सरना को धर्म की मान्यता देने की मांग पर आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) ने 30 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. सेंगेल प्रमुख सालखन मुर्मू ने एक दिन के सांकेतिक भारत बंद का आह्वान करते हुए कहा है कि सरना देश के 15 करोड़ आदिवासी (जनजातीय समुदायों) की पहचान है. आदिवासियों के धर्म को मान्यता नहीं देना उनके साथ अन्याय है. एक तरह से संवैधानिक अपराध भी है. सालखन मुर्मू ने बुधवार (27 दिसंबर) को एक बयान जारी कर कहा है कि किसी समुदाय पर दूसरे धर्मों का पालन करने के लिए दबाव बनाना, उन्हें धर्म की दासता स्वीकार करने के लिए बाध्य करने की तरह है. उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों ने ही आदिवासियों को उनकी धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित किया है. सेंगेल प्रमुख मुर्मू ने दावा किया कि वर्ष 1951 की जनगणना में सरना धर्म के लिए अलग संहिता थी, लेकिन कांग्रेस ने इसे बाद में समाप्त कर दिया. वहीं, भाजपा अब आदिवासियों को वनवासी और हिंदू बनाने की कोशिश कर रही है.
सरना कोड देने वालों को ही वोट देंगे आदिवासी
सालखन मुर्मू ने कहा कि आदिवासी सेंगेल अभियान आदिवासी समुदाय के हितों को सुरक्षित रखने के पक्ष में है. इसलिए लगातार सरकार से संवैधानिक तरीके से आदिवासियों को उनका धर्मकोड देने की मांग कर रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले सालखन मुर्मू ने कहा है कि आदिवासी समाज उसी पार्टी को वोट देगा, जो सरना धर्म कोड को मान्यता देने की बात करेगी. उन्होंने कहा कि पूरे भारत में आदिवासियों की आबादी करीब 15 कोड़ है. ये लोग प्रकृति की पूजा करते हैं. सरना धर्म कोड उनके अस्तित्व की पहचान का हिस्सा है. आदिवासियों को सरना कोड से वंचित नहीं किया जाना चाहिए. अगर उन्हें सरना कोड नहीं मिलता है, तो यह उनको उनकी धार्मिक आजादी से वंचित करने का प्रयास है. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इसके लिए समान रूप से दोषी हैं.
2011 की जनगणना में 50 लाख लोगों ने अपना धर्म लिखाया ‘सरना’
सेंगेल के प्रमुख ने कहा कि वर्ष 2011 में जब देश में जनगणना हुई थी, तो उसमें 50 लाख आदिवासियों ने अपना धर्म ‘सरना’ लिखवाया था. उस समय जैन की संख्या 44 लाख थी. सरना धर्म कोड के बगैर आदिवासियों को जबरन हिंदू, मुसलमान, ईसाई बनाना जनजातीय समुदाय के लोगों को धार्मिक गुलामी के लिए मजबूर करना है. सालखन मुर्मू ने कहा कि सरना धर्म कोड की मान्यता मानवता और प्रकृति- पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री 15 नवंबर 2023 को भगवान बिरसा मुंडा के गांव उलीहातु आए, महामहिम राष्ट्रपति ने 20 नवंबर 2023 को बारीपदा दौरा किया. ये दोनों यात्राएं बेकार साबित हुईं.
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राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से भी मिली निराशा : सालखन मुर्मू
पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कहा कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से अपील की गई कि वे सरना धर्म कोड की मान्यता की पहल करें. लेकिन, उनसे भी निराशा हाथ लगी है. अब तक इस दिशा में कोई पहल नहीं हुई है. इसलिए आदिवासी सेंगेल अभियान को अन्य संगठनों के सहयोग से 30 दिसंबर को भारत बंद और रेल-रोड चक्का जाम करने के लिए बाध्य होना पड़ रहा है. उन्होंने अपील की है कि सरना धर्म लिखाने वाले 50 लाख आदिवासी एवं अन्य सभी सरना धर्म के समर्थक संगठन अपने-अपने गांव के पास एकजुट होकर प्रदर्शन करें. उन्होंने कहा कि झारखंड विधानसभा में 11 नवंबर 2020 को जिन पार्टियों ने धर्म कोड बिल का समर्थन किया था, उन्हें भी सामने आना होगा. अगर वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनकी भूमिका भी संदेह के घेरे में होगी.