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नेपाल भी था अगस्त क्रांति के आंदोलनकारियों का ठौर

अंगरेजों के खिलाफ महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन बिहार में परवान चढ़ चुका था. अंग्रेजों ने आंदोलन को दबाने की भरपूर कोशिशें कीं. सरकार ने बिहार के गांव-गांव में हेडमैन चुने

अंगरेजों के खिलाफ महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन बिहार में परवान चढ़ चुका था. अंग्रेजों ने आंदोलन को दबाने की भरपूर कोशिशें कीं. सरकार ने बिहार के गांव-गांव में हेडमैन चुने, भेदिये बहाल किये जो आंदोलकारियों की सूचना उन तक पहुंचाते थे. इसके चलते करीब पचीस हजार आंदोलनकारी जेलों में बंद कर दिये गये. इसी दौरान आठ नवंबर, 1942 को जयप्रकाश नारायण हजारीबाग सेंट्रल जेल की दीवार फांद कर भाग निकले.

उनके साथ थे योगेंद्र शुक्ल, सूरज नारायण सिंह, रामनंदन मिर, गुलाली सोनार उर्फ गुलाब चंद्र गुप्त और शालीग्राम सिंह. तत्कालीन अंग्रेजी सरकार ने जयप्रकाश नारायण को पकड़ने के लिए 21 हजार रुपये का इनाम रखा था. जेल से बाहर आये जयप्रकाश ने युवकों के आजा दस्ता का गठन किया. उन्हें गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया गया. राममनोहर लोहिया को रेडियो और प्रचार विभाग का अध्यक्ष बनाया गया.

बिहार के लिए आजाद परिषद का गठन किया गया. सूरज नारायण सिंह इसके संयोजक बनाये गये. उन दिनों युवाओं के बीच चर्चा में रहे जयप्रकाश नारायण ने हिंसा वनाम अहिंसा पर अपनी राय रखी. जयप्रकाश ने कहा हिंसा और अहिंसा के मामले में हमारी नीति कांग्रेस के प्रतिकूल नहीं है.

राष्ट्रीय सरकार की स्थापना हो जाने पर जर्मनी और जापानियों से लोहा लेने के लिए कांग्रेस तैयार रही है. उसने माना है कि उसे आजादी मिल गयी तब अपनी आजादी पर हमला करने वालों से वह लड़ेगी. फिर हम अंग्रेजों के खिलाफ हथियार क्यों न उठाएं. जयप्रकाश ने कहा, हमने तो अपने को आजाद घोषित किया है ओर हमारी आजादी पर अंग्रेज हमला कर रहे हैं. उससे हमारा लड़ना कैसे अनुचित कहा जा सकता है.

अगस्त क्रांति पर बिहार अभिलेखागार की प्रमाण्धिक पुस्तक अगस्त क्रांति के अनुसार 30 नवंबर, 1942 तक बिहार में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के तहत 14478 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. इनमें से 8785 लोगों को जेलों में बंद कर कठोर यातनाएं दी गयीं. पुलिस की गोली से 134 लोग मारे गये और 362 लोग घायल हुए. 196 लोगों को कोड़ा मारने की सजा दी गयी.

जहां तोड़-फोड़ की घटनाएं हुईं, वहां सामुहिक जुर्माना लगाया गया. आंदोलन के दौरान राज्य के कई इलाकों में ब्रिटिश सरकार बाधित हो गयी. सारण जिला में मांझी, एकमा, दिघवारा और रघुनाथपुर में जनता की सरकार चलने लगी. हाजीपुर, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी और दरभंगा के कई स्स्थानों पर समानांतर सरकारें चलने लगी.

बिहार के आंदोलनकारियों को नेपाल से बड़ी उम्मीदें थीं. मार्च-अप्रैल 1943 में नेपाल में आजाद दस्ता का प्रशिक्षण शिवार शुरू हुआ. इसमें बिहार के पचीस चुनिंदा नौजवानों को हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया. दो महीने तक चलने वाले इस प्रशिक्षण शिविर में भाग ले रहे रामनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण नेपाली पुलिस के हत्थे चढ़ गये, लेकिन आंदोलनकारियों ने नेपाल के हनुमाननगर जेल में ले जाये गये इन दोनों नेताओं को छुड़ा लिया.

इन दोनों नेताओं को रिहा कराने का दोष बरसाइन निवासी रामेश्वर प्रसाद सिंह, तारिणी प्रसाद सिंह, कोइलाड़ी निवासी चतुरानंद सिंहजयमंगल प्रसाद सिंह तथा बभनगामा निवासी भीम बहादुर सिंह पर लगाया गया. एक दिन अचानक पांच सौ ब्रिटिश पुलिस की फौज कोइलाड़ी गांव को घेर लिया और जयमंगल सिंह के नहीं मिलने पर उनके बड़े भाई रामेश्वर प्रसाद सिंह को पकड़ राजविराज जेल में बंद कर दिया.

कुछ दिनों बाद जयमंगल सिंह, रामेश्वर सिंह, चतुरानन सिंह और तारिणी सिंह भी गिरफ्तार कर लिये गये. इन लोगों को भी नेपाल के राजविराज जेल में रखा गया. यहां इन लोगों को कठोर यातनाएं दी गयीं. बाद में इन सबों को काठमांडु स्थित जंगी जेल के गोलघर सेल में तीन साल तक कैद रखा गया. इन सबों की सारी संपत्ति को सरकार ने अपने अधीन ले लिया, जिसके कारण कारावास में होने के दौरान ही तारिण्रसाद सिंह के दो पुत्र भरण पोषण के अभाव में मौत के शिकार हो गये. अभिलेखागार के दस्तावेज बताते हैं कि नेपाल के सप्तरी जिले के निवासी यह सभी लोग 11 अगस्त, 1942 को पटना में सचिवालय पर झंडा फहराने की भीड़ में मौजूद रहे थे.

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