छऊ नृत्य के बहाने भजोहरी महतो ने मानभूम में उड़ा रखी थी अंग्रेजों की नींद
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तत्कालीन मानभूम जिला स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. उसके चप्पे-चप्पे में आंदोलन की आग जल रही थी. आंदोलन का नेतृत्व करने वालों में कई मुख्य चेहरे थे.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में तत्कालीन मानभूम जिला स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. उसके चप्पे-चप्पे में आंदोलन की आग जल रही थी. आंदोलन का नेतृत्व करने वालों में कई मुख्य चेहरे थे. उनमें भजोहरी महतो का नाम भी काफी प्रमुखता से लिया जाता है. बंदवान के निकट जीतान गांव, जो वर्तमान में बंगाल (पुरुलिया जिला) में है, भजोहरी महतो की जन्मस्थली है.
यहां कदम रखते ही उनकी वीरता की कहानी गांव की मिट्टी भी खुद-ब-खुद बयां कर उठती है. वे आजादी के बाद तीन-तीन बार सांसद भी बने, पर ईमानदारी कभी नहीं छोड़ी. जीतान गांव में इनका छोटा-सा कच्चा मकान भी उनकी ईमानदारी का साक्ष्य बना हुआ है. वे चूनाराम महतो, जो स्वयं भी स्वतंत्रता सेनानी थे, के पांच पुत्रों व एक पुत्री में सबसे बड़े थे. इन्होंने अनेक तरीके से आंदोलनों को नेतृत्व दिया था.
स्वर्गीय महतो मूलतः किसान परिवार से थे. पढ़ाई खत्म करने के बाद जीविकोपार्जन के लिए मसाला की दुकान खोली. व्यापार घाटे में जाने पर दुकान बंद कर जमशेदपुर चले गये. सोनारी में चावल का व्यापार शुरू किया. तब सोनारी साधारण-सा गांव था. सिर पर चावल लेकर स्वर्णरेखा नदी पारकर बेचने जाते थे.
इसी दौरान वे कपाली गांव के जमींदार, जो स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे, के संपर्क में आये. उनसे प्रभावित हुए और वर्ष 1930 में कांग्रेस में शामिल हो गये. थोड़े दिनों में ही कांग्रेस के प्रति इनके समर्पण ने इनकी खास पहचान बना दी. किशोरी सिंह सरदार, रोहिणी मुड़ी, रेवती रमण चट्टोपाध्याय जैसे स्वतंत्रता सेनानी ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए इनके घर शरण लेने लगे.
भजोहरी ने गांवों के युवाओं को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने के लिए एक अनोखी पहल की थी. छऊ नृत्य टीम बनायी और योजनाबद्ध तरीके से युवाओं को आंदोलन से जोड़ना शुरू किया था. रात में छऊ नृत्य के बहाने बैठक होती थी और आंदोलन की रणनीति बनती थी. हालांकि, फिरंगियों की नजर से यह गतिविधि अधिक दिनों तक छुपी नहीं रही.
दारोगा ने भजोहरी को थाना बुलाकर छऊ नृत्य बंद करने का निर्देश दिया. भजोहरी पर ब्रिटिश पुलिस की धमकी का कोई असर नहीं पड़ा. तब पुलिस ने भजोहरी समेत टीम के अन्य सदस्यों पर धारा 107 के तहत मुकदमा कर दिया. हालांकि, पुरूलिया कोर्ट से सबों को जमानत मिल गयी थी.
एक बार छऊ नृत्य अभ्यास के दौरान छऊ नृत्य स्थल पर ब्रिटिश सैनिक के चौकीदारों ने पेशाब कर दिया. आंदोलनकारियों ने जब यह देखा तो चौकीदारों की खूब पिटाई की. भजोहरी और उनके साथियों को हिरासत में ले लिया गया.
वर्ष 1939 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन के दौरान पोटमदा के कुमीर गांव में सत्याग्रह कर रहे भजोहरी एवं इनके सहयोगी गिरफ्तार कर लिये गये. तीन माह की जेल एवं 30 रुपया जुर्माना हुआ. कुछ दिनों बाद इन पर एक और मुकदमा दर्ज कर दिया गया. इसमें दो माह की जेल हुई. सितंबर, 1941 में रिहा हुए और पुनः आंदोलन में सक्रिय हो गये. 1942 (फरवरी माह के प्रथम सप्ताह) में जीतान गांव में उनके नेतृत्व में कांग्रेस की बैठक हुई.
इसमें अतूलचंद्र घोष, लावण्य प्रभा घोष, कमला बाला घोष, भाविनी महतो, मोहिनी महतो, विभूतिभूषण दासगुप्ता, श्रीराधव आचारिया, शिरिष बनर्जी, जगबंधु भट्टाचार्य, कृष्ण प्रसाद चौधरी, सागर प्रसाद महतो, सत्यकिंकर महतो, चूनाराम महतो, भीमचंद्र महतो, मथनचंद्र महतो, कालीचरण सिंह सरदार, अमरेंद्रनाथ दत्ता, हराधन कुंभकार जैसे स्वतंत्रता सेनानी जुटे, लेकिन ब्रिटिश की दलाली करने वाले गांव के महतो मुखिया को यह बैठक नागवार गुजरी. उसने महतो जाति के लोगों को कांग्रेस करने के आरोप में समाज से बहिष्कृत करने की घोषणा कर दी. राशन से लेकर बेटी के ब्याह तक पर पाबंदी लगा दी गयी, पर महतो जाति के एक भी स्वतंत्रता सेनानी इससे विचलित नहीं हुआ.
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी भजोहरी ने उग्र आंदोलन किया. 21 सितंबर, 1942 की बैठक में अतुलचन्दे घोष के भाई अमूलचंद्र घोष भी मौजूद थे. कोलकाता में पढ़ाई की थी. स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित होकर कोलकाता से मानभूम लौटे और इसमें कूद पड़े थे. बैठक में पहली अक्तूबर, 1942 की रात को मानभूम मानभूम जिले के सभी थानों को एक साथ फूंक देने, पुलिसकर्मियों को बंदी बना लेने व थाना के सभी रिकाॅर्ड को आग के हवाले कर देने का फैसला हुआ. पुरूलिया स्थित मानभूम हैडक्वार्टर पर कब्जा करने, जगह-जगह पुल-पुलिया तोड़ने, बिजली, रेल व टेलीग्राम लाइन काटने की भी योजना बनी.
निर्धारित तिथि में आंदोलनकारी अलग-अलग जगहों पर जुटे. मधुपुर गांव में करीब 200 आंदोलनकारी रात को एक मैदान में एकत्र हुए और सबसे पहले पोस्को नदी पर बने पुल को उड़ा दिया. रात करीब तीन बजे बंदे मातरम के नारे लगाते हुए बंदवान थाना पर हमला बोल दिया. पांच पुलिसकर्मी बंधक बना लिये गये. बाकी भाग खड़े हुए. थाने में आग लगा दी गयी. यह ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा. मानबाजार थाने में भी तिरंगा लहरा दिया गया. पुलिस ने फायरिंग की. कुछ स्वतंत्रता सेनानियों को गोली लग गयी. बंदवाना थाना को फूंकने की घटना के बाद गांव-गांव में लोगों की गिरफ्तारी शुरू हुई.
इधर, भजोहरी महतो को कुछ दिनों तक मांझीहाड़ा आश्रम में छुप कर रहना पड़ा. इसके बाद वे अपने गांव जीतान चले गये. यहां आर्मी ने सभी को गिरफ्तार कर लिया. बंदवान थाना को फूंककर उसपर तिरंगा लहराने के आरोप में 18 महीने जेल की सजा हुई. इनमें विभूतिभूषण दासगुप्ता, वीर राघव आचार्य, रेवती कांत चट्टोपाध्याय समेत 25 आंदोलनकारियों को पटना जेल भेजा गया. भजोहरी के दो पुत्र-नीलकमल महतो एवं दीपकचंद्र महतो तथा दो पुत्री-नीलमनि देवी एवं भाविनी देवी है.