Azadi Ka Amrit Mahotsav: रामनिशान ने स्कूल में लगे यूनियन जैक को उतार लहराया था तिरंगा
हजारों स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग, संघर्ष और बलिदान के कारण आज हम सब आजाद भारत में सांस ले रहे हैं. मां भारती को ब्रितानी जंजीर से मुक्त कराने के लिए वीर बांकुरों ने जान की बाजी तक लगा दी. स्वतंत्रता दिवस पर अपने झारखंड के स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष व त्याग के बलिदान को याद कर रहे हैं.
Azadi Ka Amrit Mahotsav: 1930-40 के दशक में संताल परगना जिला मुख्यालय दुमका में कई छात्र-युवा महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सरीखे नेताओं के आह्वान पर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे. भारत छोड़ो आंदोलन का जब नारा बुलंद हुआ तो युवाओं ने अंग्रेजी हुकूमत का हर तरह से विरोध करना शुरू कर दिया था. 1923 में इसी संताल परगना की धरती पर जिला स्कूल में अध्ययनरत एक युवा रामनिशान राय ने विद्यालय की छत पर लगे यूनियन जैक को उतार दिया था और तिरंगा लहरा दिया था. दरअसल रामनिशान स्वतंत्रता आंदोलन से प्रभावित थे. इलाके में जगह-जगह तब लोग स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर विरोध प्रकट कर रहे थे. अंग्रेजी दासता के विरोध की वजह से जन सामान्य को तरह-तरह से शोषित-प्रताड़ित किया जा रहा था. ऐसे घटनाक्रम पढ़े-लिखे युवाओं को ज्यादा ही उद्वेलित कर रहा था.
रामनिशान राय के पोते अधिवक्ता शैलेंद्र राय बताते हैं कि जब उनके दादाजी जिला स्कूल (स्थापित-1864) में पढ़ रहे थे. तब विद्यालय भवन के रंगाई-पुताई का काम चल रहा था. मध्याह्न अवधि में रामनिशान की तरह ही सारे किशोर वर्गकक्ष से बाहर थे. तो धोती-कुर्ता पहने एक शख्स ने उन सभी से स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर बातचीत की और उन्हें झकझोरा कि जब पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा है, तो वे अपनी किस तरह से इस लड़ाई में भूमिका सुनिश्चित कर रहे हैं. किशोरों से कहा कि वे गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के लिए आगे बढ़ें. ऐसे में रामनिशान राय ने रंगाई-पुताई के लिए लगी सीढ़ी से चढ़कर सीधे ब्रिटिश हुकूमत के झंडे यूनियन जैक को उतार दिया था और तिरंगा लहरा दिया था.
इतनी बड़ी क्रांतिकारी घटना की जानकारी तब स्कूल के प्राचार्य को हुई तो उन्होंने वह सीढ़ी ही हटवा दी, जिसके बाद उतरने के लिए रामनिशान को छत से छलांग लगाने के अलावा कोई विकल्प न बचा था. जब वे छलांग मारकर नीचे पहुंचे, तो अपने दर्जनभर साथियों के वे नायक बन गये. उन सारे किशोरों में और भी जोश जगा. सारे छात्र टीन बाजार चौक पहुंच गये. वहां भी अंग्रेज शासक-प्रशासक के विरोध में नारे लगे. तत्कालीन एसडीओ ने उन सभी को घेर लिया, पर आजादी के दीवाने ये किशोर मानने वाले कहां थे. एसडीओ के टोपी को उनमें से एक ने उनके सिर से उड़ाकर उछाल दिया और उसी टीन बाजार में उससे वे फुटबाल की तरह खेलने लगे. ये सब करने के बाद वेलोग नारे लगाते हुए वहां से आगे निकलते गये. बाद में रामनिशान राय के खिलाफ वारंट निकल गया.
रामनिशान गिरफ्तारी से बचने के लिए अपने गांव हेठमंझियानडीह पहुंच गये. पर पुलिस को उनके अपने घर में छिपे होने की खुफिया जानकारी मिल गयी, लिहाजा पुलिस ने उन्हें धर दबोचा. कई तरह की यातनायें उन्होंने सही. केस चला. दुमका जेल में रहे. छह माह के कठोर कारावास की सजा हुई तो बक्सर जेल भेज दिया गया. जेल में वह छह माह रहे. जेल से बाहर निकले तो उनकी पढ़ाई-लिखाई छूट गयी, पर स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रियता बरकरार रही. देश की आजादी के बाद उन्होंने खुद को सामाजिक कार्यों में लगाये रखा. 1972 में उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर ताम्रपत्र प्रदान किया गया. 28 अक्तूबर 2001 को 78 साल की आयु में उनका निधन हो गया.
रिपोर्ट: आनंद जायसवाल, दुमका