धनबाद, संजीव झा: धनबाद जिले के कृषि प्रधान प्रखंड बलियापुर के बड़ादाहा गांव में झारखंड के महानायकों में से एक बिनोद बिहारी महतो का जन्म हुआ था. 23 सितंबर 1923 को श्री महतो का जब जन्म हुआ था. तब यह अविभाजित बंगाल का हिस्सा था. उस वक्त यहां सुविधाएं नहीं थीं, तो आज भी इस गांव को कई सुधार का इंतजार है. यहां हर घर नल से जल योजना के तहत जलापूर्ति नियमित नहीं होती. जो थोड़ा-बहुत पानी आता भी है तो वह गंदा होता है. सबसे बड़ी बात है कि बिनोद बाबू का पुश्तैनी घर ध्वस्त हो गया है. यहां इनके भतीजे जय किशोर महतो रहते हैं. जयकिशोर महतो को अपने चाचा बिनोद बाबू पर गर्व है. वह उनके ध्वस्त हो चुके घर को दिखाते हैं, साथ ही उस कमरे में भी ले जाते हैं जहां बिनोद बाबू की पुरानी तस्वीर रखी है.
चार वर्ष पहले हुआ था शिलान्यास, एक ईंट तक नहीं जुड़ी
जयकिशोर जी कहते हैं कि उनके चाचा जी की प्रतिमाएं तो झारखंड में कई स्थानों पर लगी हैं, लेकिन उनके जन्मस्थल यानी पैतृक गांव में आज तक कोई प्रतिमा नहीं लग पायी है. वह बताते हैं कि वर्ष 2019 में समाज के लोगों ने उनके घर के परिसर में बिनोद बाबू की मूर्ति लगाने का निर्णय लिया. शिलान्यास भी हुआ. इसे लेकर उन्होंने खेतीबाड़ी से बचाये पैसे से वहां पर एक हॉल भी बनवा दिया कि अगर कभी कोई आयेगा तो वहां रुकेगा या फिर कोई सभा गोष्ठी होगी, लेकिन आज तक वहां कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ. ग्रामीण चाहते हैं कि बिनोद बाबू की जन्मशती वर्ष में गांव में उनकी मूर्ति लगे.
गांव बिनोदधाम के रूप में विकसित हो : राहुल
बिनोद बाबू के पोता (राजकिशोर महतो के पुत्र) राहुल कुमार कहते हैं कि उनके दादा जी पूरा जीवन सामाजिक कुरीतियों व अशिक्षा के खिलाफ लोगों को जागृत करते रहे. अभियान चलाया इसलिए सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि बड़ादाहा ग्राम को बिनोदधाम के रूप में विकसित किया जाये.
बिनोद बाबू के गांव से युवा कर रहे हैं पलायन
बड़ादाहा गांव बलियापुर प्रखंड कार्यालय से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर है. यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है. यहां पर खेती ही जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन है. धान की ही खेती होती है. कुछ लोग सब्जियां भी उगाते हैं. छोटे स्तर पर मुर्गी पालन भी करते हैं. लेकिन, कोई कल-कारखाना नहीं होने के चलते रोजगार के लिए युवाओं के पलायन का सिलसिला जारी है.