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झारखंड की असुर जनजाति ने अपनी भाषा, संस्कृति को बचाने के लिए शुरू किया रेडियो प्रोग्राम, इस क्षेत्र में होता है प्रसारित

असुर रेडियो’ का प्रसारण नेतरहाट के सखुआपानी और जोभीपाट गांव में किया जाता था. लोग इसे काफी पंसद कर रहे हैं और यह अब लुपुंगपाट में भी शुरू होगा.

प्रवीण मुंडा, रांची : नेतरहाट की वादियों में बसे गांवों में लगनेवाले हाट बाजारों में आवाज गूंजती है. ‘तुर्रर..धातिंग…नातिंग…तुर्र.. नोवा हेके असुर अखड़ा रेडियो रेडियो एनेगाबु सिरिंगाबु डेगाबू सिरिंगाबु ईररर…’ इसका अर्थ है… ये है हमारा असुर अखड़ा रेडियो, आइये नाचेंगे, डेगेंगे, गायेंगे. यह बिना फ्रिक्वेंसी वाला रेडियो है. कार्यक्रम रिकार्ड किये जाते हैं. उनकी एडीटिंग की जाती है और फिर साउंड सिस्टम के जरिये हाट बाजारों में जहां लोगों की भीड़ होती है, सुनाया जाता है. आदिम जनजाति असुर समुदाय द्वारा संचालित रेडियो प्रोग्राम एक अनूठी पहल है. सीमित संसाधनों के बावजूद अपनी भाषा में खुद के बनाये कार्यक्रमों को प्रसारित करने का. अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपनी कला, अपनी बातों को कहने और सुनने का.

आधे घंटे का होता है रेडियो कार्यक्रम

असुर रेडियो’ का प्रसारण नेतरहाट के सखुआपानी और जोभीपाट गांव में किया जाता था. लोग इसे काफी पंसद कर रहे हैं और यह अब लुपुंगपाट में भी शुरू होगा. रेडियो कार्यक्रम आधे घंटे का होता है. इसमें असुर गीत, आधुनिक गीत, पुरखा कहानियां, नयी कहानियां, संगीत, परिचर्चा और समाचार सुनाये जाते हैं. कार्यक्रम की रूपरेखा क्या होगी, कौन से कार्यक्रम प्रस्तुत किये जायेंगे यह सारी चीजें असुर समुदाय के लोगों के द्वारा ही तय किये जाते हैं.

तीन दिवसीय कार्यशाला में मिला प्रशिक्षण

नेतरहाट में ‘असुर रेडियो’ का संचालन करनेवाली टीम को गुमला में तीन दिवसीय कार्यशाला में प्रशिक्षण दिया गया. यह कार्यशाला इसमें 10 और लोग जुड़े. रेडियो से जुड़े सभी नये पुराने सदस्यों को तकनीकी रूप से सक्षम बनाने के लिए जानकारी दी गयी, ताकि टीम में मजबूती आये और प्रोग्राम और बेहतर बन सके. कार्यशाला में अश्विनी कुमार पंकज, अमन किस्पोट्टा, वंदना टेटे, रोहित सोरेंग, रितेश टुडू और शिवशंकर सोरेन ने मोबाइल, टैब, कैमरा, कंप्यूटर, ऐप के इस्तेमाल व सावधानियों का प्रशिक्षण दिया.

झारखंडी भाषा साहित्य समिति अखड़ा के क्षेत्रीय कमेटी करती है संचालन

‘असुर रेडियो’ का संचालन झारखंडी भाषा साहित्य समिति अखड़ा के क्षेत्रीय कमेटी के द्वारा संचालित है. इसमें 20 लोग हैं. इन्हें लीड कर रहे हैं कवयित्री सुषमा असुर, मिलन असुर और चैत टोप्पो. यह टीम पिछले छह सालों से बिना किसी सरकारी मदद के रेडियो कार्यक्रमों का प्रसारण कर रही है. असुर भाषा, साहित्य और संस्कृति के सरंक्षण संवर्द्धन और विकास के लिए कर रही है. बाद में प्रोग्राम को साउंड क्लाउड, यू ट्यूब आदि में सुना जाता है.

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