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झारखंड के भोगता, गंझू समेत 10 समुदाय को ST में शामिल करने का बिल रास में पारित, 8 साल पहले ही हुई थी पहल

मुख्य रूप से झारखंड में निवास करने वाले भोगता और गंझू समेत 10 समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का बिल राज्यसभा में पेश हो गया. मंत्री अर्जुन मुंडा ने ये विधेयक पास कराया

रांची : झारखंड में निवास करनेवाले भोगता और गंझू समेत 10 समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का बिल पेश किया गया है. जनजातीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने सोमवार को राज्यसभा में झारखंड के जनजातीय समुदाय भोगता से संबंधित संविधान (अनुसूचित जाति एवं जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया. विधेयक में भोगता समुदाय को अनुसूचित जातियों की सूची से विलोपित करने की बात कही गयी है.

साथ ही भोगता, देशवारी, गंझू, दौतलबंदी (द्वालबंदी), पटबंदी, राउत, मझिया, खैरी (खेरी) को खरवार के पर्याय के रूप में अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव दिया गया है. इसके अलावा अनुसूचित जनजातियों की सूची में पुरान के तौर पर नयी प्रविष्टि और अनुसूचित जनजातियों की सूची में मुंडा के पर्याय के रूप में तमरिया या तमड़िया को शामिल करना भी प्रस्तावित किया गया है. विधेयक के माध्यम से संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 और संविधान (जनजाति) आदेश 1950 में संशोधन किया जाना है.

खरवार समुदाय की पर्याय जातियों को झारखंड की अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की अनुशंसा वर्ष 2014 में ही की गयी थी. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष एवं राज्य के वर्तमान वित्तमंत्री डॉ रामेश्वर उरांव व आयोग के तत्कालीन सदस्य भैरू लाल मीणा ने राज्य के गांवों का दौरा कर खरवार समुदाय के पर्याय जातियों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की अनुशंसा की थी. आयोग की टीम ने लातेहार जिला में चंदवा ब्लॉक के हुटाप व चेटर पंचायत स्थित बांसडीहा, चीरो, कैलाखड का दौरा कर स्थानीय लोगों की जीवनशैली का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की थी.

रिपोर्ट में कहा गया था कि खरवार समुदाय की उपजातियों में गोत्र चिह्न, आदिम विशिष्टता व विशेष संस्कृति मौजूद है. खरवार और उसकी उपजातियां राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में निवास करती है. भौगोलिक रूप से भिन्न होते हुए भी उनकी भाषा, संस्कृति, धार्मिक अनुष्ठान, विधि विधान, सामाजिक संगठन, राजनैतिक व शैक्षिक स्थिति में समानता है. इससे प्रमाणित होता है कि उपयुक्त सभी उपजातियां वर्तमान परिवेश में मूल रूप से खरवार समुदाय के पर्याय हैं. उनका जीवन राज्य की जनजातियों की परिस्थितियों के ही अनुरूप है. ऐसे में उनको राज्य की अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया जा सकता है.

राज्य के जनजातीय शोध संस्थान (ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट या टीआरआइ) ने वर्ष 2002 में तमाड़िया या तमारिया जाति को अनुसूचित जनजाति मुंडा की श्रेणी में सूचीबद्ध करने की अनुशंसा की थी.

रामेश्वर उरांव ने की थी पहल 2014 में जनजातीय आयोग ने की थी अनुशंसा

केंद्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के तत्कालीन चेयरमैन डॉ रामेश्वर उरांव के नेतृत्व में भोगता को एसटी में शामिल कराने को लेकर आठ साल पहले पहल की गयी थी. वर्ष 2014 में जनजातीय आयोग की टीम ने झारखंड के लातेहार के चंदवा, बालूमाथ व चतरा के कई गांव में जाकर भोगता जाति का अध्ययन किया था. इसमें पाया गया था कि इनका रहन-सहन, परंपरा, संस्कृति अादिवासी की तरह ही है. ये खरवार के चचेरे भाई की तरह हैं.

डॉ उरांव ने बताया कि उस वक्त भोगता समाज के नेता रामदेव गोंझू ( अब स्वर्गीय) व सत्येंद्र भोगता ने भोगता को एसटी में शामिल कराने की मांग की थी. जनजातीय मंत्रालय के निर्देश पर आयोग के टीम ने झारखंड के कई गांवों का दौरा कर इसका अध्ययन किया था. इसके बाद भोगता को अनुसूचित जनजाति में शामिल कराने की अनुशंसा की गयी थी.

Posted By : Sameer Oraon

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