Basant Panchami: मैं ऋतुओं में न्यारा वसंत, मैं अग-जग का प्यारा वसंत. मेरी पगध्वनि सुन जग जागा, कण-कण ने छवि मधुरस मांगा… कवयित्री महादेवी वर्मा ने अपनी कविता ‘स्वप्न से किसने जगाया’ में वसंत ऋतु का जिक्र किया है. इस ऋतु में मौसम और प्रकृति में आने वाले खूबसूरत बदलाव से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. वसंत पतझड़ के मौसम के बाद ठूंठ हो चुके पेड़-पौधों में फूल पत्तियाें के खिलने का समय है, जनमें भंवरे और मधुमक्खियां अपने जीवन की धारा तलाशने पहुंचते हैं. यही कारण है कि वसंत को शृंगार की ऋतु व ऋतुओं का राजा कहा गया है.
वसंत का वर्णन काव्य ग्रंथों, शास्त्रों व पुराणों में सुंदर सजीव वर्णन के रूप में मिलता है. यही कारण है कि साहित्य प्रेमी और कवि इस ऋतु के बदलाव को अपनी कलम से सजाते रहे हैं. इस मौसम को पीले रंग से भी जोड़ा गया है, जो समृद्धि का प्रतीक है. यही कारण है कि वसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा के दिन महिला व पुरुष पीले रंग के परिधान पहन कर वसंत का स्वागत करते हैं.
वसंत को पुष्प समय, पुष्प मास, ऋतुराज, पिक नंद व काम जैसे नाम कवियों ने दिये हैं. इसका अभिप्राय भागवत गीता से मिलता है, जहां भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि ऋतुओं में मैं वसंत हूं. इसमें प्रकृति बोध के साथ मनुष्यत्व की नयी शुरुआत की छवि मिलती है. यही कारण है कि भारतीय साहित्य की सभी भाषाओं में वसंत का अस्तित्व है. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, विद्यापति, अज्ञेय व नागार्जुन जैसे कवियों ने अपनी रचनाओं में वसंत को उकेरा है.
प्रेम और उन्माद के इस समय को कवियों ने मौसम-ए-गुल के रूप में भी चित्रित किया है. यह मौसम न ही सर्दी का और न ही गर्मी का होता है. दोनों मौसम के मेल के कारण ही इसे मौसम-ए-गुल कहा गया है. सम-मौसम में प्रकृति के साथ जीव-जंतु और मनुष्य से मनुष्य का जुड़ाव भी बढ़ता है. इस मौसम में फसलें पक कर तैयार हो जाती हैं, आम की डालियां मंजरी से भर जाती हैं और पौधे भी फूलों से लद जाते हैं. माॅडर्न कल्चर में प्रेम के बढ़ते व्यवहार के कारण ही युवा पीढ़ी इस समय को वेलेंटाइन वीक मनाती नजर आती है.
वसंत ऋतु कवियों से लेकर आम लोगों को मोहित करती है. वृक्षों के कटाव और शहरी जीवन जीने की होड़ ने पर्यावरण को प्रभावित किया है, लेकिन आज भी कवि वसंत से नहीं बच सके हैं. आज के जन कवि तक पहुंचते-पहुंचते न इसका रूप बदला है, न ही चंचलता. कालिदास का अपना युग था. फिर भी ऋतुराज ने अपने प्रभाव में भेदभाव नहीं किया. आज भी अधिकतर कवि वसंत से अछूते नहीं रहे हैं.
धर्म में आस्था और मन में विश्वास रखने वाले लोग वसंत पंचमी से अपने जीवन की नयी शुरुआत करते हैं. ऋतुओं का राजा वसंत नयी उम्मीद लेकर आता है. इस दिन ज्यादातर लोग शिक्षा संस्कार भी कराते हैं. छोटे बच्चे कलम कॉपी की पूजा करते हैं. मां सरस्वती का आशीर्वाद लेकर अपनी शिक्षा प्रारंभ करने का संकल्प भी लेते हैं. गायत्री मंदिर सहित अन्य मंदिरों में सरस्वती पूजा पर शिक्षा संस्कार पर विशेष पूजा की जाती है.
वसंत पंचमी के आगमन से प्रकृति में बदलाव आने महसूस होने लगते हैं. पेड़ों पर नयी कोपलें, रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू व पक्षियों की सुरीली आवाज गूंजने लगती है. खेतों में दूर-दूर तक सरसों के पीले फूल दिखते हैं और होली की उमंग भरी मस्ती दिखने लगती है. साथ ही इस ऋतु में प्रकृति खुद को संवारती है. मनुष्य के अलावा पशु-पक्षी उल्लास से भर जाते हैं. आम के पेड़ों पर मंजर भर आते हैं. मनुष्य के साथ पशु-पक्षियों में नयी ऊर्जा भर जाती है.
वसंत पंचमी से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है. इसमें मौसम सुहावना हो जाता है. इस समय चारों ओर सरसों के पीले फूल दिखायी देते हैं. इसके अलावा सूर्य के उत्तरायण रहने से सूर्य की किरणों से पृथ्वी पीली हो जाती हैं. सब कुछ पीला-पीला होता है. मां सरस्वती को पीले रंग के फूल पसंद हैं. इस कारण से भी पीले रंग का महत्व काफी बढ़ जाता है. इसके अलावा पीले रंग को वैज्ञानिक तौर पर भी बहुत खास माना गया है. पीला रंग तनाव को दूर करता है और दिमाग को शांत रखता है. पीला रंग आत्मविश्वास भी बढ़ाता है.
आयुर्वेद में वसंत ऋतु का काफी महत्व है. इस ऋतु को ऊर्जस्कर माना गया है. इस समय शौंठ, नागरमोथा, त्रिफला चूर्ण, नीम के पत्ते को काली मिर्च के साथ पीस कर 21 दिन तक प्रयोग करने से अगले एक वर्ष तक खून साफ रहता है. इससे शरीर को चर्म रोग से निजात पाने में मदद मिलती है. वसंत ऋतु में कफ बनने की प्रवृत्ति बनी रहती है. ऐसे में त्रिकूट चूर्ण व सितोपलादि के इस्तेमाल से स्वास्थ्य लाभ जैसे खांसी, सर्दी, जुकाम के इलाज, पेट की समस्या व वजन घटाने में मदद मिलती है.
– डॉ वेंकटेश कात्यायन, आयुर्वेदाचार्य
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वसंत उत्सव प्रकृति का पर्व है. इस मौसम में प्रकृति नया परिधान धारण करती है. वैदिक काल में वसंत पूजन का बड़ा आयोजन होता था. उस काल में ऋषियों ने प्रकृति के पूजन का लक्ष्य बनाया था. हम प्रकृति की संतान हैं. कोई भी कवि ऐसा नहीं है, जिन्होंने बसंत पर लेखन नहीं किया हो. सभी मां सरस्वती की अराधना करते हैं. हम सब उनके आराधक है. वे ही हमें विद्या, बुद्धि व बल देती हैं. उनके माध्यम से ही देश के युवा विद्या लेकर पूरे संसार में अपनी प्रतिभा दिखा रहे हैं. मां सरस्वती हमारे अंदर के विकार व अंधकार को मिटाती है. मां सरस्वती की उपासना सभी को करनी है.
– डॉ रीता शुक्ला, साहित्यकार
सभी वसंत की उपासना करते हैं. कलाकारों और रचनाधर्मियों की सबसे प्रिय ऋतु वसंत है. यह जीवन में स्फूर्ति-चेतना का काल है. इसलिए हमारे देश में सभ्यता के आरंभ से ही वसंत के गीत गाये जाते रहे हैं. ऋतुओं का राजा वसंत मनुष्य की जिजीविषा का प्रतीक है. वसंत वन के उल्लास की ऋतु है, जो हम सब में नयी चेतना का संचार करती है.
– डॉ माया प्रसाद, साहित्यकार