बिरसा कृषि विवि ने खोजी शूकर की नयी देसी नस्ल
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने शूकर (सूअर) की नयी देसी नस्ल की खोज की है. इसका नाम पूर्णिया रखा गया है
रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के वैज्ञानिकों ने शूकर (सूअर) की नयी देसी नस्ल की खोज की है. इसका नाम पूर्णिया रखा गया है. इस नस्ल को आइसीएअार-राष्ट्रीय पशु अनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, करनाल हरियाणा ने भी पंजीकृत कर लिया है.
विवि के पशु वैज्ञानिक डॉ रवींद्र कुमार ने राष्ट्रीय शूकर शोध केंद्र, रानी, गुवाहाटी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ एस बानिक और पशु चिकित्सक डॉ शिवानंद कानसी के सहयोग इस नस्ल की खोज की है. यह नस्ल खास कर संताल परगना क्षेत्र तथा बिहार के कटिहार व पूर्णिया समेत कई अन्य जिलों में पाया जाता है.
डॉ कुमार ने इस नस्ल पर आठ शोध पत्र भी प्रकाशित किये हैं. देश में शूकर की कुल नौ देसी प्रजाति पंजीकृत थी. इस नस्ल के पंजीकरण के साथ प्रजातियों की संख्या 10 हो गयी. देश में पहली बार झारखंड और बिहार राज्य के शूकर देसी प्रजाति का पंजीकरण हुआ है. विवि शूकर शोध प्रक्षेत्र इकाई के प्रभारी डॉ रवींद्र कुमार ने बताया कि इस नस्ल को मुख्य रूप से ग्रामीण परिवेश में खुली विधि से एससी/एसटी द्वारा पाला जाता है.
इसके भरण पोषण पर खर्च ज्यादा नहीं होता है. यह काले रंग का होता है. इसकी लंबाई कम होती है तथा गर्दन पर खड़े बाल होते हैं. यह मजबूत नस्ल का होता है. इसमें रोगों से लड़ने की क्षमता अधिक होती है. एक साल में शारीरिक वजन करीब 50-60 किलो तक हो जाता है. इनमें साल में दो बार बच्चों को जन्म देने की क्षमता है. वेटनरी कॉलेज के डीन डॉ सुशील प्रसाद बताते हैं कि इस नस्ल के नर शूकर से सात से आठ हजार तथा मादा शूकर से 8-10 हजार रुपये प्रतिवर्ष आमदनी प्राप्त होती है.
Post by : Pritish Sahay