राजीव पांडेय, रांची :
हृदय रोगियोंं की सहूलियत के लिए भले ही केंद्र सरकार ने स्टेंट की कीमतें निर्धारित कर दी है, पर इसके इलाज के खर्च में मरीजों को राहत नहीं मिल पायी है. स्टेंट में ज्यादा पैसा वसूलने का विकल्प नहीं होने के कारण निजी अस्पतालों ने पैसे लेने के नये-नये रास्ते निकाल लिये हैं. इलाज पैकेज में है, जिसमें बमुश्किल 70,000 से 80,000 रुपये (सभी खर्च शामिल) खर्च आता है. लेकिन मरीज से एक स्टेंट लगाने के नाम पर 1.05 से 1.75 लाख और दो स्टेंट लगने पर 2.25 लाख रुपये तक वसूला जा रहा है.
कोरोना इफेक्ट, खान पान, तनाव के कारण झारखंड में भी हृदय रोगियों संख्या और हार्ट अटैक के मामले बढ़ते जा रहे हैं. 30 से 35 साल के युवाओं को हार्ट अटैक हो रहा है, जिनका इलाज निजी अस्पतालों में हो रहा है. इधर, राज्य के सुपरस्पेशियलिटी अस्पतालों ने हृदय रोगियों के इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूलने के उद्देश्य से कैथ लैब स्थापित कर लिया है. यहां एंजियोप्लास्टी में 90,000 से 1.75 लाख रुपये खर्च हो जा रहे हैं.
अगर मरीज को दो स्टेंट लगाना पड़ गया, ताे यह खर्च 2.25 लाख रुपये तक पहुंच जा रहा है. यह स्टेंट की अधिकतम कीमत 40,000 रुपये निर्धारित किये जाने के बाद है. कुछ हार्ट के डॉक्टर भी यह मानते हैं कि स्टेंट की कीमत निर्धारित करने के बावजूद निजी अस्पतालों में एंजियोप्लास्टी करना महंगा हो गया है.
अगर राजधानी के चैरिटेबल अस्पताल में मरीज का एंजियोप्लास्टी होता है, तो उसका पैकेज 90,000 रुपये और स्टेंट की कीमत है. यानी वहां 1.05 लाख से 1.30 लाख रुपये तक खर्च आता है. वहीं, मरीज को दो स्टेंट लगाने की नौबत आ गयी, तो पैकेज एक लाख और स्टेंट की कीमत है. इसके अलावा बैलून की अतिरिक्त जरूरत पड़ गयी, तो खर्च 15,000 से 20,000 रुपये बढ़ सकता है. इधर, कॉरपोरेट अस्पताल में एक स्टेंट लगाने का खर्च 1.25 से 1.50 लाख रुपये तक आता है. दो अतिरिक्त स्टेंट खर्च जुड़ जायेगा. यहां भी बैलून के अतिरिक्त खर्च को जोड़ दिया जाये, तो खर्च 1.75 लाख तक पहुंच जायेगा.
निजी अस्पताल वाले इलाज के खर्च में तरह-तरह के आइटम को जोड़ते हैं. वह मशीन और बिल्डिंग निर्माण के इएमआई को निकालने के लिए ओटी स्टॉफ चार्ज, नर्सिंग जार्च, टेक्नीशियन चार्ज, एनेस्थिसिया और आइसीयू का चार्ज अलग-अलग जोड़ते हैं. इससे पैसा बढ़ जाता है.
चैरिटेबल और कॉरपोरेट अस्पतालों में भले ही मरीजों से इलाज के लिए मोटी रकम वसूली जाती है, लेकिन डॉक्टर को ज्यादा पैसा नहीं मिल पाता है. डॉक्टर को पैकेज का मात्र 12 से 15 फीसदी तक ही प्रोसिज्योर के लिए दिया जाता है. डॉक्टर भी मानते है कि उनको ज्यादा लाभ नहीं है, लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाते है, क्योंकि उनको प्रतिदिन काम करना है.
हृदय रोगी ने अगर इंश्योरेंस करा रखा है, तो इलाज का खर्च बढ़ जाता है. थर्ड पार्टी इंश्योरेंस होने पर इलाज के कुल खर्च (सुपरस्पेशियलिटी व कॉरपोरेट अस्पताल) में 25,000 से 30,000 रुपये तक अलग से बढ़ जाता है. कंपनियां अस्पतालों को अलग-अलग का रेट देती हैं. यानी हृदय रोगी को एक स्टेंट लगाने में 1.75 लाख और दो स्टेंट लगाने पर खर्च 2.25 से 2.35 लाख रुपये तक आता है.
‘प्रभात खबर’ लगातार स्वास्थ्य सेवाओं में खामियों को उजागर करता रहा है. वर्ष 2015 में निजी अस्पतालों में हृदय रोगियों से मनमाना पैसा वसूले जाने की मुहिम ‘प्रभात खबर’ ने चलायी थी. इसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने जांच टीम गठित कर अस्पतालों की जांच करायी थी. जांच में इसकी पुष्टि हुई थी. हालांकि, कुछ माह बाद केंद्र सरकार ने स्टेंट की कीमत निर्धारित कर दी थी.
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