रांची : कोरोना संकट के बीच झारखंड की राजधानी रांची के लिए बुरी खबर है. हवा में घुला जहर कभी भी कहर ढा सकता है. लोगों को गंभीर रूप से बीमार बना सकता है. जी हां, राजधानी रांची में प्रदूषण काफी बढ़ गया है. ऐसे तत्वों की मात्रा सामान्य से ज्यादा हो गयी है, जो लोगों को बीमार बना देगी. खासकर उन लोगों को जिन्हें सांस लेने में दिक्कत है. यानी दमा के रोगियों के लिए रांची की हवा बेहद घातक हो गयी है. इसलिए उम्रदराज लोग और सांस की बीमारी से जूझ रहे लोग बेवजह घर से बाहर न निकलें.
एक्यूवेदर की सोमवार (19 अक्टूबर, 2020) की रिपोर्ट के मुताबिक, संवेदनशील लोगों की सेहत के लिए मौसम बिल्कुल अनुकूल नहीं है. यहां तक कि स्वस्थ लोग भी बेवजह घर से न निकलें. प्रदूषण जिस स्तर पर पहुंच गया है, वह किसी के लिए ठीक नहीं है. सेहतमंद लोगों को भी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं. लोगों को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. गले में खरास आ सकती है, जो लंबे समय तक बना रह सकता है.
एक्यूवेदर की ऑनलाइन रिपोर्ट बता रही है कि रांची में पार्टिकुलेट मैटर यानी पीएम10 की मात्रा सामान्य से ज्यादा है. रांची में इसकी मात्रा 108 की बजाय 117 तक पहुंच गया है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. पार्टिकुलेट मैटर हवा में मौजूद वो प्रदूषक तत्व हैं, जिसका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से ज्यादा हो और वह सांसों के साथ इंसान के शरीर में चला जाये, तो यह उसे बीमार कर देता है. सेहत को काफी नुकसान पहुंचाता है.
इसकी वजह से आंखों में जलन, गले में खरास, खांसी और सांस लेने में परेशानी हो जाती है. दमा यानी अस्थमा के मरीजों की समस्या को यह काफी बढ़ा देता है. जितनी जल्दी-जल्दी ये आपके अंदर जायेंगे, आपकी समस्या उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी. यानी आप जितनी बार बाहर निकलेंगे, उतनी बार इस घातक तत्व को अपने अंदर लेंगे और बीमारी को न्योता देंगे. इसलिए सलाह दी जा रही है कि जरूरी न हो, तो घर से बिल्कुल ही बाहर न निकलें.
इसी तरह पीएम 2.5 यानी फाइन पार्टिकुलेट मैटर का आकार 2.5 माइक्रोमीटर से भी कम होता है. हवा के साथ यह आपके फेफड़े और रक्त की धमनियों तक पहुंच सकता है, जो बेहद घातक है. इसका सबसे गंभीर असर फेफड़े और दिल पर ही होता है. इसकी वजह से भी आपको बार-बार खांसी होगी, सांस लेने में तकलीफ होगी, अस्थमा की समस्या को बढ़ा देगा और सांस से जुड़ी गंभीर बीमारियां आपको हो सकती हैं.
रांची की हवा में इस वक्त फाइन पार्टिकुलेट मैटर की मात्रा सामान्य से 200 फीसदी अधिक है. रांची में इसकी मात्रा 59 होनी चाहिए, लेकिन सोमवार को यह 119 दर्ज की गयी. सल्फर डाइ-ऑक्साइड, ग्राउंड लेवल ओजोन, नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड की मात्रा के बारे में भी जानना जरूरी है. बताया गया है कि सल्फर डाइ-ऑक्साइड की अधिकता की वजह से गले और आंख में जलन महसूस होने लगती है. इसकी अधिक मात्रा ब्रोंकाइटिस और दमा के रोगियों की परेशान कर देती है.
हालांकि, सल्फर डाइ-ऑक्साइड का स्तर रांची में इस वक्त बेहतर है. इससे लोगों को कोई खतरा नहीं है. इसकी अधिकतम सीमा 29 है, जिसके मुकाबले रांची में अभी इसकी मात्रा 23 ही है. इसी तरह ग्राउंड-लेवल ओजोन की बात करें, तो रांची में इसकी अधिकतम सीमा 40 होनी चाहिए, जो इस वक्त 16 ही है. यानी ग्राउंड-लेवल ओजोन से राजधानी के लोगों की सेहत पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ने वाला. फिर भी आपको मालूम होना चाहिए कि इसकी अधिक मात्रा होने पर लोगों को सिरदर्द, छाती में दर्द, सांस लेने में दिक्कत और गले में खरास की समस्या उत्पन्न हो जाती है.
अच्छी बात यह है कि ग्राउंड-लेवल ओजोन की तरह नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड की मात्रा भी सामान्य से काफी कम है. नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड का रांची में सामान्य स्तर 20 बताया गया है, जिसकी तुलना में सोमवार को यह मात्र 10 था. कार्बन मोनोक्साइड की मात्रा भी सामान्य से बहुत कम है. रांची में इसकी अधिकतम मात्रा 309 को सामान्य माना जाता है, लेकिन यह इस वक्त मात्र 2 है. यानी इन दो गैसों की वजह से लोगों को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है.
सांसों के साथ यदि अधिक मात्रा में नाइट्रोजन डाइ-ऑक्साइड अंदर चला जाता है, तो इससे कई तरह की परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं. मसलन, खांसी होने लगती है, सांस लेने में समस्या होती है. सांस संबंधी संक्रमण से परेशान लोगों की समस्या को यह गैस और बढ़ा देता है.
कार्बन मोनोक्साइड एक रंगहीन और गंधहीन गैस है. किसी भी रूप में यह सांसों के साथ ज्यादा मात्रा में अंदर चला जाये, तो सिरदर्द होने लगता है, जी मिचलाने लगता है, चक्कर आते हैं और उल्टियां भी होने लगती हैं. यदि इस गैस के ज्यादा संपर्क में आप आते हैं, तो आपको दिल का रोग भी हो सकता है.
Posted By : Mithilesh Jha
Disclaimer: हमारी खबरें जनसामान्य के लिए हितकारी हैं. लेकिन दवा या किसी मेडिकल सलाह को डॉक्टर से परामर्श के बाद ही लें.