court room : तीन बार आदेश होने के बाद भी प्रार्थियों को नहीं मिली नौकरी, हाइकोर्ट नाराज
सचिव, स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के प्रशासक व पुनर्वास निदेशक को हाजिर होने का निर्देश
वरीय संवाददाता, रांची. झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस संजय प्रसाद की अदालत ने वर्ष 1986-87 में स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना के विस्थापितों की ओर से नाैकरी को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई की. इस दाैरान अदालत ने प्रार्थियों का पक्ष सुना. इसके बाद मामले को गंभीरता से लेते हुए अदालत ने जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव/सचिव (जिसे अब पेयजल व स्वच्छता विभाग के रूप में जाना जाता है), परियोजना के पुनर्वास, भूमि अधिग्रहण निदेशक तथा परियोजना के प्रशासक को अगली सुनवाई के दाैरान सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया. मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर को होगी. इससे पूर्व प्रार्थियों की ओर से अदालत को बताया गया कि स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना चांडिल के लिए राज्य सरकार ने प्रार्थियों के परिवार की जमीन का वर्ष 1986-1987 में अधिग्रहण किया था. प्रार्थी नौकरी के लिए अभी भी इंतजार कर रहे हैं. विस्थापित होने के बावजूद राज्य सरकार ने पुनर्वास नीति का लाभ नहीं दिया है. उनकी ओर से हाइकोर्ट में वर्ष 1991 को लेकर याचिका दायर की गयी थी. हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को सरकार की नीति के तहत उन्हें नौकरी देने का आदेश दिया था. नाैकरी नहीं मिलने पर वर्ष 2001 में पुन: दोबारा याचिका दायर की गयी. हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रार्थियों के मामले का निष्पादन प्राथमिकता के आधार पर करने का आदेश दिया था. नियुक्ति नहीं मिलने पर तीसरी बार वर्ष 2014 में हाइकोर्ट में याचिका दायर की है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी मदन गोप व अन्य की ओर से याचिका दायर कर पुनर्वास नीति के तहत नाैकरी की मांग की है.
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