Ranchi News: स्थानीय और नियोजन नीति को लेकर सेलिब्रेशन बैंक्वेट, डिबडीह में परिसंवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कहा कि स्थानीय व नियोजन नीति एक दूसरे के पूरक हैं. झारखंड अलग राज्य बनने पर उन्होंने संयुक्त बिहार के समय 1982 में जारी सर्कुलर को अपनाया था. स्थानीय नीति को बिहार पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार लागू किया था. लेकिन, यह लोगों को समझ नहीं आया और उन्होंने इसका विरोध किया.
यह नीति सर्वदलीय बैठक कर लायी गयी थी. उनकी पार्टी ने भी उनसे कभी नहीं कहा कि उन्होंने गलत किया. श्री मरांडी ने कहा कि आज हमारे समक्ष जो समस्या है, वह नियुक्तियों को लेकर है. इसे लेकर लोगों में आक्रोश है, दर्द है. यदि सरकार में इच्छाशक्ति है, तो निश्चित रूप से अपने राज्य के लोगों के लिए रोजगार सुरक्षित कर सकती है. पड़ोस के हिंदी भाषी राज्य छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश में ऐसा किया गया है. ऐसा यहां भी हो सकता है. इसके लिए सामाजिक दबाव बनाने की जरूरत है.
कार्यक्रम को सीपीआइ नेता भुवनेश्वर प्रसाद मेहता, सीपीएम के शुभेंदू सेन, अखिल भारतीय किसान संघ के केडी सिंह, प्रेमचंद मुर्मू, धर्म दयाल साहू, प्रफुल्ल लिंडा, एलएम उरांव, बहुरा उरांव, विभव नाथ शाहदेव, फादर महेंद्र पीटर तिग्गा, शिवा कच्छप, सुभाष मुंडा, रामपोदो महतो, बलकू उरांव आदि ने भी संबोधित किया. कार्यक्रम में 54 संगठनों के पांच सौ से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए.
पूर्व केंद्रीय मंत्री सह कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय ने कहा कि ‘यह सरकार हमारी है, पर दस्तूर पुरानी जारी है..’ इसलिए हमारा संघर्ष भी जारी है. स्थानीय व नियोजन नीति की लड़ाई आदिवासी भाइयों से ज्यादा मूलवासियों की है. इसे मूलवासियों को समझना होगा. यह हमारे अस्तित्व व झारखंड की सभ्यता-संस्कृति की लड़ाई है.
प्रेम शाही मुंडा ने कहा कि स्थानीय नीति झारखंडी भावना के अनुरूप ही बननी चाहिए. आजम अहमद ने कहा कि सरकार बिना किसी दबाव में आये विधानसभा से स्थानीयता नीति पारित करे. राजू महतो ने कहा कि सरकार जनसंगठनों की मांग को नजरअंदाज न करे. अंतु तिर्की ने कहा कि आदिवासी-मूलवासी समाज सरकार की चाल-ढाल को जान चुका है. स्थानीयता नीति नहीं बनने से खमियाजा भुगतना पड़ेगा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ करमा उरांव ने कहा कि स्थानीय नीति के बिना झारखंड राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती है. महागठबंधन सरकार को स्थानीय व नियोजन नीति पर तुरंत निर्णय लेना होगा, अन्यथा उसे जनांदोलन का सामना करना होगा. दयामनी बारला ने कहा कि वह खतियान बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं. बिना खतियान के स्थानीय नीति संभव नहीं है. एस अली ने झारखंड के लोगों के िलए स्थानीय और नियोजन नीति की उपयोगिता पर अपने विचार रखे.
Posted by: Pritish Sahay