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आदिवासी समाज के लिए अंग्रेजों से भिड़ गये थे बिरसा मुंडा, की थी उलगुलान आंदोलन की शुरुआत

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में हुई.

By Sameer Oraon | June 8, 2024 3:59 PM
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Birsa Munda Death Anniversary Special|आकांक्षा वर्मा : बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के ऐसे नायक थे, जिन्होंने जनजातीय समाज के लोगों के लिए संघर्ष किया. देश की आजादी और आदिवासी समाज के उत्थान में उनका बड़ा योगदान था. यही वजह है कि उन्हें भगवान का दर्जा दिया गया. बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के बढ़ते जुल्म के खिलाफ कम उम्र में ही अंग्रजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. उनका प्रभाव इतना था कि अंग्रेज सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए 500 रूपए के इनाम की घोषणा कर दी. वे दुनिया के ऐसे पहले लोकनायक थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ समाज सुधार की भी बात की.

15 नवंबर को हुआ था बिरसा मुंडा का जन्म

बिरसा मुंडा के जन्म को लेकर कई जगहों पर अलग-अलग तिथियों का उल्लेख है. लेकिन, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी कुमार सुरेश सिंह की लिखी किताब के अनुसार, उनका जन्म 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसिडेंसी में 15 नवंबर 1875 को खूंटी के उलिहातू में हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में हुई. पढ़ाई के दौरान ही बिरसा के क्रांतिकारी तेवर दिखाई देने लगे थे.

बिरसा मुंडा ने की थी ‘उलगुलान’ आंदोलन की शुरुआत

बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के खिलाफ ‘उलगुलान’ किया था. यह आंदोलन सरदार और मिशनकारियो के खिलाफ था, जो मुख्य रूप से खूंटी, तमाड़ और बंदगांव में केंद्रित था. जब जमींदारों और पुलिस का अत्याचार दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था, तब उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई. वह अंग्रेजों को लगान देने के खिलाफ थे. यह तभी संभव था जब जब अंग्रेज अफसर और मिशनरी पूरी तरह से हट जाए. उस वक्त स्थिति यह थी कि अंग्रेजों ने आदिवासियों को उनकी ही जमीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी. इसके खिलाफ ही भगवान बिरसा मुंडा ने उलगुलान किया था.

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बिरसा मुंडा ने बनाया “बिरसाइत” धर्म

बिरसा मुंडा की पढ़ाई जर्मन मिशन स्कूल में हुई. यहीं उन्हें पढ़ई के दौरान पता चला कि अंग्रेज आदिवासियों को धीरे-धीरे ईसाई धर्म में परिवर्तित करा रहे हैं. इसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और ईसाई धर्म का त्याग कर ‘बिरसाइत’ धर्म की शुरुआत की.

अबुआ दिशुम, अबुआ राज की हुई थी शुरुआत

बिरसा मुंडा के भाषणों से लोग बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अंग्रेजों को कमजोर करने के लिए टैक्स देने से मना कर दिया. उन्होंने एक नया नारा दिया- “अबुआ दिशुम, अबुआ राज”. इसका अर्थ है- अपना देश-अपना राज. तभी से उन्हें मुंडा समुदाय के लोग धरती आबा कहने लगे थे.

जेल में हुई मौत

उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया, तो अंग्रेजी हुकूमत ने येन-केन-प्रकारेण उन्हें गिरफ्तार करने की योजना बनाई. एक गद्दार ने अंग्रेजों को बिरसा मुंडा की खबर दे दी और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके रांची जेल भेज दिया. कहा जाता है कि जेल में उन्हें धीमा जहर दिया जाने लगा. इससे उनकी तबीयत धीरे-धीरे बिगड़ती चली गई और 9 जून 1900 को सुबह 9 बजे उन्होंने अस्पताल में ही दम तोड़ दिया. अंग्रेजी हुकूमत ने कहा कि बिरसा की मौत हैजा की वजह से हुई है.

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