बिरसा मुंडा का नाम तो शायद हमारे कानों पर तो पड़ता है, लेकिन शायद ही कोई आदिवासी जिला ऐसा होगा, जहां 1857 से लेकर आजादी आने तक आदिवासियों ने जंग न की हो, बलिदान न दिया हो. आजादी क्या होती है, गुलामी के खिलाफ जंग क्या होती है, उन्होंने अपने बलिदान से बता दिया था, लेकिन हमारी आनेवाली पीढ़ियों को इस इतिहास से उतना परिचय नहीं है. आनेवाले दिनों में उन राज्यों में इन स्वतंत्रता सेनानियों, जो आदिवासी थे, जंगलों में रहते थे, अंगरेजों से जूझते थे, झुकने को तैयार नहीं थे, उनके पूरे इतिहास को उन आदिवासियों को याद करते हुए स्थायी रूप से म्यूजियम बनाने का काम सरकार करेगी.
-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लालकिला से 15 अगस्त, 2016 को दिया गया भाषण का अंश
भारत के इतिहास में यह पहला अवसर था जब देश के किसी प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) ने लाल किला से दिये गये भाषण मेंं आजादी की लड़ाई में भगवान बिरसा मुंडा और आदिवासियों के योगदान का जिक्र किया था. उसी दिन प्रधानमंत्री ने आदिवासी शहीदों की याद में देश के कई राज्यों में म्यूजियम बनाने की घोषणा की थी. इसमें रांची स्थित बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा भी शामिल था, जहां भगवान बिरसा मुंडा ने अंतिम सांस ली थी. घोषणा के पांच साल के भीतर यानी 2021 में प्रधानमंत्री ने उसी म्यूजियम का उदघाटन भी कर दिया था.
रांची के उसी जेल परिसर स्थित म्यूजियम में कल प्रधानमंत्री जायेंगे. यह ऐतिहासिक पल होगा. बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू जानेवाले देश के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही होंगे. बिरसा मुंडा के जन्मदिन (15 नवंबर) को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में हर साल मनाने का निर्णय भी पीएम मोदी का ही है. ये सारी बातें इस बात को साबित करती हैं कि नरेंद्र मोदी के जीवन में बिरसा मुंडा और आदिवासी समुदाय का क्या महत्व है.
इसकी शुरुआत 2016 में ही हो चुकी थी जब प्रधानमंत्री के निर्देश पर तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह उलिहातू के उस मकान में गये थे, जहां बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था. देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले स्वतंत्रता सेनानियों और गुमनाम नायकों को याद करने के अभियान का यह हिस्सा था. बाद में अमित शाह (तब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे) भी उलिहातू गये थे.
प्रधानमंत्री के उलिहातू दौरे से उनसे अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं. बिरसा मुंडा से जुड़े बहुत सारे रहस्यों पर से परदा उठना बाकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित अनेक गुप्त दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया. दुनिया के कई देशों में बिरसा मुंडा से संबंधित दस्तावेज पड़े हैं जिन्हें भारत लाकर कई रहस्यों पर से परदा उठाया जा सकता है. बिरसा मुंडा की मौत से लेकर डुंबारी में हुई गोलीबारी में शहीदों की संख्या-गुमनाम आदिवासी शहीदों के नाम का रहस्य अभी रहस्य बना हुआ है.
बिरसा मुंडा की मौत डायरिया से हुई थी या जेल में जहर देने से, यह अभी तक साफ नहीं हुआ है. रांची और हजारीबाग के केंद्रीय कारा (जहां बिरसा मुंडा को रखा गया था) में भी बिरसा मुंडा से संबंधित दस्तावेज नहीं हैं. सभी नष्ट हो चुके हैं. कोलकाता और विदेशों में, खास कर ब्रिटेन में भी कुछ दस्तावेज सही सलामत हैं. इनमें वे पत्र शामिल हैं, जिन्हें तत्कालीन भारत सरकार ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी और डुंबारी के संघर्ष के बाद ब्रिटिश सरकार को लिखा था. इनमें कई महत्वपूर्ण जानकारियां हैं.
1. नौ जून, 1900 को बिरसा मुंडा की मौत रांची जेल में हुई थी. अंगरेजों ने मौत का कारण बिरसा मुंडा को डायरिया होना बताया, जबकि जहर से मौत की भी चर्चा थी. गोपनीय ब्रिटिश दस्तावेजों में इसके असली कारण का उल्लेख हो सकता है.
2. डुंबारी (सईल रकब) में बिरसा मुंडा के समर्थकों पर 9 जनवरी, 1900 को अंधाधुंध फायरिग की गयी थी. इसमें सात से लेकर 400 बिरसा समर्थकों के मारे जाने की बात सामने आती रही है. कई दस्तावेजों में अलग-अलग संख्या है. खुद उपायुक्त स्ट्रीटफील्ड और कैप्टन रोसे द्वारा लिखित पत्रों में अलग-अलग आंकड़े हैं.
3. बिरसा मुंडा के आंदोलन में डुंबारी से लेकर रांची जेल और अंडमान जेल तक में बिरसा समर्थक शहीद हुए थे. इनमें कुछ का ही नाम सामने आता है. बाकी आदिवासी शहीद गुमनाम ही रह गये. ऐसे गुमनाम नायकों का सम्मान होना चाहिए.
4. बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी से लेकर आंदोलन संबंधी अनेक दस्तावेज ब्रिटेन की लाइब्रेरी, जर्मनी में है. बर्लिन स्थित गोस्सनर मिशन स्टोर में डॉ कार्ल हाइनराइस द्वारा लिखा गया दस्तावेज मौजूद है. जेपी हेवेट द्वारा 1900 में लिखा सर आर्थर गोडले को लिखा पत्र ब्रिटेन की लाइब्रेरी में है. कुछ दस्तावेज कोलकाता की नेशनल आर्काइव्स और पटना स्थित बिहार आर्काइव्स में भी हैं.
5. बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू से लेकर, डुंबारी (जहां ऐतिहासिक संघर्ष हुआ था), रांची स्थित जेल (जहां निधन हुआ था), रांची स्थित समाधि स्थल (जहां उनके शव को जलाया गया था) को मिला कर पर्यटन के दृष्टिकोण से बिरसा सर्किट बनाया जाये.
6. जिस तरह प्रधानमंत्री की पहल पर गुजरात में सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा लगायी गयी है, उसी तरह रांची में प्रवेश करने के पहले राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे या उलिहातू में बिरसा मुंडा की विशाल प्रतिमा लगायी जाये. इसमें गुमनाम शहीदों का भी उल्लेख हो.