पेंशन कोई इनाम या दान नहीं, यह कर्मचारी की पिछली सेवाओं के कारण अर्जित होती है : हाइकोर्ट
झारखंड हाइकोर्ट ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कांके की ओर से एकल पीठ के आदेश को चुनौती देनेवाली अपील याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. एक्टिंग चीफ जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की अपील याचिका को खारिज कर दिया.
झारखंड हाइकोर्ट ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय कांके की ओर से एकल पीठ के आदेश को चुनौती देनेवाली अपील याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया. एक्टिंग चीफ जस्टिस एस चंद्रशेखर व जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की अपील याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही एकल पीठ के आदेश को बरकरार रखा. खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि पेंशन कोई इनाम या दान नहीं है. यह कर्मचारी द्वारा पिछली उल्लेखनीय सेवाओं के कारण अर्जित की जाती है. खंडपीठ ने यह भी कहा कि पेंशन लाभ देने के एकल पीठ के आदेश को चुनौती देकर प्रार्थी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने संविधान के अनुच्छेद-300ए के तहत कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकार को छीनने का प्रयास जैसा है. उल्लेखनीय है कि बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से अपील याचिका दायर कर एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गयी थी. दैनिककर्मी महमूद अल्लाम, मो अब्बास अली, देव नारायण साव (मृत्यु के बाद से) व शेख केताबुल हुसैन ने अपनी सेवा के नियमितीकरण तथा पूर्व की सेवा की गणना करते हुए पेंशन आदि के लाभ को लेकर हाइकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी. एकल पीठ ने माना था कि पिछली सेवाओं को पेंशन लाभ के लिए गिना जाना चाहिए तथा विश्वविद्यालय को नौकरी की उपयुक्तता, योग्यता, अनुभव आदि को ध्यान में रखते हुए दैनिक कर्मियों के नियमितीकरण पर विचार करने का निर्देश दिया जाना चाहिए. नियमितीकरण के दैनिक कर्मियों के दावों पर विचार नहीं करने पर अवमानना याचिका दायर की गयी थी. हालांकि, प्रतिवादी बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से उम्मीदवारों के चयन के लिए साक्षात्कार जारी है संबंधी जवाब के बाद अवमानना याचिका निष्पादित हो गयी थी.