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बांस की कमाल कारीगरी, हस्तशिल्प सप्ताह पर पढ़िए झारखंड के कारीगारों के हुनर की कहानी

बांस से बारीक से बारीक शिल्पकला की सामग्री सबका मन मोह रही है. इन कारीगरों के हुनर सभी लोग हैरान हो जाते हैं. इन कारीगरों व उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए हर, साल अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह मनाया जाता है. यह सप्ताह हर वर्ष 8 से 14 अक्तूबर तक मनाया जाता है. इसी खास दिन पर पढ़िए लता रानी की रिपोर्ट.

झारखंड के बांस की शिल्प कला देश ही नहीं बल्कि विदेश में पहचानी जा रही है. हमारे कारीगरों के हुनर का ही कमाल है कि बांस की बनायी सामग्री विदेशी धरती पर बिक रही हैं. मनमोहक नाइट लैंप, कुर्सी, खिलौने और घरेलू साज-सज्जा की सामग्री लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं. बांस से बारीक से बारीक शिल्पकला की सामग्री सबका मन मोह रही है. इन कारीगरों के हुनर सभी लोग हैरान हो जाते हैं. यही कारण है कि इन कारीगरों और उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए हर वर्ष अखिल भारतीय हस्तशिल्प सप्ताह मनाया जाता है. यह सप्ताह हर वर्ष आठ से 14 अक्तूबर तक मनाया जाता है. इसी खास दिन पर पढ़िए लता रानी की यह रिपोर्ट.

इसाफ से जुड़े हैं बांस के 3000 से ज्यादा कारीगर

इंसाफ संस्था वर्ष 2008 से झारखंड के बांस के कारीगरों को एकजुट करने में जुटी है. यह संस्था झारखंड के 300 गांवों में सर्वे कराकर ग्रामीणों के बीच काम कर रही है. दुमका, गुमला, लातेहार, रांची, बोकारो और धनबाद में सरकार की मदद से तुरी, परिहार और महली समाज के लोगों को प्रशिक्षित किया गया. इसके बाद बांस के मास्टर ट्रेनर तैयार किये गये, जो आज प्रोडक्शन में अहम योगदान दे रहे हैं. नाबार्ड के सहयोग से दुमका में कारीगरों के लिए सीएफसी सेंटर बनाये गये हैं. यहां मशीन के जरिये बांस के उत्पाद तैयार किये जाते हैं. खास बात है कि यहां बांस के 2000 से ज्यादा प्रकार के उत्पाद बनते हैं. इसमें बास्केट, लैंप, शो पिस, होम डेकोर, टेबल मैट, बॉक्स, फोल्डर, बैग, बकेट और पॉट आदि देखे जा सकते हैं. इसके अलावा सोफा, टेबल, कॉर्नर भी तैयार किये जाते हैं, जिसका डिस्प्ले राजधानी की नया टोली स्थित प्रोजेक्ट ऑफिस में देख सकते हैं. वहीं झारक्राफ्ट और ट्राइफेड में भी बैंबू आर्ट का कलेक्शन है. कारीगरों के हाथ की बनी बैंबू आर्ट इसाफ की मदद से ऑनलाइन और ऑफलाइन बिक्री की जा रही है. कारीगरों को रोजगार मिल पा रहा है. ये उत्पाद विदेशों में भी पहुंच रहे हैं.

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झारखंड के बांस हैंडीक्राफ्ट के लिए काफी अच्छे

हाल में खूंटी में हुए महिला सम्मेलन में राज्यपाल ने बांस से जुड़ी महिला कारीगरों के उत्पादों की सराहना कर चुके हैं. इस कारण कारीगरों का आत्मविश्वास बढ़ा है. गुमला के पालकोट में पांच एकड़ में बैंबू प्लांटेशन किया जा रहा है, ताकि इससे और भी कारीगरों को रोजगार मिल सके. वहीं बांस की कारीगरी को बढ़ावा देने के लिए सिदो-कान्हो विवि में ट्राइबल आर्ट और बैंबू आर्ट की कैंपस ट्रेनिंग दी जा रही है. यह ट्रेनिंग छह माह दी जाती है. विशेषज्ञों का कहना है कि झारखंड के बांस हैंडीक्राफ्ट के लिए बेहतर हैं, यही कारण है कि यहां बैंबू आर्ट फल-फूल रहा है.

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बरियातू में बननेवाले लकड़ी के लैंप से फैल रही रोशनी

बरियातू इलाके में दीपाली हस्तशिल्प उद्योग चला रही हैं. उनका समूह बांस के उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग में जुटा हुआ है. खास बात है कि बांस के काम से जुड़कर लोग रोजगार हासिल कर रहे हैं. बांस के उत्पादों से जुड़ी संस्थाएं यहां से थोक कीमत पर खरीदारी करती हैं, जिसकी मार्केटिंग ऑनलाइन भी होती है. बरियातू में 20 कारीगर प्रतिदिन बांस से जुड़े प्रोडक्ट बना रहे हैं. यहां मुख्य रूप से खूबसूरत लैंप बनते हैं. एक कारीगर हरेक दिन एक लैंप बना लेता है. आज इन उत्पादों की पहचान ट्रेड फेयर तक बन चुकी हैं. यहां से तैयार बांस के उत्पाद देश-दुनिया में पहुंच रहे हैं.

ड्राइ फ्लावर की बिक्री से आदिवासी महिलाएं हो रहीं सशक्त

कोकर की रहनेवाली शांति तिर्की अपने हैंडमेड ड्राइ फ्लावर के लिए जानी जाती हैं. इनके हाथ के बने ड्राइ फ्लावर की खूबसूरती की तारीफ आदि महोत्सव हो या ट्रेड फेयर हर जगह होती है. इसमें मकई के पत्तों, सोला वुड, टुसू फूल का इस्तेमाल करती हैं. वह 20 वर्षों से देश भर में लगनेवाले मेलों में शिरकत कर रही हैं. मूल रूप से लोहरदगा की रहनेवाली शांति तिर्की उरांव महिला समिति की अध्यक्ष हैं. इस समिति से आदिवासी समुदाय की 39 महिलाएं जुड़ी हुई हैं, जो ड्राइ फ्लावर के साथ-साथ बांस के गहने, अचार, पापड़ और जूट बैग तक बना रही हैं. शांति कहती हैं : मेरी शुरुआत नयी दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर से हुई. हमारे उत्पादों की दिल्ली में काफी डिमांड है. स्टॉक खत्म हो जाता है. हमलोग साल भर विभिन्न मेलों में बिक्री के लिए उत्पाद तैयार करते हैं. इस कारण आदिवासी महिलाएं सशक्त भी बन रही हैं.

महिलाओं को लाह की ट्रेनिंग दे रहे हैं जाबर

जयपुर के रहनेवाले जाबर 20 वर्षों से झारखंड की महिलाओं को लाह संवर्धन में स्वावलंबी बना रहे हैं. पूरे झारखंड की महिलाओं को लाह की ट्रेनिंग दे रहे हैं. इससे महिलाएं लाह की चूड़ियां बना रही हैं और उसकी बिक्री भी खुद कर रही हैं. लाह हस्तशिल्प स्वावलंबी सरकार समिति का प्रोडक्शन केंद्र खूटी में हैं. वहीं जाबर खुद कांटाटोली में रहते हैं. हाल में ही दिल्ली ट्रेड फेयर से लौटे हैं, जहां उन्हें प्रथम पुरस्कार से नवाजा गया. जाबर अपने समूह के माध्यम से लाह की चूूड़ियों के साथ साथ लाह का वैनिटी बॉक्स, खिलौने, हाथी, ऊंट और घर की सजावट की सामग्री भी बना रहे हैं. वे कहते हैं : झारखंड का लाह काफी समृद्ध है. ऐसे में गुमला, सिमडेगा जैसी जगहों से लाह मंगवाये जा रहे हैं. हस्तशिल्प की बिक्री हो रही है.

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