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Big Issue: झारखंड के विद्युत शवदाह गृह हो रहे बर्बाद, राज्य सरकार भी बरत रही उदासीनता

झारखंड में विभिन्न जगहों पर करोड़ों रुपये खर्च कर बनाये गये विद्युत शवदाह गृहों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. यूं कहें कि राजधानी रांची समेत राज्यभर में विद्युत शवदाहगृह योजना फेल हो गयी है. राज्य सरकार भी इसपर विशेष ध्यान नहीं दे रही है.

Big Issue in Jharkhand: झारखंड में विभिन्न जगहों पर करोड़ों रुपये खर्च कर बनाये गये विद्युत शवदाह गृहों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. यूं कहें कि राजधानी रांची समेत राज्यभर में विद्युत शवदाहगृह योजना फेल हो गयी है. रांची में हरमू और नामकुम के साथ राज्य के अन्य शहरों में निर्मित विद्युत शवदाह गृह बेकार पड़े हैं. एक ओर विदेशों में विभिन्न माध्यमों से अंतिम संस्कार का तरीका अपनाया जा रहा है, जिससे प्रकृति सुरक्षित रहे. लेकिन हम विद्युत शवदाह गृह जैसा विकल्प के रहने के बाद भी इसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं. सरकार भी लोगों को जागरूक नहीं कर पा रही है, जिससे लोगों के बीच इसके उपयोग को लेकर बढ़ावा मिल सके. इस कारण काफी कम संख्या में लोग शवों को जलाने के लिए विद्युत शवदाह गृह आ रहे हैं. ऐसे में ये बेकार साबित हो रहे हैं

एक माह में 180 की होती है अंत्येष्टि

हरमू मुक्ति धाम के व्यवस्थापक मुकेश वर्मा ने बताया कि घाट पर नियमित रूप से कम से कम पांच से छह शव की अंतिम क्रिया होती है.यानी कि एक माह में 180 के करीब शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है. वहीं, किसी-किसी दिन आठ से 10 शव भी पहुंच जाते हैं. लोगों को परेशानी नहीं हो, इसके लिए घाट पर आठ खांचे तैयार किये गये हैं, जहां शव का अंतिम संस्कार पूरा होता है. हालांकि एक शव के पूरा जलने में तीन से चार घंटे का समय लगता है. ऐसे में लोगों को इंतजार नहीं करना पड़े, इसके लिए हरमू नदी के किनारे स्वर्ग धाम का निर्माण पूरा किया गया है. यहां एक साथ चार शव के अंतिम क्रिया की व्यवस्था है.

बकाया बिल के कारण कटा था हरमू शवदाह गृह का कनेक्शन

अगर रांची की बात करें, तो यहां बकाया बिल के कारण हरमू स्थित शवदाह गृह में बिजली का कनेक्शन काटा गया था. उसके बाद गैस का इस्तेमाल कर कुछ दिनों तक शवदाह गृह का इस्तेमाल हुआ. कोरोना काल में भी संक्रमण की आशंका के मद्देनजर विद्युत शवदाह गृहों में कुछ शव जलाये गये. फिर प्रशासन ने मारवाड़ी सहायक समिति से हरमू स्थित विद्युत शवदाहगृह के जीर्णोद्धार का आग्रह किया. मई 2020 में रिम्स से लाये गये लावारिस शव से ट्रायल किया गया. लेकिन उसके बाद भी लोग यहां शवों को जलाने को लेकर जागरूक नहीं हो रहे हैं. विद्युत शवदाह गृहों को बनाने का खर्च अधिक होने से मरम्मत भी नहीं करायी जा रही है. इनके संचालन के लिए संस्था नहीं मिल रही है.

राज्य सरकार की नयी योजना 16 निकायों में चल रहा निर्माण

रांची और धनबाद में विद्युत शवदाहगृह योजना फेल होने के बाद भी राज्य सरकार ने सभी शहरों में विद्युत शवदाहगृह के निर्माण की योजना बनायी है. 16 नगर निकायों में विद्युत शवदाहगृह निर्माण शुरू कर दिया गया है. इसमें धनबाद, चास, कोडरमा, गिरिडीह, आदित्यपुर, चाईबासा, सरायकेला, जुगसलाई, चतरा, लातेहार, लोहरदगा, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, दुमका और गोड्डा शामिल हैं. इन सभी शहरों में प्रस्तावित विद्युत शवदाहगृह निर्माण पर 47.13 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे. जुडको ने सभी शवदाहगृहों के लिए एक ही मॉडल तैयार किया है. नगर निकायों को शवदाह गृह निर्माण के लिए भूमि की तलाश करने को कहा गया है. एक शवदाह गृह के निर्माण में लगभग तीन करोड़ रुपये की लागत आयेगी. 15वें वित्त आयोग की राशि से निर्माण कार्य कराया जायेगा. शवदाह गृह गैस फायर्ड होंगे.

रांची के विद्युत शवदाह गृहों पर 11 साल तक लटका रहा ताला, चोर ले गये थे उपकरण

वर्ष 2008-09 में आरआरडीए द्वारा शहर में दो विद्युत शवदाहगृहों का निर्माण तीन करोड़ की लागत से कराया गया था. इसमें एक शवदाहगृह का निर्माण हरमू मुक्तिधाम व दूसरे का नामकुम घाघरा में किया गया. लेकिन यहां कोई भी अपने परिजनों का शव जलाने को तैयार नहीं था. अंत में इसका उदघाटन रिम्स से छह लावारिस शवों को लाकर किया गया. लावारिस बॉडी तो यहां जल गयी. लेकिन उसके बाद भी कोई भी व्यक्ति जागरूकता के अभाव परिजनों का शव लेकर नहीं आता था. नतीजा कुछ दिनों बाद ही यहां ताला लटक गया. शवदाहगृहों में ताला लटकने व आरआरडीए द्वारा इसकी देखरेख नहीं किये जाने से 11 साल तक ये बंद रहे. नतीजा चोरों ने इन दोनों ही भवनों में लगाये गये लोहे के सारे उपकरणों के साथ साथ खिड़की दरवाजे को भी उखाड़ लिया.

वर्ष 2020 में मारवाड़ी सहायक समिति ने ली जिम्मेवारी : वर्ष 2020-21 में देश में कोरोना ने दस्तक दी. तब प्रशासन ने मारवाड़ी सहायक समिति से हरमू स्थित विद्युत शवदाहगृह के जीर्णोद्धार का आग्रह किया. समिति के लोग इसे सुधारने के लिए आगे आये, पर लोगों ने रुचि नहीं ली.

कोयलांचल का हाल

कोयलांचल धनबाद के झरिया के मोहलबनी मुक्तिधाम में 1.56 करोड़ की लागत से अत्याधुनिक विद्युत शवदाह गृह बनाया गया है. इसे पांच अप्रैल 2023 को धनबाद के नगर आयुक्त सत्येंद्र कुमार की उपस्थिति में चालू किया गया था. लेकिन आज तक मात्र 19 शवों का ही निस्तारण हो सका है. इसका मुख्य कारण लोगों में जागरूकता का अभाव है.

लोग नहीं हो रहे जागरूक : शवदाह गृह में कार्यरत गैर निगम कर्मी संदीप ठाकुर व अशोक बाउरी ने बताया कि मोहलबनी श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार करने आने वाले लोगों को अपने स्तर से वह तैयार करने की कोशिश भी करते हैं. लेकिन लोग तैयार नहीं होते हैं. कर्मियों ने बताया कि शवदाह गृह में दो शव का सफलता पूर्वक निस्तारण कर टेस्टिंग हुआ था. लेकिन शव जलाने का शुल्क तय नहीं होने से करीब डेढ़ माह तक शवदाहगृह बंद था. निगम द्वारा शव जलाने का शुल्क तय होने के बाद से शवदाह गृह नियमित रूप से चालू है.

सिमडेगा : शवदाह गृह का निर्माण एक साल बाद भी अधूरा

सिमडेगा के सलडेगा में जुडको द्वारा विद्युत शवदाह गृह का निर्माण कराया जा रहा है. लेकिन एक साल बाद भी यहां का काम अधूरा है. शवदाह गृह में अब तक चिमनी नहीं लगी है. फर्श अधूरा पड़ा है. शवदाह कक्ष के बाहर भी कुछ काम नहीं हुआ है. शहरी क्षेत्र के घोरबहार स्थित श्मशान घाट सुविधाहीन है. नगर परिषद द्वारा लगभग 11 वर्ष पूर्व शव जलाने के लिए प्लेटफार्म बनाया गया था. इसी प्लेटफॉर्म पर शव जलाया जाता था. लेकिन, लगभग दो वर्ष पूर्व प्लेटफार्म में लगा लोहे का स्ट्रक्चर चोरी हो गया. तब से उसे ठीक नहीं कराया गया है.

रामगढ़ : महीनों पहले हुआ ट्रायल, फिर लटक गया ताला

दामोदर नद घाट पर मुक्तिधाम संस्था रामगढ़ के द्वारा संचालित शवदाह स्थल के निकट ही जिला प्रशासन द्वारा डीएमएफटी फंड से विद्युत शवदाह गृह का निर्माण किया गया है. नवनिर्मित विद्युत शवदाह गृह का परीक्षण भी कई माह पूर्व ही हो गया है. लेकिन आज तक इसे प्रारंभ नहीं किया गया है. अभी भी शवों का अंतिम संस्कार मुक्तिधाम संचालित शवदाह स्थल पर ही होता है.

पलामू : दो विद्युत शवदाह गृह बने, लेकिन शुरू नहीं हो सके

मेदिनीनगर में दो विद्युत शवदाहगृह बनाये गये हैं, लेकिन, तकनीकी कारणों से उनको शुरू ही नहीं किया जा सका है. वैसे शहर में शवों के अंतिम संस्कार के लिए तीन जगहों पर व्यवस्था की गयी है. निगम द्वारा लोगों की सहूलियत के लिए अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी की भी व्यवस्था करायी जाती है. कोयल नदी किनारे हरिश्चंद्र घाट स्थित है. शहर के वार्ड नंबर 27 पहाड़ी मोहल्ला स्थित कोयल नदी के तट पर श्मशान घाट को व्यवस्थित करने के लिए शहर के प्रमुख लोगों का विशेष रूप से योगदान है.

इधर, अंत्येष्टि में रोज जल रहीं हजारों टन लकड़ियां

  • 5000 किलो लकड़ी राज्य भर में हर दिन सौ शवों का दाह संस्कार होने पर हो जाती है खाक

  • 350 से 500 किलो लकड़ी की एक साधारण मनुष्य के दाह संस्कार में पड़ती है जरूरत

लकड़ी पर अंतिम संस्कार से पर्यावरण को हो रहा नुकसान

एक साधारण मनुष्य के दाह संस्कार में 350 से 500 किलो लकड़ी की जरूरत पड़ती है. इस संबंध में केतारी बागान घाट में कार्यरत सचिन कुमार ने बताया कि आदमी अगर दुबला-पतला है तो उसे नौ मन मतलब 360 किलो लकड़ी, वहीं अगर आदमी चर्बी वाला हुआ तो उसे जलाने में 12-13 मन मतलब 480 से 520 किलो लकड़ी की खपत होती है. मान लिया जाये कि औसतन राज्य भर में हर दिन सौ शवों का दाह संस्कार होता है. यानी, प्रतिदिन पांच हजार किलो से अधिक पेड़ों की लकड़ी शव का अंतिम संस्कार करने में जलायी जाती है. यह पर्यावरण के लिए घातक है.

गुमला : विद्युत शवदाहगृह का भवन तैयार, नहीं लग सके चिमनी व शेड

गुमला शहर के पालकोट रोड स्थित श्मशान घाट में दो वर्षों से विद्युत शवदाह गृह निर्माणाधीन ही है. वर्तमान में भवन बनकर तैयार हो गया है. लेकिन उसमें चिमनी व शेड नहीं लगाये जा सके हैं. भवन के प्रवेश द्वार में शटर नहीं लगा है. उक्त भवन का निर्माण जुडको के माध्यम से तीन करोड़ की लागत से किया जा रहा है. जिसका निर्माण कार्य गुप्ता कंस्ट्रक्शन रांची द्वारा किया जा रहा है. इस संबंध में कंस्ट्रक्शन की देखरेख कर रहे मुंशी ने बताया कि अगस्त अंतिम सप्ताह तक इसका निर्माण पूर्ण कर लिया जायेगा. उन्होंने बताया कि उक्त भवन में एक वेटिंग रूम, एक शौचालय व एक कार्यालय बड़ा भवन में होगा. वहीं उसके थोड़ा बगल में स्टाफ रूम बनाया गया है. वेटिंग रूम में दाह संस्कार में मौजूद लोग बैठ सकते हैं. जेनरेटर के माध्यम से शव का दाह संस्कार होगा. कंस्ट्रक्शन कंपनी ने चतरा, कोडरमा, लातेहार, सिमडेगा, लोहरदगा, टाटा, चास और खूंटी में विद्युत इलेक्ट्रिक शवदाह गृह बनाया है.

पारसी समुदाय के लोग बदल रहे अंतिम संस्कार का तरीका

गिद्धों की घटती आबादी के कारण पारसी समुदाय को शवों के अंतिम संस्कार के तरीकों में भी बदलाव करना पड़ा है. टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के साथ ही इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई थी. पारसी समुदाय के लोगों के शवों को ‘टावर ऑफ साइलेंस’ पर छोड़ने की परंपरा रही है, जहां गिद्ध इन शवों को खा जाते हैं. लेकिन अब गिद्धों की संख्या घटने से इसमें अंतिम संस्कार के तरीकों में बदलाव हो रहे हैं. दरअसल, साल 2015 से पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के तरीके में बदलाव आया है और मुंबई में इलेक्ट्रिक शवदाह गृह के जरिये अंतिम संस्कार के कई मामले सामने आये हैं. पारसी धर्म की तय रस्मों को पूरा करने के बाद पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक मशीन के हवाले कर दिया जाता है. बिजनेसमैन साइरस मिस्त्री की मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार के दौरान भी यही देखा गया.

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