स्वतंत्रता संग्राम के अजेय योद्धा थे भगवान बिरसा मुंडा. 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये थे. जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण की आहूति दे दी़ स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नायक थे, जिनकी वीरता और शौर्य के किस्से आज भी रोमांचित करते है. धरती आबा की जन्मस्थली उलिहातू से लेकर कर्मस्थली बंदगांव, उनके अद्म्य साहस की कहानी बयां करती है. डोंबारी बुरु की पहाड़ियां, रांची जेल का वह कमरा जहां उन्होंने अंतिम सांस ली और राजधानी के कोकर का समाधि स्थल इस वीर का क्रांति पथ है़
09 जनवरी 1900 का दिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक ऐसा दिन है, जिसके पन्ने सैकड़ों झारखंडियों के खून से लिखी गयी है़ खूंटी के सइलरकब के डोंबारी बुरू पर हजारों आदिवासी जुटे थे. औरत-बच्चे सब थे़ वहां जल, जंगल और जमीन बचाने आदिवासियों का जुटान हो ूरहा था. अंग्रेजों के खिलाफ उलगुलान की रणनीति भी बन रही थी. डोंबारी बुरु की पहाड़ियां कड़ाके की ठंड में कोहरे की आगोश में थी़
ब्रिटिश पुलिस ने अचानक हमला कर दिया़ चारों तरफ से पहाड़ी को घेर कर गोलीबारी शुरू कर दी गयी़ डोंबारी बुरू की पहाड़ियां खून से लाल हो गयी़ आदिवासियों ने काफी देर तक अंग्रेजों का मुकाबला किया़ आदिवासियों ने अदभुत वीरता और साहस का परिचय दिया़ सैकड़ों आदिवासी औरतें और नवजात बच्चे मारे गये़ क्रूर अंग्रेजी हुकूमत का यह बड़ा कत्लेआम था़ बिरसा मुंडा के वीर योद्धाओं ने प्राणों की आहूति दी़ इसके बाद अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा की तलाश तेज कर दी़ वह डोंबारीबुरु से किसी तरह निकल चुके थे.
बिरसा मुंडा और उनके वीर लड़ाके के तीर-धनुष से अंग्रेजों के पसीने छूटते थे. बंदगांव के घनघोर जंगलों में बिरसा आजादी के दीवानों के साथ रणनीति बनाते थे़ अंग्रेजों ने जब बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी का एलान किया, तो वह बंदगांव के ही टेबो पंचायत के संकरा गांव में रह रहे थे. बिरसा मुंडा ने अपनी गिरफ्तारी से दो साल पहले ही अपना ठिकाना संकरा-रोगतो जैसी जगहों को बनाया था.
अंग्रेजी सेना इन इलाकों में बिरसा मुंडा को खोजने के लिए आतंक मचा रही थी. आंदोलन को पूरी तरह कुचल डालने के लिए बिरसा अनुयायियों को निशाना बनाया जा रहा था. तीन फरवरी, 1900 को उन्हें गिरफ्तार किया गया था. उनकी गिरफ्तारी के बाद संकरा गांव इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया़ शंकरा के पश्चिम स्थित जंगल से मानमारू गांव के सात लोभी लोगों ने बिरसा मुंडा को अपने कब्जे में ले लिया. वहां से बिरसा को बंदगांव लाया गया. बिरसा को पकड़वाने वाले लोगों को 500 रुपये का नकद इनाम दिया गया था. बंदगांव का यह गांव आज भी बिरसा की वीर गाथा गाता है. झारखंडी स्वाभिमान का पाठ पढ़ाता है
संकरा गांव में गिरफ्तारी के बाद बिरसा मुंडा को बंदगांव लाया गया़ वहां से अंग्रेजों ने उन्हें रांची के जेल में लाया़ बाद में इसी जेल का नाम बिरसा मुंडा कारागार रखा गया. बिरसा ने यहां नौ जून 1900 को अंतिम सांस ली़ बिरसा मुंडा बीमार रहने लगे थे़ वह काफी कमजाेर हो गये थे.
इतिहासकारों के अनुसार, बिरसा मुंडा को डायरिया हो गया था. वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि बिरसा मुंडा को जहर दे दिया गया था. इस जेल को राज्य सरकार ने स्मृति स्थल के रूप में विकसित व संरक्षित करने का निर्णय लिया है़ 144 करोड़ रुपये की लागत से इस जेल को संवारने की योजना है. इसे संग्रहालय का रूप दिया जा रहा है. जिस कमरे में बिरसा मुंडा रहते थे, उसमें बिरसा के पूरे जीवन को जीवंत करते हुए कलाकारी की जा रही है़
राजधानी के कोकर के डिस्टीलरी पुल के पास बिरसा मुंडा का समाधि स्थल है. यहां बिरसा मुंडा को अंग्रेजों ने जलाया था. अंग्रेजों काे आदिवासी विद्रोह का खौफ इतना था कि भगवान बिरसा मुंडा को रात में ही जला दिया. वर्तमान में सरकार ने इस जगह का सौंदर्यीकरण किया है. शहर के बीच में यह जगह बिरसा के संघर्ष का पड़ाव है. यहां से उनकी पूरी शहादत जीवंत होती है़