रांची : बालास्वामी अकला सीसीएल के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के पद से 2003 में रिटायर हुए हैं. लेकिन कोयला उद्योग की गतिविधियों में आज भी सक्रिय हैं. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फोरम पर कोयला उद्योग में हो रहे बदलावों पर अपनी बात रखते हैं. उनके कार्यकाल में सीसीएल से बीआइएफआर (घाटे) से उबरा था. अब सीसीएल लाभ कमानेवाली कंपनी है. उनका कहना है कि कोयला उद्योग में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. कोयला बहुल राज्यों को इस पर ध्यान रखना होगा. बदलावों को देखते हुए तैयारी भी करनी होगी. वह रांची आये हुए थे. ‘प्रभात खबर’ के मुख्य संवाददाता मनोज सिंह ने उनसे बातचीत की.
सवाल : आज कोयला उद्योग किस दौर में है?
जवाब : कोयला उद्योग में बहुत तेजी से बदलाव हो रहे हैं. पहले निजी कंपनियां खनन करती थीं. एक अक्तूबर 1956 को भारत सरकार ने एनसीडीसी का गठन किया. इसमें कुछ सरकारी कंपनियों को कोयला खनन की जिम्मेदारी दी गयी. इस समय 11 खदान रेलवे को मिले थे. 1971 में कोकिंग कोल का राष्ट्रीयकरण किया गया. उस वक्त बीसीसीएल बना. 1973 में कोयला उद्योग को राष्ट्रीयकरण किया गया. इस समय टाटा को छोड़ सभी कोयला खदान भारत सरकार की हो गयीं. इससे पहले करीब 200 साल तक निजी खनन था. 1993 में कैप्टिव खनन के नाम पर निजी कंपनियों को खनन का अधिकार मिला. लेकिन, यह रद्द हो गया. 2015 के बाद फिर कोयला खदान निजी कंपनियों को नीलामी के माध्यम से दिया जाने लगा है. मात्र 40 साल में फिर निजी कंपनियां खनन के लिए आ गयी हैं.
सवाल : यह कोयला खनन राज्यों के लिए कितना चुनौती भरा है?
जवाब : देश के चार-पांच राज्यों में कोयला खनन अधिक होता है. भारत पर भी पर्यावरण को लेकर भारी दबाव है. भारत सरकार भी 2070 तक नेट जीरो की बात कह रहा है. मतलब, इस समय पर प्रदूषण रहित वातावरण हो जायेगा. जितना प्रदूषण होगा, उतना ही बचाने का उपयोग होगा. ऐसे में कोयले की खपत कम होगी. मांग कम होगी. वैसे राज्यों को इसके लिए अभी से योजना बनाने की जरूरत है, जहां कोयला अधिक है. उनको कोयले के विकल्प पर विचार करना होगा. रोजगार और आय के नये साधन विकसित करने होंगे.
सवाल : इसका कोल इंडिया पर क्या असर होगा?
जवाब : पूरे देश में करीब 1000 मिलियन टन कोयले का उत्पादन हो रहा है. कोल इंडिया करीब 800 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर रहा है. इसकी विकास दर अब तीन से चार फीसदी के आसपास रहेगी. फिर धीरे-धीरे विकास दर कम हो जायेगी. कुछ वर्षों तक शून्य या उससे कम विकास दर होगी.
सवाल : अभी कोयला कंपनियों के समक्ष क्या समस्या है?
जवाब : कोयला कंपनियों को जमीन नहीं मिल रही है. इसका मॉडल बदल सकते हैं. जिनकी जमीन है, उनसे लीज पर जमीन ली जा सकती है. इससे जमीन देनेवालों को मालिकाना खत्म नहीं होगा. खनन के बाद उनको जमीन भी मिल जायेगी. खनन उपयोग के बाद 80 फीसदी जमीन को पुराने रूप में लाया जा सकता है. दूसरे राज्यों में इस तरह कई सफल मॉडल हैं.
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