झारखंड: बिंधु बसाइर में 21 अक्टूबर को लगेगा मेला, दिल दहला देनेवाली है सात भाइयों की इकलौती बहन की कहानी
लोककथाओं के अनुसार बिंधु बसाइर के पास सात भाई रहते थे. उनकी एक बहन थी. सातों भाई दिनभर आसपास में काम करते थे और उनकी बहन घर का काम करती थी और सभी के लिए खाना पकाती थी. एक दिन भाई लोग उसकी जान लेने पर तुल जाते हैं. भाई के तीर से उसकी मौत हो जाती है.
बुढ़मू(रांची), कालीचरण साहू: झारखंड के रांची जिले के बुढ़मू प्रखंड के नाउज गांव स्थित बिंधु बसाइर में 21 अक्टूबर को मेले का आयोजन किया जाएगा. पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष यहां मेले का आयोजन किया जाता है. मेले के सफल आयोजन के लिए धर्मगुरू महेंद्र मुंडा की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गयी. इसका संचालन बिरसा मुंडा ने किया. मेला आयोजन के लिए कार्यकारिणी का गठन किया गया. इसमें बसंत पाहन, कैलाश पाहन, मनोज मुंडा, श्रवण उरांव, संजय उरांव, उमेश मुंडा, जलेश्वर पाहन, सीता मुंडा, आलोक मुंडा, रीतिक मुंडा सहित अन्य शामिल हैं. लोककथाओं के अनुसार बिंधु बसाइर की कहानी दिल दहलादेने वाली है. सात भाइयों की इकलौती बहन की जान का दुश्मन उसके सहोदर भाई ही बन जाते हैं. हालांकि छोटा भाई बहन को तीर से मारने के खिलाफ था, लेकिन बहन के आग्रह पर वह अपनी बहन को तीर मारता है, जिससे उसकी मौत हो जाती है.
बिंधु बसाइर को लेकर ये है किंवदंती
बिंधु बसाइर को लेकर किंवदंती है. ये लोककथाओं के आधार पर भाई-बहनों से संबंधित है. लोककथाओं के अनुसार बिंधु बसाइर के पास सात भाई रहते थे. उनकी एक बहन थी. सातों भाई दिनभर आसपास में काम करते थे और उनकी बहन घर का काम करती थी और सभी के लिए खाना पकाती थी. एक दिन बहन खाना बनाने के दौरान साग काट रही थी. इसी दौरान उसकी अंगुली कट जाती है और खून बहने लगता है. बहन सोचती है कि खून को कहीं पोछने पर भाई लोग जानेंगे तो परेशान होंगे. कहा जाता है कि यही सोचकर खून को साग में पोछ देती है. रात में जब सभी भाई खाना खाने लगते हैं तो उन्हें साग बहुत अच्छा लगता है. सभी भाई अपनी बहन से पूछते हैं कि साग बहुत स्वादिष्ट है, इसमें क्या डाला है? तब बहन सारी बात बता देती है.
बहन को मारने का प्लान बनाते हैं भाई
जैसे ही बहन पूरी बात बताती है. उसके बाद सभी भाई बोलते हैं कि जब बहन का खून इतना स्वादिष्ट है तो मांस कितना स्वादिष्ट होगा और सभी भाई अपनी बहन को मारने का निर्णय ले लेते हैं, जिसका छोटा भाई विरोध करता है लेकिन छोटे भाई की बात कोई नहीं सुनता है. इसके बाद बिंधु बसाइर के पास सभी भाई मचान बनाते हैं और बहन को मचान पर बैठकर खेती की रखवाली करने के लिए बोलकर मचान से करीब 300 मीटर दूर पर जाकर तीर से बहन के ऊपर निशाना साधते हैं तो बहन बोलती है ‘ना बिंधबे रे तीर ना बिंधबे ई हके मोर दुश्मना भाई’ और भाइयों को निशाना चूक जाता है.
जब छोटे भाई के तीर से बहन की हो जाती है मौत
जब सभी भाई छोटे भाई को बहन को तीर मारने के लिए बोलते हैं तो छोटा भाई तीर मारने से इनकार कर देता है. इसके बाद बहन छोटे भाई से बोलती है कि तोय मोके तीर नई मारबे तो भी इ मन कोई दूसर तरीका से मोके माईर देबय, से ले तोहे मोके तीर मार. बहन के आग्रह पर छोटा भाई तीर मारने के लिए तैयार हो जाता है. तब बहन बोलती है कि ‘बिंध रे तीर बिंध इ हके मोर सहोदर भाई’ इसके बाद छोटे भाई के तीर से बहन की मौत हो जाती है.
आज भी है बसाइर की झाड़ी
कहा जाता है कि तीर लगने से बहन की मौत हो जाने के बाद सभी भाई उसका मांस पकाकर खाते हैं, लेकिन छोटा भाई मांस को वहीं मिट्टी में गाड़ देता है, जिसमें बसाइर की झाड़ी उग आती है. बाद में एक बाबा बिंधु बसाइर के पास उगे हुए बांस को काटकर बांसुरी बनाने का निर्णय लेते हैं तो बसाइर से आवाज आती है ‘मोके नी काट बाबा, मोके मोर सहोदर भाई जीवन देलक हे’ और बाबा से अपने जीवन की कहानी सुनाती है. हजारों साल से वह बसाइर की झाड़ी है और उसी स्थल पर पिछले कुछ वर्षों से मेले का आयोजन किया जाता है.
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