रांची, प्रवीण मुंडा: बेथेसदा बालिका स्कूल को बिहार-झारखंड का पहला बालिका स्कूल होने का गौरव प्राप्त है. इस स्कूल की स्थापना एक दिसंबर 1852 को हुई थी. स्थापना दिवस पर रविवार को सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया. शुरू में इस स्कूल में लड़के और लड़कियों को शिक्षा दी जाती थी. बाद में लड़कों के लिए अलग स्कूल की स्थापना की गयी. इस स्कूल का इतिहास भी शुरूआती जर्मन मिशनरियों के साथ जुड़ा है. 1845 में पहले चार जर्मन मिशनरी इमिल शत्स, यानके, ब्रांत और बच जब छोटानागपुर के इलाके में पहुंचे, तो उन्होंने मिशन कार्यों की शुरूआत प्रिचिंग, टीचिंग और हीलिंग (सुसमाचार प्रचार, शिक्षा और स्वास्थ्य) के माध्यम से किया.
मिशनरियों ने रांची में सबसे पहले कहां गाड़ा था तंबू?
मिशनरियों ने रांची में सबसे पहले जिस स्थान पर अपना तंबू गाड़ा था, उसे बेथेसदा का नाम दिया था. उस स्थान पर आज स्मरण पत्थर और जीइएल चर्च के मॉडरेटर का बंगला है. उन दिनों अंग्रेज शासकों ने कुछ अनाथ बच्चों का पालन-पोषण करने के लिए उन मिशनरियों को दिया था. मिशनरियों ने सिर्फ उनकी देखभाल ही नहीं की बल्कि उन्हें पढ़ाना भी शुरू किया. शुरू में बालक-बालिका एक साथ पढ़ते थे.
1860 तक बेथेसदा में तीसरी कक्षा तक होती थी पढ़ाई
1860 में लड़कों के लिए अलग से व्यवस्था की गयी. 1860 तक बेथेसदा में तीसरी कक्षा तक पढ़ाई होती थी. चर्च की केंद्रीय शिक्षा पदाधिकारी आशा बागे और स्कूल की प्रभारी प्राचार्या शीतल तिडू ने बताया कि 1895 से स्कूल में अपर प्राइमरी यानी पांचवीं कक्षा तक पढ़ाई होने लगी थी. इसके बाद धीरे-धीरे स्कूल का विस्तार होने लगा. 1945 में पहली बार दो लड़कियां जेनेट दादेल और आसरेन बागे ने मैट्रिक की परीक्षा पास की. 20 मई 1947 को हाईस्कूल को सरकारी मान्यता मिली. 1952 में इसका शताब्दी वर्ष मनाया गया था. अभी स्कूल में लगभग 350 छात्राएं अध्ययनरत हैं.