बरहरवा टोल विवाद मामले में झारखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट का झटका, हाइकोर्ट जाने का दिया निर्देश
ईडी द्वारा बरहरवा टोल विवाद मामले में जांच अधिकारी सरफुद्दीन खान व डीएसपी प्रमोद मिश्रा को समन जारी किये जाने के बाद सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. कहा गया कि ईडी राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के काम में हस्तक्षेप कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (इडी) के अधिकार को चुनौती देनेवाली राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है. न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ में सरकार की ओर से दायर याचिका की सुनवाई हुई. खंडपीठ ने इडी के अधिकार को चुनौती देने के बिंदु पर राज्य सरकार को हाइकोर्ट में जाने का निर्देश दिया.
क्या है मामला :
इडी द्वारा बरहरवा टोल विवाद मामले में जांच अधिकारी सरफुद्दीन खान व डीएसपी प्रमोद मिश्रा को समन जारी किये जाने के बाद सरकार ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी. राज्य सरकार की ओर से सरफुद्दीन और प्रमोद मिश्रा ने क्रिमिनल रिट याचिका दायर की थी. इसमें कहा गया था कि इडी राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के काम में हस्तक्षेप कर रही है.
राज्य सरकार की जांच एजेंसियां, केंद्रीय जांच एजेंसियों के आदेशानुसार या इच्छानुसार किसी को दोषी या निर्दोष नहीं करार दे सकती है. पुलिस द्वारा बरहरवा टोल विवाद मामले में कुछ अभियुक्तों को निर्दोष करार दिये जाने पर प्रवर्तन निदेशालय सवाल उठा रही है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करे और इडी को राज्य सरकार की जांच एजेंसियों के काम में दखल देने से रोके.
राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद राज्य के गृह सचिव सह सीएम के प्रधान सचिव की ओर से डीजीपी को पत्र लिखा गया था. इसमें कहा गया था कि वह राज्य सरकार द्वारा अपील करने की जानकारी इडी के सक्षम अधिकारी को दें. साथ ही यह भी अनुरोध करें कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक इडी राज्य की जांच एजेंसी से जुड़े अधिकारियों को समन नहीं करे.
गृह सचिव के इस निर्देश की जानकारी मिलने के बाद इडी ने पुलिस अधिकारियों को समन जारी करना बंद कर रखा है. हालांकि गृह सचिव के निर्देश के पहले इडी बरहरवा टोल विवाद के आइओ सरफुद्दीन से पूछताछ कर चुकी थी. इसमें वह स्वीकार कर चुके हैं कि टोल विवाद में जांच तर्कसंगत नहीं हुई, डीएसपी ने 24 घंटे में पंकज मिश्रा और मंत्री आलमगीर आलम को निर्दोष करार दिया था. इस निर्देश के आलोक में इन दोनों लोगों के खिलाफ जांच नहीं की गयी.