Birsa Munda death anniversary: धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के कोकर समाधि स्थल पर शहादत दिवस की तैयारी पूरी

Birsa Munda death anniversary: रांची के कोकर डिस्टलरी पुल के समीप स्थित बिरसा मुंडा समाधि स्थल की देखभाल करने वाले रिंकू चौधरी ने बताया कि धरती आबा बिरसा मुंडा के शहादत दिवस को लेकर समाधि स्थल पर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. नगर निगम द्वारा साफ-सफाई करायी गयी है. फूलों से समाधि स्थल को सजाया गया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 9, 2022 6:52 AM
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Birsa Munda death anniversary: झारखंड की राजधानी रांची के कोकर डिस्टलरी पुल के पास स्थित भगवान बिरसा मुंडा के समाधि स्थल पर शहादत दिवस (9 जून) के आयोजन को लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी है. रांची नगर निगम द्वारा स्थल की साफ-सफाई करायी गयी. समाधि स्थल को फूलों से सजाया गया है. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे.

शहादत दिवस की तैयारी पूरी

झारखंड की राजधानी रांची के कोकर डिस्टलरी पुल के समीप स्थित धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के समाधि स्थल की देखभाल करने वाले रिंकू चौधरी ने बताया कि धरती आबा बिरसा मुंडा के शहादत दिवस को लेकर समाधि स्थल पर तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. नगर निगम द्वारा साफ-सफाई करायी गयी है. पानी का छिड़काव किया गया है. फूलों से पूरे समाधि स्थल को सजाया गया है. झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा के शहादत दिवस पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे. आपको बता दें कि झारखंड के राज्यपाल व मुख्यमंत्री पुण्यतिथि व जयंती पर धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हैं.

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9 जून को शहादत दिवस

धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की 9 जून को पुण्यतिथि है. 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलिहातू गांव में इनका जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम सुगना मुंडा और माता का नाम करमी था. ब्रिटिश सरकार और उनके द्वारा नियुक्त जमींदार आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल कर रहे थे. 1895 में बिरसा ने अंग्रेजों द्वारा लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी. उन्होंने सूदखोर महाजनों के खिलाफ भी जंग का एलान किया. ये महाजन, जिन्हें वे दिकू कहते थे, कर्ज के बदले उनकी जमीन पर कब्जा कर लेते थे. यह सिर्फ विद्रोह नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, स्वायत्तता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था. भगवान बिरसा की 9 जून, 1900 को जेल में संदेहास्पद अवस्था में मौत हो गयी. अंग्रेजी हुकूमत ने बताया कि हैजा के चलते उनकी मौत हुई है. महज 25 साल की उम्र में मातृ-भूमि के लिए शहीद होकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को उद्वेलित किया, जिसके चलते देश आजाद हुआ. भगवान बिरसा के संघर्ष और बलिदान की वजह से उन्हें आज हम ‘धरती आबा’ के नाम से पूजते हैं.

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इनपुट : हिमांशु देव, रांची

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