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मंत्री बन्ना गुप्ता ने खुद ही पदस्थापित कर लिया स्वास्थ्य सचिव, जानें पूरा मामला

स्वास्थ्य सचिव का पद खाली पड़ा है. अपर मुख्य सचिव अरुण सिंह के 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार ने स्वास्थ्य सचिव के पद पर किसी को पदस्थापित नहीं किया है.

रांची : राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने अपने विभागीय सचिव को पदस्थापित कर गलतियों का नया इतिहास रच दिया है. राज्य गठन के बाद किसी मंत्री द्वारा सचिव को पदस्थापित करने या अतिरिक्त प्रभार देने की यह पहली घटना है. किसी विभाग के सचिव को पदस्थापित करने या अतिरिक्त प्रभार देने का अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री के पास है. मुख्य सचिव किसी अधिकारी को अधिकतम 30 दिनों तक के लिए किसी अधिकारी को अतिरिक्त प्रभार दे सकते हैं. इस बीच बुधवार को स्वास्थ्य विभाग के उपसचिव रंजीत लोहरा ने आदेश जारी कर श्री त्रिवेदी को स्वास्थ्य सचिव के कार्य के लिए प्राधिकृत किया है.

राज्य में स्वास्थ्य सचिव का पद खाली पड़ा है. अपर मुख्य सचिव अरुण सिंह के 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने के बाद सरकार ने स्वास्थ्य सचिव के पद पर किसी को पदस्थापित नहीं किया है. इसके मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने रिक्त पड़े स्वास्थ्य सचिव के पद का अतिरिक्त प्रभार देने का फैसला किया. इसके बाद मंत्री ने अपने ही हस्ताक्षर से आदेश निकाल दिया. 16 जनवरी 2024 को निकाले गये इस आदेश में कहा गया है कि ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ के अभियान निदेशक आलोक त्रिवेदी को अपने कार्यों के अतिरिक्त स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिव के पद का प्रभार दिया जाता है. वह स्वास्थ्य सचिव के पदस्थापन तक इस पद के प्रभार में रहेंगे.

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मुख्य सचिव किसी को सिर्फ 30 दिनों के लिए दे सकते हैं प्रभार

राज्य में लागू कार्यपालिका नियमावली के तहत किसी अधिकारी को विभागीय सचिव के रूप में पदस्थापित करने या अतिरिक्त प्रभार देने का अधिकार केवल मुख्यमंत्री के पास है. विशेष परिस्थितियों में किसी अधिकारी को सिर्फ 30 दिनों तक के लिए अतिरिक्त प्रभार देने का अधिकार मुख्य सचिव के पास है. कार्यपालिका नियमावली में निहित प्रावधानों के तहत मुख्यमंत्री ने अधिकतम 30 दिनों के लिए अतिरिक्त प्रभार देने की शक्ति मुख्य सचिव को दी है.

सरकार के अधिकारियों को है कार्यपालक आदेश निकालने का अधिकार

मंत्री के इस अनोखे कारनामे का दूसरा पहलू अपने ही हस्ताक्षर से आदेश निकलना है. मंत्री फाइलों में आदेश दे सकते हैं. लेकिन अपने हस्ताक्षर से कार्यपालक आदेश नहीं निकाल सकते. नियमानुसार, कार्यपालक आदेश निकालने का अधिकार सरकार के अधिकारियों को है. सरकार के अवर सचिव, उप सचिव, संयुक्त सचिव और सचिव के हस्ताक्षर से ही कार्यपालक आदेश जारी किया जा सकता है. लेकिन, स्वास्थ्य विभाग के सचिव के मामले में विभागीय मंत्री बन्ना गुप्ता ने ही इससे संबंधित आदेश निकाला है.

कार खरीद मामले को लेकर भी चर्चा में आये थे बन्ना गुप्ता

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता हमेशा अपने अनोखे काम की वजह से चर्चा में रहते हैं. इससे पहले वह कार खरीद मामले में चर्चा में आये थे. स्वास्थ्य विभाग के तत्कालीन सचिव नितिन मदन कुलकर्णी द्वारा मंत्री के लिए नयी कार खरीदने के प्रस्ताव पर असहमति जतायी थी. इसके बाद मंत्री के लिए कार खरीदने के प्रस्ताव रिम्स के शासी परिषद की बैठक में शामिल कर लिया गया था. हालांकि, इस मुद्दे पर हंगामा होने के बाद रिम्स शासी परिषद में कार खरीदने के प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया था.

स्वास्थ्य मंत्री के आदेश पर सरयू ने उठाये सवाल, कहा : यह अधिकार सिर्फ मुख्यमंत्री को

रांची: विधायक सरयू राय ने स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के आदेश पर सवाल उठाया है. श्री राय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर बन्ना गुप्ता द्वारा जारी पत्र को टैग करते हुए कहा है : स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने जिस आदेश का हवाला देते हुए पत्र जारी किया है, उसे तुरंत रद्द किया जाये. क्योंकि, प्रधान सचिव के पद पर नियुक्ति करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री को है. साथ ही तदर्थ नियुक्ति के तहत 30 दिन के लिए मुख्य सचिव को यह अधिकार मिला हुआ है. इसीलिए स्वास्थ्य मंत्री का यह आदेश गलत है.

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