया है. इसके साहित्य में आपको मजदूर, किसानों के दर्द मिल जायेंगे. सुभाषिनी अली ने कहा कि इस अंदोलन ने औरतों की समस्याओं को भी उजागर किया गया है. चंचल चौहान कहते हैं कि पूंजीवाद और सर्वहारा वर्ग के कश्मकश की पैदावार है प्रगतिशील अंदोलन. उर्दू अखबार और साहित्यकार अंग्रेजों के खिलाफ काफी मुखर रहे.
तीसरा सत्र उर्दू इदारों की सूरते हाल पर था. इसकी अध्यक्षता करते हुए सुभाषिनी अली ने कहा कि केरल में मदरसों में दीनी के साथ दुनियावी तालीम दी जाती है.तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मुसलमानों के अच्छे तालिमी इदारे हैं और क्वालिटी तालीम दी जाती है, लेकिन उत्तर भारत में ऐसा नहीं है. यहां न तो अच्छे तालिमी इदारे हैं और न मेयारी तालीम दी जाती है. डॉ अली इमाम खान ने भी विचार रखे. डॉ खालिद अशरफ़ कहते हैं कि हमारा लेखक संघ जम्हूरियत, मुसावात पर यकीन रखता है. उर्दू अखबारों का इस्लामीकरण हो चुका है जिससे सामाजिक समस्याएं गौण हो चुकी हैं. हर इदारों में उर्दू वालों की इमेज खराब हो चुकी है. उर्दू के नाम पर सैकड़ों लाखों की सैलरी ले रहे हैं, लेकिन काम कुछ नहीं.
डॉ सफदर इमाम क़ादरी ने कहा कि अंजुमन तरक्की उर्दू सबसे बड़ी तंजीम थी. आजादी के पहले मगर उसकी हैसियत घट गई. ये अवामी इदारा था. जामे उस्मानिया जैसे बड़ा इदारा भी जमींदोज हो चुका है. गुजराल कमेटी की सिफारिश से उर्दू अकादमी की तश्कील हुई लेकिन सारी अकादमियों की हालत खराब है. उर्दू अकादमियां मुशायरों में ऐसे लोगों को बुलाती हैं जो योग्य नहीं होते. NCPUL पर काफी गिरफ्त करते हुए कहा कि इनके ओहदेदार योग्य नहीं हैं. उन्होंने कहा कि जम्हूरियत और उर्दू को बचाना है तो मिलजुल कर लड़ना होगा और उनसे अपने आपको अलग करना होगा जो जज़्बाती मसाइल में उलझा कर बुनियादी चीजों से जहन को भटका दिया और हमारी लड़ाई को कमज़ोर कर दिया. नाइश हसन ने कहा कि हमारा समाज सिर्फ मजहबी मुद्दों पर आंदोलित होता है. हमारे दिमाग में बुनियादपरस्ती की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं.
उर्दू और हिंदी के रिश्ते पर गुफराना अशरफी व सरवत अफरोज ने अपने पेपर पढ़े. इस सत्र की अध्यक्षता पंकज मित्र ने की. इसमें 6 प्रस्ताव पारित किए गए-
1. उर्दू अकादमी का गठन
2. उर्दू मीडियम स्कूलों में उर्दू की पढ़ाई सुनिश्चित की जाए
3. उर्दू के विकास के लिए संस्थानों को बेहतर किया जाए
4. झारखंड साहित्य अकादमी का गठन किया जाए
5. हिंदी और उर्दू के रिश्ते मजबूत किया जाए
6. सरकारी गजट, विज्ञापन आदि उर्दू में भी प्रकाशित किया जाए