यह सच है कि कृषि विभाग में खर्च कम हुए हैं पर यूं ही पैसा लुटा देना वाहवाही नहीं : बादल पत्रलेख

कृषि मंत्री बादल ने प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में विभाग व संगठन की विस्तार से जानकारी दी. व्यक्तिगत जीवन पर भी खुल कर अपनी बातें कही.

By Prabhat Khabar News Desk | December 25, 2022 9:18 AM
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कृषि मंत्री बादल ने प्रभात खबर संवाद कार्यक्रम में विभाग व संगठन की विस्तार से जानकारी दी. व्यक्तिगत जीवन पर भी खुल कर अपनी बातें कही. बातचीत के क्रम में उन्होंने स्वीकार किया कि बजट राशि के खर्चे में कमी आयी है. लेकिन यूं ही पैसा लुटा देना, वाहवाही नहीं है. यदि आपने रिस्पांसिबिलिटी ली है, तो खर्च की एकाउंटिबिलिटी भी होनी चाहिए. अभी समय है. जब बजट सत्र आयेगा तो देखेंगे कि कृषि विभाग ने जो सोचा था, उसको धरातल पर उतारने व जिम्मेवारी के साथ खर्च करने में सफल रहा है. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के प्रमुख अंश.

सरकार का बहुत ही महत्वपूर्ण विभाग आपके पास है. आप अपने काम से कितना संतुष्ट हैं?

मैंने अपने विभाग में समन्वय बनाने का काम किया. पड़ोस के राज्यों के कृषि मॉडल को जाकर देखा, समझा. दो साल कोरोना में निकल गये. इस अवधि में विभागीय कामों को समझने का अवसर मिला. सबसे बड़ी जिम्मेवारी मैडम सोनिया जी ने दी थी. इस दौरान अहमद पटेल जी ने रात को डेढ़ बजे फोन किया. उन्होंने कहा कि बेटे मैं 10 जनपथ में हूं. मैडम भी हैं. कैसे हैं ? इतनी रात क्या कर हैं. मैंने कहा : स्टडी कर रहे हैं. तब उन्होंने कहा अच्छी बात है. तुम्हारे जैसे झारखंड के लोग स्टडी भी करते हैं. हमने कहा सर. तब उन्होंने कहा कि मैडम यह जानना चाह रही हैं कि कर्ज माफी का क्या हुआ? मैंने कहा : सर कर रहे हैं. आज पटेल साहब नहीं हैं, लेकिन राष्ट्रीय पार्टी में होने का एहसास पहली बार हुआ. एक मार्गदर्शन आपको चाहिए, जो अलार्म की तरह आपको जगाये. आज पटेल साहब हमारे बीच से चले गये, लेकिन उनकी बातें आज भी कानों में गूंजती है. हमने प्रथम चरण में किसानों के 50 हजार तक का ऋण माफ किया. इसके तहत चार लाख किसानों के कर्ज की माफी हुई. अभी फिर समीक्षा कर हमने ऋण माफी को एजेंडे में शामिल कराया है. सबसे बड़ी बात यह रही कि इकोनोमिक सर्वे में झारखंड का ओवरऑल ग्रोथ 4.57 फीसदी है. लेकिन एग्रीकल्चर व एलाइड का ग्रोथ 26.01 प्रतिशत है. अनुदान 90 प्रतिशत तक दिया. यहां गेहूं की खेती 800 हेक्टेयर से बढ़ कर 1200 हेक्टेयर पहुंच गयी. पहले 40 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदारी करते थे. 2018-19 में 56 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदारी की. पिछले वर्ष 80 लाख क्विंटल लक्ष्य रखा. मुख्यमंत्री पशुधन में जो सब्सिडी थी, उसे बढ़ाया. इसक असर यह हुआ कि सरकार आपके द्वार में पशुधन योजना के तहत करीब 30 हजार आवेदन मिले. साहिबगंज व सारठ की डेयरी शुरू करायी. पलामू की डेयरी शुरू होनेवाली है. पहले दूध का उत्पादन एक लाख लीटर प्रतिदिन था, आज वह बढ़ कर एक लाख 80 हजार प्रतिदिन हो गया है. हमने स्मॉर्ट विजेल की कल्पना की. हर विधानसभा क्षेत्र सहित 100 स्मॉर्ट विलेज लिया है, चेंबर ऑफ फॉर्मर का कॉन्सेप्ट शुरू किया है. गो मुक्तिधाम का प्रबंध किया. हॉटिकल्चर में भी सुधार किया. राज्य के 226 प्रखंड सूखाग्रस्त की श्रेणी में आये. भारत सरकार से टीम आ रही है. इसकी लगातार समीक्षा की जा रही है.

कांग्रेस पार्टी का कितना एजेंडा या यूं कहें कि घोषणा इस सरकार में पूरी हो पायी है ?

कर्ज माफी का वायदा हमने किया था. सीमित संसाधनों में इस लागू किया. अमूमन देखने को मिलता है कि सरकार का तुरूप का पत्ता होता है, उसे दो-ढ़ाई साल के बाद लागू करती है, लेकिन हमने किसानों को कभी वोट बैंक नहीं माना. अपना परिवार माना. हम किसान के बेटे हैं, उनके दुख-दर्द को जानते हैं. इसलिए पहले ही बजट में कर्ज माफी को लेकर आये. यह हमारा फ्लैगशिप योजना थी. चाहते तो इसे अंतिम साल भी लेकर आ सकते थे. परंतु हम किसानों की भावनाओं के साथ खड़े थे. हमने जो कहा कि ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देंगे, उस पर खरा उतरे. इसे कैबिनेट में लेकर आये. सरना धर्म कोड लेकर आये. हमने कहा था कि पारा शिक्षकों के साथ न्याय करेंगे, उसे लेकर कर आये. हमने कहा था कि नौकरियों में जेपीएससी के सारी बाधाओं को दूर करेंगे, फ्रेश एक्जाम लेना शुरू करेंगे. हालांकि एक न्यूज आयी है, जिस पर हर कोई सवाल कर रहे हैं. लेकिन उम्मीद है कि मुख्यमंत्री जी के संबोधन के बाद हम आशान्वित हैं. नीतियां प्रभावित नहीं हो. इसके लिए हम वैकल्पिक व्यवस्था के तहत भी काम कर रहे हैं, ताकि युवा हताश न हो, उन्हें फ्लेटफॉर्म मिलता रहे. इसको लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं. इस दौरान उप चुनाव भी हुए, जिस पर हम जीते. इससे लगता है कि हम जनता के बीच जिन भावनाओं को लेकर गये थे, उसका रेपो अभी तक बरकरार है.

आप अमूमन विवादों से दूर रहते हैं, कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार में ज्यादा फोकस करते, संगठन की उपेक्षा करते हैं. झामुमो से ज्यादा नजदीकियां हैं ?

यह अच्छी बात है कि कुछ तो बोलते हैं. मुख्यमंत्री जी के सानिध्य में रह कर मार्गदर्शन प्राप्त करते हैं. देखिए आप गठबंधन में हैं, तो अलग-अलग राग, अलग-अलग डफली नहीं बजा सकते हैं. हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व में राहुल गांधी हैं. हम जिस सरकार में हैं, उसके नेता हेमंत सोरेन जी हैं. इसको पूरी ईमानदारी से जानता हूं. यदि हम गठबंधन की बदौलत मंत्री हैं, तो हमें गठबंधन के कार्यकर्ताओं को समान रूप से सम्मान देना पड़ेगा. इसको लेकर समन्वय बनाये रखना पड़ेगा. ताकि कल को जब फिर गठबंधन एक साथ चुनाव लड़े तो दूरियां इतनी न बढ़े कि नजदीकियां मुश्किल हो जाये. मुझ पर ज्यादा घूमने का तोहमत लगता है. मैं घूमता हूं. लोगों के दर्द को देखता व समझता हूं. इसके बाद आकर विभाग में प्रबंध करता हूं कि कैसे इन सब चीजों से लोगों को फायदा दिलाया जाये. मैं लोगों की शिकायतों को दूर करने का प्रयास करूंगा. संगठन को मैं हमेशा प्राथमिकता देता हूं. पार्टी के जो भी कार्यक्रम होते हैं, उसमें मैं शामिल होता हूं. अभी भारत जोड़ो यात्रा का कार्यक्रम चल रहा है. राहुल जी की यात्रा में शामिल रहा. एक बात जरूर है जब आपकी आलोचना हो रही है, तो इससे साबित होता है कि आप कुछ न कुछ कर रहे हैं.

राजनीति में चर्चा है कि आप लोकसभा चुनाव का भी प्लॉट बना रहे हैं?

नहीं, मैं खुलेआम कहता हूं कि संगठन का काम करता हूं. लोगों को मोटिवेट करता हूं. राहुल गांधी 3500 किलोमीटर की यात्रा कर रहे हैं. लेकिन जिनको राहुल जी के नेतृत्व में दिल्ली तक जाना है. वह अपने यहां 35 कदम चल रहे हैं कि नहीं. इसके लिए मोटिवेट करता हूं. सिर्फ राहुल जी के चलने से नहीं होगा, सबको चलना पड़ेगा. उनके साथ जाकर एक-दो दिन ऊर्जा प्राप्त कर लें, लेकिन आप जहां से प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं, उसके लिए आपके पास संघर्ष के अलावा कोई रास्ता नहीं है. जिस व्यक्ति ने प्रधानमंत्री नाना की गोद में खेला. इसकी दादी व पिता प्रधानमंत्री थे. उसकी गोद में खेला हुआ बच्चा आज सैकड़ों दिनों से सड़क पर है. जिसने अपने पिता व दादी को खोया. इस डर को नजरअंदाज करते हुए पब्लिक के बीच में है, तो इससे लोगों का भावनात्मक जुड़ाव भी हो रहा है. कहने को तो वह कन्याकुमारी से कश्मीर तक जा रहे हैं, लेकिन इसकी सिहरन आप यहां भी महसूस कर सकते हैं. देखिए बड़े तालाब की छोटी मछली रहने से अच्छा है कि आप छोटे तालाब की बड़ी मछली बने.

घर कब बसायेंगे, संगठन, सरकार से लेकर घर तक का दबाव होगा मोस्ट अवेटेड बैचलर हैं आप?

देखिए कभी हमने सोचा नहीं था कि राजनीति में आयेंगे. मेरे पिता जरूर मुखिया थे. वो भी एमएलए व एमपी की राजनीति करते थे. उनको हम देखते थे. कहीं पर उनके दिल को चोट लगी थी, तो वह चाहते थे कि मैं एमएलए बन कर दिखाऊं. मैं दिल्ली में पढ़ता था. वो टिकट लेने आते थे. मैं उन्हें बेचारे की तरह घूमते देखता था. एक बार उनको शाम में टिकट मिला और सुबह टिकट कट गया. तब वह गस खाकर गिर गये. फिर उन्होंने लौट कर निर्दलीय चुनाव लड़ा. हार गये. जब मैं घर आया और मिल कर जाने लगा तो बड़ी भावनात्मक रूप से कह गये कि लगता है मेरा सपना अधूरा रह गया. हो सके तो यह काम कर के दिखा दो. पिताजी व माताजी से सहमति लेकर 12 दिसंबर 2013 को घर छोड़ कर निकल गया. अब काम करते हुए इतना मगन हो गया कि कभी पर्सनल लाइफ के बारे में सोचने का मौका नहीं मिला. अंदर जुनून होता है तो आपको कुछ खोना पड़ता है. यह सिर्फ राजनीति में नहीं होता है, साइंटिस्ट, इंडस्ट्रियलिस्ट इसके अनेकों उदाहरण हैं. रतन टाटा, कलाम साहब को देखें. राजनीति में ममता से लेकर जयललिता तक. नवीन पटनायक से लेकर राहुल गांधी तक, अटल बिहारी बाजपेयी तक. मैं वहां तक नहीं जाता हूं. उन लोगों के बीच भी एक जुनून था, जिसके कारण उनको पर्सनल चीजों के लिए समय नहीं मिला होगा. जब मैं घर छोड़ा तो हर गांव में रात बिताया. न मेरा अपना कोई बिस्तर था और न ही खाना. कभी होटल में नहीं खाया. कभी -कभी भूखे पेट सोना पड़ा, लेकिन किसी से मांगा नहीं. कुछ लोग कहते थे कि सिर्फ यह ढोंग कर रहा है. जब विधायक बन गये तो पिताजी व मां ने संदेश भेजा. मैंने कहा कि एक घर को छोड़ कर मैंने लाखों घर में अपनापन पाया. एक मां-पिताजी की जगह लाखों माता-पिता का प्रेम पाया. इसके बाद मेरा जीवन बदल गया. इसका मैंने एहसास भी किया. मेरे साथ रहने वाले लोगों को आज भी पता नहीं रहता है कि मैं रात में कहां ठहरूंगा. घर बसाने के बारे में मैंने सोचा ही नहीं. जिंदगी ऐसी ही निकल गयी. आगे इस पर सोचेंगे भी नहीं.

पिछली रघुवर सरकार में भाजपा में शामिल नहीं होने का पुरस्कार है वर्तमान मंत्री पद?

उस समय मेरा स्टेटमेंट अखबार में अच्छे से चला था कि चरित्रवान लोग जले हुए घर को छोड़ कर नहीं जाते. बहुत सारी बातें होंगी, जिस पर पार्टी नेतृत्व ने मुझ जैसे साधारण व्यक्ति को मौका दिया. मेरा हमेशा प्रयास रहता है कि परफॉर्म करूं.

क्या लगता है कि इस वर्ष झारखंड को सूखाग्रस्त घोषित करने में देर हो गयी?

सूखाग्रस्त को लेकर हमेशा हम सजग रहे. डेट व टाइम हमारे जेहन में था. शुरू से ही हम वैज्ञानिक पद्धति से आगे बढ़ रहे थे. फसल राहत योजना शुरू की. हम किसानों को सूखा राहत के 2018-19 का पैसा भी दिलाने का प्रयास कर रहे हैं. किसानों के लिए जहां भी हो जितना हो करते हैं. इस बार भी केंद्र से सहयोग मांग रहे हैं. टीम आ रही है. सरकार ने राज्य की निधि से 90 प्रतिशत अनुदान से किसानों को गेहूं दिया. 100 प्रतिशत अनुदान पर चना व सरसों दिया. इससे पहले की अपेक्षा रबी में खेती का रकबा बढ़ा है. लहलहाते हुए खेत आपको देखने को मिलेंगे.

सिंचाई की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण राज्य के किसानों को सूखा झेलना पड़ता है. क्या लगता है कि कृषि के साथ ही सिंचाई विभाग होना चाहिए.

इस बार देखेंगे तालाबों के गहरीकरण के लिए हमने 400 हजार करोड़ का बजट लाया है. दो हजार तालाबों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है. इसके साथ मनरेगा में योजनाएं ली जा रही है, जो सिंचाई से संबंधित हैं. जल संसाधन विभाग के साथ समन्वय स्थापित किया जा रहा है. कैसे किसानों को ज्यादा से ज्यादा सिंचाई युक्त जमीन उपलब्ध करा सकें.

राज्य गठन के बाद कृषि नीति नहीं बन पायी. क्या यह काम आपकी सरकार करेगी?

बिलकुल कृषि नीति बनायी जायेगी. इसको लेकर काम किया जा रहा है. पहली बार कृषि कैलेंडर बनाया. कृषि निर्यात नीति पर भी काम चल रहा है. इसको लेकर कमेटी अध्ययन कर रही है.

राज्य के एक मात्र कृषि विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी नहीं दूर हो पायी. क्या विभाग एक बार फिर बीएयू को नियुक्ति अधिकार दे सकता है?

सभी बिंदुओं पर उनसे बात हुई थी. बीएयू ऑटोनोमस बॉडी है. सरकार उन्हें ग्रांट देती है, उस पर वह परफॉर्म करते हैं. निश्चित रूप से बीएयू को और मजबूत करने की जरूरत है. बीएयू की बकाया राशि का भुगतान किया है. सातवां वेतनमान दिया है, जिससे मनोबल बढ़ा है. रिक्त पदों पर जल्द बहाली करने जा रहे हैं.

कृषि विभाग की कई केंद्र प्रायोजित योजनाओं में भारत सरकार ने सहयोग देना बंद या कम कर दिया है. ऐसा क्यों?

भारत सरकार से समन्वय में कमी आयी थी. इसके बाद विभागीय सचिव ने दिल्ली जाकर समन्वय स्थापित किया. केंद्र सरकार बहुत सारी योजनाएं शुरू तो कराती है, लेकिन बीच में छोड़ कर चली जाती है. इससे राज्य पर वित्तीय बोझ बढ़ता है.

राज्य में बीज निगम गठित हुए कई वर्ष हो गये. आज भी विभाग पर बीज खरीद में गड़बड़ी का आरोप लगता है. क्या जानबूझ कर बीज निगम को सक्रिय नहीं किया जा रहा है?

पहले बीज ग्राम से बीज खरीदे जाते थे. गड़बड़ियां पायी गयी. अभी जितने बीज खरीदे गये. सभी सरकारी एजेंसियों से लिये गये बीज हैं. भारत सरकार से अधिकृत संस्थाओं से बीज खरीदे गये. यह सर्वोत्तम क्वालिटी के हैं. अभी बीज की कमी या गड़बड़ी की खबरें नहीं आती है. पहले जिसको लेकर विभाग बदनाम होता था, उसी कड़ी को हमने काटने का काम किया.

रघुवर सरकार में बाजार शुल्क हटा दिया गया था. क्या सरकार एक बार फिर बाजार शुल्क लेने की तैयारी में है?

शीतकालीन सत्र में विधेयक लाया गया है. पहले बाजार समितियों के अध्यक्ष होते थे. अब इसमें राज्य सरकार के नामित व्यक्ति या जनप्रतिनिधियों को रखने का प्रावधान किया गया है. इससे इंस्पेक्टर राज की स्थिति पर लगाम लगेगी. बोर्ड में किसान के प्रतिनिधि होंगे.

आपके विभाग का खर्च कम है. कैसे सुधरेगा?

कुछ लोग ऑटो पॉयलट मोड में चलते हैं. जो योजनाएं चल रही हैं, उसी को लेकर मैं हमेशा एक्सपेरिमेंट करता हूं. नयी चीजों पर विचार करता हूं, उसके क्रियान्वयन में समय लगता है. मैं स्वीकार करता हूं खर्चे में कमी आयी है. लेकिन यूं ही पैसा लुटा देना, वाहवाही नहीं है. यदि आपने रिस्पांसिबिलिटी ली है, तो खर्च की एकाउंटबिलिटी भी होनी चाहिए. अभी समय है.

राजनीति में कम उम्र में मुकाम हासिल किया, किसका सहयोग रहा है?

शायद बाबा बासुकिनाथ, बाबा बैजनाथ. जरमुंडी के लोगों, राहुल जी, सोनिया जी और सभी अभिभावकों का सहयोग रहा. अभी भी मैं अकेले दिल्ली नहीं जाता. जब पार्टी का काम होता है तो प्रदेश अध्यक्ष, विधायक दल के नेता के साथ दिल्ली जाता हूं. महत्वाकांक्षा नहीं होनी चाहिए. टीम वर्क में हमेशा श्रेय टीम लीडर, संगठन व मुखिया को देना चाहिए.

संगठन के विवाद पर क्या कहेंगे, अभी प्रदेश अध्यक्ष कितने सक्षम है?

देखिए मैं एक कार्यकर्ता की भांति कल भी था, आज भी हूं. लोगों की अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाएं होती हैं. केंद्रीय नेतृत्व का कोई भी कार्यक्रम हो, उसको सभी लोग एक टीम के साथ परफॉर्म करते हैं. जब कोई भी बड़ा कार्यक्रम होता है, तो छोटी-छोटी बातें सामने आती है. इसे नजरअंदाज करते हुए आगे देखना चाहिए. संगठन मजबूत हो रहा है. हम आगे बढ़ रहे हैं.

सत्ता शीर्ष पर बैठे लोगों पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं. कैसे देखते हैं?

यह सच है या राजनीति से प्रेरित है, इसको देखने की जरूरत है. जहां-जहां केंद्र व राज्य में सत्ता अलग-अलग पार्टी की है. वहां-वहां किस तरह की गतिविधि हो रही है. इसे देखा जा सकता है. जनता सब समझ रही है. हर आदमी चाहता है कि ईमानदारी से काम करें. अगर कोई आरोप लगाता है, तो सच्चाई के साथ सामने से रखे. सच जनता के सामने आयेगा.

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