आजादी का अमृत महोत्सव: जोगेशचंद्र चटर्जी का जन्म 1895 में ढाका जिला के गावड़िया गांव (अभी बांग्लादेश) में हुआ था. उनके पिता खुलना जिले में व्यवसाय करते थे. जोगेश को शिक्षा प्राप्त करने के लिए कुमिल्ला भेजा गया था. यहीं पर उनकी मुलाकात प्रसिद्ध क्रांतिकारी संगठन ‘अनुशीलन समिति’ के नेता विपिन चटर्जी से हुई और वे छोटी उम्र में ही क्रांति के रंग में रंग गये. जोगेशचंद्र चटर्जी के क्रांतिकारी गतिविधियों की भनक मिलते ही ब्रिटिश पुलिस उनके पीछे लगी हुई थी, लेकिन वह पुलिस के हाथ आने से बचते रहे. उन्होंने कलकत्ता स्थित पथरियाघाट में एक क्रांतिकारी अड्डे को अपना बसेरा बना लिया था. वहीं क्रांतिकारियों के लिए भोजन बनाया करते थे.
जेल में उन्हें करना पड़ा अत्याचार का सामना
9 अक्तूबर, 1916 की शाम पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया. क्रांतिकारी साथियों का नाम बताने के लिए जोगेशचंद्र के साथ तरह-तरह की प्रताड़ना दी गयी. अंत में पुलिस ने उन्हें कलकत्ता प्रेसीडेंसी जेल के 44 नंबर कोठरी में भेज दिया. दो वर्षों तक उन्हें उस जेल में बंद रखा गया, जेल में भी उनके साथ अत्याचार किये गये. अत्याचार के खिलाफ उनको अनशन का सहारा लेना पड़ा. एक हफ्ते तक उन्होंने एक दाना तक नहीं खाया. जब उनकी दशा बिगड़ने लगी तो उन्हें राजशाही जेल ट्रांसफर कर दिया.
भारत छोड़ो आंदोलन के समय भी जाना पड़ा जेल
वर्ष 1937 में जेल से बाहर आने पर जोगेशचंद्र चटर्जी अपनी पुरानी गतिविधियों में पुनः संलग्न हुए ही थे कि 1940 में गिरफ्तार करके उन्हें देवली कैंप जेल में डाल दिया गया. वहां के दुर्व्यवहार के विरुद्ध अनशन करने पर वे छोड़ तो दिये गये, लेकिन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल होने की वजह से उन्हें फिर जेल जाना पड़ा. आखिरकार 19 अप्रैल, 1946 को उनकी रिहाई हुई. स्वतंत्रता के बाद जोगेशचंद्र चटर्जी कांग्रेस से राज्यसभा के सदस्य रहे. जोगेशचंद्र चटर्जी ने कुल मिलाकर 24 वर्ष जेलों के भीतर काटे और इस दौरान वे कई बार अनशन पर रहे.
हजारीबाग के जेल में भी बंद रहे जोगेशचंद्र
अनुशीलन पार्टी बंगाल के बाहर भी अपनी क्रांतिकारी गतिविधियों का विस्तार करना चाहती थी. इसके लिए जोगेशचंद्र चटर्जी को उत्तर प्रदेश भेजा गया. वहां उन्होंने बनारस और कानपुर को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया. धीरे-धीरे उनका संपर्क वहां के क्रांतिकारियों से हुआ. इनमें शचीन्द्रनाथ सान्याल, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और काकोरी कांड के अन्य क्रांतिकारी सम्मिलित थे. 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के निकट काकोरी नामक स्थान पर रेलगाड़ी को रोककर कुछ क्रांतिकारियों ने सरकारी खजाना लूट लिया था. इसके बाद देशभर में गिरफ्तारियां हुईं.
काकोरी कांड में जोगेशचंद्र हुए थे गिरफ्तार
जोगेशचंद्र चटर्जी को भी हावड़ा में ब्रिटिश पुलिस ने काकोरी कांड की साजिश के लिए गिरफ्तार कर लिया. उन्हें पहले कलकत्ता के प्रेसीडेंसी जेल में रखा गया, लेकिन उस समय क्रांतिकारियों को एक जेल में ज्यादा दिन नहीं रखा जाता था, सो उनको बहरामपुर जेल भेज दिया गया, वहां सुभाष चंद्र बोस से उनकी मुलाकात हुई. जेल कर्मी से झगड़ने की वजह से जोगेशचंद्र को बाद में हजारीबाग जेल में भेज दिया गया. काकोरी कांड के मुकदमे के लिए बाद में उन्हें हजारीबाग से लखनऊ जेल भेज दिया गया. काकोरी कांड केस का जब निर्णय सुनाया गया, तो जोगेशचंद्र चटर्जी को आजीवन जेल की सजा सुना दी गयी. उन्होंने जेलों में क्रांतिकारियों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के खिलाफ समय-समय पर भूख हड़ताल की और फतेहगढ़, आगरा व लखनऊ की जेलों में सजा पूरी की.